दीपावली पर्व के पीछे की ऐतिहासिक कहानीयों के रोचक तथ्य
हिन्दू धर्म में इस पर्व को मनाने के पीछे कई धार्मिक कारण जुड़े हुए है। इसको हिन्दू संस्कृति व धर्म की उन्नति के सन्दर्भ में देखा जाता है। मन की आजकल इस पर्व को सब एक मौज मस्ती का शुगल मानकर मनाते है किन्तु इसके पीछे कई तरह की कहानिया है जिनके कारण यह पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है।
जब भी हम इसकी बात करते है तो हमारे दिमाग में रोशनी दीये मोमबत्ती मिठाई व पटाखों की शक्ल उभरती है। मगर यह इन सबसे भी आगे है, इसका इतिहास बहुत ही गहरा है।
हिन्दू पुराणों व धार्मिक ग्रंथो में इन कहानियो का जिक्र किया गया है जिनके कारण यह पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है।
क्या आप जानना चाहेंगे इन 5 दिनों की अलग किस्से कहानियाँ !!!
आईये जानते है :
1प्रथम दिवस
पहले दिवस को धनतेरस कहा जाता है, इसको धनत्रयोदशी भी कहते है। यह दिन आश्विन महीने की 13वे दिन को मनाया जाता है। इसी दिन जब सुरो व् देवो के बीच अमृत को लेकर समुन्दर मंथन हो रहा था तभी इसके दौरान धन्वंतरि (विष्णु अवतार: देवताओं के चिकित्सक) समुन्दर से अमृत गागर लेकर प्रगट हुए थे। जिसकारण से इस दिन का महत्त्व मानवजाति के लिए अत्यधिक हो जाता है। इसी दिन देवी लक्ष्मी समुंदर से प्रगट हुई थी। यही कारण है की इस दिन को वित्तीय निवेश के लिए उपयुक्त माना जाता है।
2दूसरा दिवस
पहले दिवस की भांति ही दूसरे दिवस के पीछे भी एक रोचक कहानी है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्ण जी ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ, मिलकर नरकासुर नामक असुर का संहार किया था। इस असुर ने देवो से वरदान लेने के बादअपने बल से धरती व स्वर्ग दोनों पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। उसने न सिर्फ इंद्र देवता को परास्त किया बल्कि उसने ऋषियों की 16000 पुत्रियों के अपहरण का जघन्य पाप भी किया। उसने भगवान् अदिति की सारी कमाई भी चुरा ली। इसीलिए संसार को ऐसे असुर के आतंक व क्रूरता से मुक्त करवाने के लिए भगवान् कृष्णा ने इसका संहार किया, यह दीवाली के दूसरे दिन हुआ था इसीलिए इस दिन को नारक चतुदर्शी भी कहा जाता है।
3तृतीय दिवस
इस दिन इस पर्व को दीपावली के नाम से जाना जाता है। इस दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मन जाता हिअ क्यूंकि इसी दें भव्य लक्ष्मी गणेश पूजन किया जाता है, दीपमाला की जाती है। इस दिन का इतिहास भगवन श्रीराम के साथ जुड़ा हुआ है जिनको हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
हिन्दू पुराणों के अनुसार इसी दिन श्रीराम अपनी पत्नी सीता माता व् छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षो का वनवास पूरा करके अयोध्या वापिस लौटे थे, उनके आने की ख़ुशी में नगरवासियो ने समस्त राज्य में घी के दिए जलाये थे उनका स्वागत किया था। तब ये पर्व पहली बार मनाया गया था।
4चतुर्थ दिवस
इस दिन को गोवर्धन पर्वत पूजा के रूप में मनाया जाता है इसके पीछे कहानी यह है की देव इंद्रा ने मथुरा में घनघोर वर्षा शुरू कर दी जिसमे वहा के रहने वाले मथुरावासी व उनकी गाये, भूमि सब कुछ बहने लगा तब इस संकट से सब को उभारने के लिए भगवन कृष्ण आगे आये उन्होंने तब गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठा लिया व सबको उसकी छत्रछाया में रख दिया इस तरह से उन्होंने सभी गायों व मथुरावासिओं का उद्धार किया। तब से यह दिन गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है।
5पाँचवा दिवस
इस दिवस को भाई दूज के नाम से जाना जाता है। कहते है इसी दिन देव यम अपनी बहन देवी यमुना को मिलने उसके घर गए वहाँ पर देवी यमुना ने उनका स्वागत तिलक लगा कर किया, तब से यह दिन भाई दूज के नाम से मनाया जाने लगा।इस दिन सभी भाई अपनी बहनो के घर जाते है, उनके साथ समय व्यतीत करते है।
हिन्दू वर्ग के अलावा और भी कई धर्मो के लोग है जो दीवाली को अपने कारणों से मनाते है। इनका अपना इतिहास है जैसे की सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को इसीलिए मनाते है की इसी दिन इनके छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद सिंह जी ग्वालियर किले से (मुग़ल शासक जहाँगीर के शासन काल में) रिहा होकर श्री अमृतसर साहिब आये थे। इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के नाम से जानते है।
जैन धर्म के लोगो का मत है की इसी दिन इनके गुरु भगवन महावीर जी को निर्वाण प्राप्ति हुई थी तभी यह दिन उनके निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Ms. Ginny Chhabra (Article Writer)