लक्ष्मी जी व गणेश जी की पूजा एक साथ क्यों की जाती है?
देवी लक्ष्मी व गणेश जी की पूजा दीवाली त्यौहार की सबसे अहम व बड़ी रस्म है जिसको कोई भी नहीं छोड़ सकता है। अक्सर लोग इस बात पर हैरान होते है की इनकी ही पूजा क्यों एक साथ की जाती है?
दीपावली का त्यौहार समृद्धि व् खुशहाली का पर्व माना जाता है। हिन्दू मत में ऐसी धारणा है की देवी लक्ष्मी धन की देवी है व गणेश जी ज्ञान व् बुद्धि के देव है। इन दोनों के परस्पर गुणों की कामना समस्त मानवजाति को रहती है, हर कोई खुद को इन गुणों से सराबोर करना चाहता है। इस पर्व पर सभी की कामना होती है की उनकी ज़िन्दगी का हर क्षेत्र हर पहलु इन देवी देव की आशीर्वाद से प्रफुल्लित हो इसीलिए इन दोनों की पूजा एक साथ की जाती है।
जैसे की हम जानते है की हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य गणेश जी की पूजा के बिना सम्पन नहीं माना जाता है तो फिर दीवाली जैसे मंगलदायक पर्व पैर इनकी अवहेलना कैसे हो सकती है।
आखिर गणेश जी को विघ्नहर्ता जो कहा जाता है जो सब मुसीबतों को दूर करते है।
हिन्दू मत में यह मत प्रचलित है की इस पर्व को देवी लक्ष्मी हर घर में जाती है व अपना आशीर्वाद देती है ताकि सब लोग ख़ुशी व खुशहाली से भरपूर रहे।
इसीलिए इनकी पूजा बहुत ही सम्मान व श्रद्धा से की जाती है कई दिन पहले से ही लोग घरो की साफ सफाई करने लग जाते है।
क्या आप अभी भी इन सब बातों से सहमत नहीं हुए की इन दोनों की पूजा एक साथ इन करने से ही की जाती है। तो लीजिये सुनिए फिर यह पौराणिक कहानी :
बात बहुत पुरानी है, एक बार देवी लक्ष्मी व् भगवान विष्णु जी आपस में वार्तालाप कर रहे थे तभी भगवन को लगा की देवी को अपने धन सम्पदा का कुछ ज्यादा का घमंड हो चूका है। उनको लगता है की वही है जो मानवजाती के ऊपर धन की बरसात करती है, उनके कारण ही तो सब खुशहाल है।
शास्त्रों में वर्णित है की इनके गर्व को देखकर विष्णु जी भी चिंतित हो गए की देवी के इस अभिमान को कम करना होगा क्या हुआ अगर वो धन वैभव की देवी है मगर उनको दयावान होना चाहिए न की इतना गर्वित।
देवी की विष्णु जी से जबरदस्त बहस हो गयी वो अपनी प्रशंसा करने लगी की उनके कारण ही सब धनवान है, खुशहाल है वरना कोई भी कुछ भी नहीं है। विष्णु जी को उनका स्वार्थी व्यवहार नहीं भाया व उन्होंने देवी को अपनी गलती का अहसास करवाने की सोची।
विष्णु जी ने देवी को संबोधित करते हुए कहा अगर किसी स्त्री के पास धन दौलत सब कुछ है मगर वह बेऔलाद है। संतान सुख से वंचित है तो वो अधूरी है।
यह बात देवी को चुभ गयी क्यूंकि वे संतान सुख से वंचित थी। भगवान् विष्णु के अनुसार किसी भी स्त्री को परम सुख सिर्फ संतान प्राप्ति से मिलता है इसमें धन दौलत का कोई रोल नहीं है। यह सब सुनकर देवी निराश व हताश हो गयी।
देवी ने माँ पार्वती के पास जाने की सोची ताकि अपने दिल का भर हल्का कर सके व् उनसे कोई मदद ले सके। देवी लक्ष्मी ने माँ पार्वती से विनती की आप मुझे अपने एक बालक को गोद दे, मगर पार्वती जी इस बात पर राज़ी नहीं हुई क्यूंकि उनको डर था की देवी तो कभी एक जगह टिक कर रहती नहीं है ऐसे में वे बालक का लालन पालन कैसे कर पायेगी कैसे उसको खुश रखेगी? इस से तो बालक विपत्ति में आ जायेगा। तब देवी लक्ष्मी ने माँ पार्वती को आश्वासन दिया की वो बच्चे का हर तरह से ध्यान व ख्याल रखेगी व उसको यथासभव खुशी देंगी।
तब जाकर माँ पार्वती को कुछ राहत मिली, उनको भी लगा की वह इस तरह से देवी लक्ष्मी की वेदना कम कर सकती है। तो उन्होंने देवी को गणेश जी को गोद लेने को कहा। यह सुनकर देवी इतनी खुश हुई की उन्होंने माँ पार्वती को वादा किया की वो गणेश जी का हर तरह से ख्याल रखेगी, बल्कि अब से जो कोई भी देवी को प्रसन्न करना चाहेगा उसको पहले गणेश जी की पूजा करनी होगी तभी इनकी पूजा करनी संभव हो पायेगी धन की प्राप्ति ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति के बिना नहीं हो पायेगी।
गणेश जी की पूजा के बिना कोई भी देवी का आशीर्वाद नहीं ले पायेगा।
यही कारण है की देवी लक्ष्मी जी की पूजा गणेश जी की पूजा के बाद में की जाती है। ऐसा माना जाता है की बिना ज्ञान व बुद्धि के कोई इंसान धन भी नहीं खर्च कर सकता है। इसके बिना आपका धन अर्जित करना व्यर्थ है।
Ms. Ginny Chhabra (Article Writer)