अध्याय 154
1 [वै]
ततस तान परिविश्वस्तान वसतस तत्र पाण्डवान
गतेषु तेषु रक्षः सुभीमसेनात्मजे ऽपि च
1 [धृ]
कांस तत्र संजयापश्यः परत्यर्थेन समागतान
ये यॊत्स्यन्ते पाण्डवार्थे पुत्रस्य मम वाहिनीम
1 [वायु]
इमां भूमिं बराह्मणेभ्यॊ दित्सुर वै दक्षिणां पुरा
अङ्गॊ नाम नृपॊ राजंस ततश चिन्तां मही ययौ
1 [स]
तवात्मजांस तु पतितान दृष्ट्वा कर्णः परतापवान
करॊधेन महताविष्टॊ निर्विण्णॊ ऽभूत स जीवितात
1 [धृ]
यत तदा पराविशत पाण्डून आचार्यः कुपितॊ वशी
उत्क्वा दुर्यॊधनं सम्यङ मम शास्त्रातिगं सुतम
1 [वायु]
शृणु मूढ गुणान कांश चिद बराह्मणानां महात्मनाम
ये तवया कीर्तिता राजंस तेभ्यॊ ऽथ बराह्मणॊ वरः