पुत्र की भूख
काशी नगरी में राजा हरिश्चंद्र को कोई पहचानता नहीं था| वे अपनी पत्नी के साथ गंगा के किनारे जा पहुचें और हाथ-पांव धोकर, गंगा जल पीकर किनारे पर बैठ गए| पास में ही एक कुत्ता किसी की फेंकी हुई रोटियां चबा रहा था|
काशी नगरी में राजा हरिश्चंद्र को कोई पहचानता नहीं था| वे अपनी पत्नी के साथ गंगा के किनारे जा पहुचें और हाथ-पांव धोकर, गंगा जल पीकर किनारे पर बैठ गए| पास में ही एक कुत्ता किसी की फेंकी हुई रोटियां चबा रहा था|
राजा भोज वन में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए अपने सैनिकों से बिछुड़ गए और अकेले पड़ गए। वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाए गुजरा। वह अपनी धुन में मस्त था। उसने राजा भोज को देखा पर प्रणाम करना तो दूर, तुरंत मुंह फेरकर जाने लगा।
एक बार एक गांव में एक किसान रहता था, परिवार अत्यंत गरीब था और उनकी रोटी की गुजर-बसर मुश्किल से ही हो पाती थी | किसान के विवाह को आठ वर्ष हो चुके थे | परंतु उनके कोई संतान न थी | किसान और उसकी पत्नी को गरीबी का इतना दुख न था, जितना संतान न होने का |
सिमकी का गरीबी के मारे बुरा हाल था | उसके घर में कई-कई दिन तक भोजन नसीब नहीं होता था | उसकी पत्नी रोजिया उसे रोज समझाती कि समझ और मेहनत से काम किया करो, परंतु सिमकी बहुत सीधा, भोला-भाला, मासूम था | इसी कारण हर जगह धोखा खा जाता था |
रोहिताश्व की भूख को देखकर राजा हरिश्चंद्र का धैर्य डगमगाने लगा| संतान का दुःख असहनीय होता है| उन्होंने गंगा के जल में तैरते हुए हंसों को दिखाकर बालक का मन बहलान चाह, परन्तु बच्चा भूख-भूख चिल्ला रहा था|
काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा, ‘गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?’ संत ने मुस्करा कर कहा, ‘एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।’ बात आई और गई। कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा, ‘वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।’ शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा, ‘क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?’ शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, कमरे में सांप है।’
बहुत पहले की बात है | एक भिखारी सड़क के किनारे रहा करता था | उसका न तो कोई रहने का ठिकाना था और न ही कमाई का कोई निश्चित जरिया |
एक राजा था| उसका मंत्री भगवान् का भक्त था| कोई भी बात होती तो वह यही कहता कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी|
एक गांव के किनारे बनी कुटिया में एक साधु रहता था | वह दिन भर ईश्वर का भजन-कीर्तन करके समय बिताता था | उसे न तो अपने भोजन की चिंता रहती थी और न ही धन कमाने की | गांव के लोग स्वयं ही उसे भोजन दे जाते थे |
दोपहर तक राजा हरिश्चंद्र अपनी पत्नी शैव्या और पुत्र रोहिताश्व के साथ नगर में भटकते रहे, परन्तु उन्हें कहीं कम नहीं मिला| हारकर वे बाजार में एक किनारे बैठ गए और अपनी पत्नी से बोले, “शैव्या! आज एक महिना पूरा हो रहा है|