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त्रेता युग में राजा हरिशचंद्र राज्य करते थे| वे इक्ष्वाकु वंशी थे, बाद में श्रीरामचंद्र जी भी इसी वंश में हुए| धर्म में उनकी सच्ची निष्ठा थी और वे परम सत्यवादी थे| उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फली हुई थी| उनकी पुरोहित महर्षि वशिष्ठ थे, उनका इंद्र की सभा में आना-जाना था| 

बहुत पुरानी बात है। एक राजा था। उसके पास एक दिन एक संत आए। उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की। राजा और संत में कई प्रश्नों पर खुलकर बहस भी हुई। अचानक बातों ही बातों में संत ने अधिकार की रोटी की चर्चा की। राजा ने इसके बारे में विस्तार से जानना चाहा तो संत ने उसे एक बुढ़िया का पता दिया और कहा कि वही उसे इसकी सही जानकारी दे सकती है।

एक दिन इंद्र की सभा में विश्वामित्र और वशिष्ठ के आलावा देवगण, गंधर्व, पितर और यक्ष आदि बैठे हुए चर्चा कर रहे थे की इस धरती पर सबसे बड़ा दानी, धर्मात्मा और सत्यवादी कौन है?

एक बार एक गांव में दो भाई रहा करते थे | उनका नाम था चांगी और मांगी | कहने को तो वे दोनों सगे भाई थे परंतु उनकी आदत एक दूसरे के विपरीत थी |

महर्षि कणाद परम विरक्त तथा स्वाभिमानी थे। वह फसल की कटाई के बाद खेतों से अन्न के दाने चुनते और उन्हें भगवान को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते थे।

देवराज जानते थे कि दो ऋषियों के बीच हुए विवाद में फंसने से कोई लाभ होने वाला नहीं है| वे दोनों महर्षि के स्वभाव से भी भली-भाति परिचित थे| इंद्र भली-भाति जानते थे कि विश्वामित्र के मन में क्यों वशिष्ठ के प्रति ईर्ष्या का भाव है|

एक बार महात्मा गांधी को प्रवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के कारण जोहान्सबर्ग की जेल में बंद कर दिया गया। लेकिन थोड़े ही दिनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। कुछ शरारती तत्वों ने यह अफवाह फैला दी कि गांधी जी ने सरकार से समझौता कर लिया है और प्रवासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज न उठाने का वचन दिया है।

एक दिन राजा हरिश्चंद्र वन में आखेट के लिए गए हुए थे| तभी उनके कानो में किसी की पुकार सुनाई दी, “मेरी रक्षा करो..मेरी रक्षा करो राजन!”