पाप का फल भोगना ही पड़ता है
मनुष्य को ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए कि मेरा पाप तो कम था पर दंड अधिक भोगना पड़ा अथवा मैंने पाप तो किया नहीं पर दंड मुझे मिल गया! कारण कि यह सर्वज्ञ, सर्वसुह्रद, सर्वप्रथम भगवान् का विधान है कि पाप से अधिक दंड कोई नही भोगता और जो दंड मिलता है, वह किसी-न-किसी पाप का ही फल होता है|