रामदीन धोबी के पास एक गधा था| वह दिनभर उस गधे से जी-तोड़ काम लेता और शाम को उसे खुला छोड़ देता, ताकि वह जंगल तथा खेतों में हरी घास चरकर अपना पेट भर सके|
महाभारत का प्रसंग है| जुए में हारने के बाद पाँच पांडव बारह वर्ष के वनवास के दिन वनों एवं पर्वतों में व्यतीत कर रहे थे| एक समय वे द्वैतवन के समीप ब्रहामणों के साथ निवास कर रहे थे कि शकुनि और कर्ण ने दुर्योधन को सलाह दी की हमारा विचार है कि तुम खूब ठाट-बाट से द्वैतवन को चलो और अपने वैभव और ऐश्वर्य से पांडवों को चमत्कृत कर दो|
हनुमान …….आपार शक्ति, विवेक एवं शीलता तो उनका अक्स्मात परिचय हैं । लेकिन आज प्रभु के वो स्वरुप की अनुभुति हुई की मन मुग्ध हो गया ।
किसी नगर में एक धोबी रहता था| कपड़े धोने में उसका कोई सानी नही था| लेकिन वह अपने गधे के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था| दिनभर उससे हाड़-तोड़ काम कराने के बाद भी खाने को कुछ नही देता| बेचारा गधा यहाँ-वहाँ मुहँ मारकर जो मिलता उसी से अपना पेट भर लेता| यही कारण था कि वह बहुत कमज़ोर हो गया था|
यह घटना कपिलवस्तु नगर की है| वहाँ के राजा का नाम था शुद्धोदन| एक समय की बात है| राजा के पुत्र सिद्धार्थ अपने चचेरे भाई देवदत के साथ बगीचे में टहल रहे थे|
एक बार की बात है| जापान में भारत के प्रसिद्ध तत्वचिंतक स्वामी रामतीर्थ रेल-यात्रा कर रहे थे| वह रेलवे स्टेशन पर उतरे, प्लेटफार्म पर चक्कर लगा आए| पर उनकी मनचाही चीज नहीं मिली|
हिमाचल प्रदेश की सुरमई वादियों में यूं तो कदम-कदम पर देवस्थल मौजूद हैं, लेकिन इनमें से कुछ एक ऐसे भी हैं जो अपने में अनूठी गाथाएँ और रहस्य समेटे हुए हैं| ऐसा ही एक मंदिर है निरमंड का परशुराम मंदिर|
एक बार शेर ने उत्सव की घोसणा की| सभी जानवर आये| कुछ जानवर झुण्ड में तथा कुछ जोडों में आये थे| आनन्द का वातावरण बन गया| उत्सव आरम्भ हुआ| गायन हुआ, नृत्य चला, फिर बन्दर को नाचने के लिए कहा गया| बन्दर आनंदमग्न था| उसने मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया| जानवरों ने जमकर उसकी प्रशंसा की| शेर ने उसकी पीठ थपथपाई| बन्दर प्रसिद्ध हो गया|
यह घटना मुगलकाल की है| रहीम खानखाना एक अच्छे योद्धा, हिंदी-प्रेमी और सबसे अधिक वह एक दानी व्यक्ति थे| उनका नियम था कि वह हर दिन गरीबों या याजकों को दान देते थे| उनका दूसरा नियम था की दान देते हुए वह कभी अपनी निगाह लेने वाले पर नहीं डालते थे| वह नीचे नजर कर रूपये-पैसों के ढेर से मुट्ठी भरकर गरीबों को दान करते थे|
उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। शिवगणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण उसका मित्र था। एक बार मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक अत्यंत तेजोमय ‘चिंतामणि’ प्रदान की। चंद्रसेन ने इसे गले में धारण किया तो उसका प्रभामंडल तो जगमगा ही उठा, साथ ही दूरस्थ देशों में उसकी यश-कीर्ति बढ़ने लगी। उस ‘मणि’ को प्राप्त करने के लिए दूसरे राजाओं ने प्रयास आरंभ कर दिए। कुछ ने प्रत्यक्षतः माँग की, कुछ ने विनती की।
एक समय की बात है, तीन बैल गहरे मित्र थे| वे एक साथ रहते, चरते और खेलते थे| उसी क्षेत्र में एक शेर भी था, जो बैलों को मारकर खा जाना चाहता था| कई बार वह आक्रमण कर चुका थ, मगर हर बार वे तीनों सिर बाहर करके त्रिकोण-सा घेरा बना लेते थे थे तथा अपने तेज और मजबूत सींगो से अपनी सुरक्षा करते थे| बैल शेर को भगा देते थे|
एक समय की बात है| महात्मा बुद्ध का एक शिष्य उनके पास गया| महात्मा के चरणों में झुककर प्रणाम कर निवेदन किया- “भगवान् मुझे देश के ऐसे अंचल में जाने की अनुमति दें जहाँ अत्यंत क्रूर और भयंकर जन-जातियाँ रहती हों|”
भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष का वध करनेकी वजह से हिरण्यकशिपु विष्णु विरोधी था और अपने विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद को मरवाने के लिए भी उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। फिर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकशिपु का वध किया था। खंभे से नृसिंह भगवान का प्रकट होना ईश्वर की शाश्वत, सर्वव्यापी उपस्थिति का ही प्रमाण है।
पक्षी और जानवर भिन्न जाति और स्वभाव के प्राणी हैं| कुछ पक्षी कुछ जानवरों को खा जाते हैं और कुछ जानवर पक्षियों का भक्षण करते है| यह भी आश्चर्य ही है कि अधिकांश एक-सा भोजन करते हैं| इसलिए कुछ मित्र हैं और कुछ शत्रु| उनमें लड़ाई चलती रहती है, किन्तु एक बार उनमें युद्ध छिड़ गया| पक्षियों में सर्वाधिक नुकसान बत्तखों का हुआ और जानवरों में सबसे अधिक हानि खरहे और चूहों को हुई|
प्राचीन समय की बात है| महाविद्वान कवि कालिदास को अपनी विद्वता पर अहंकार हो गया| उन्होंने बहुत से अवसरों पर उसका प्रदर्शन भी किया|
पुलत्स्य ऋषि के उत्कृष्ट कुल में जन्म लेने के बावजूद रावण का पराभव और अधोगति के अनेक कारणों में मुख्य रूप से दैविक एवं मायिक कारणों का उल्लेख किया जाता है। दैविक एवं प्रारब्ध से संबंधित कारणों में उन शापों की चर्चा की जाती है जिनकी वजह से उन्हें राक्षस योनि में पैदा होना पड़ा। मायिक स्तर पर शक्तियों के दुरुपयोग ने उनके तपस्या से अर्जित ज्ञान को नष्ट कर दिया था।
एक व्यापारी के पास एक गधा था| उसे अच्छा भोजन मिलाता था| वह मोटा और शक्तिशाली था| व्यापारी के पापस एक कुत्ता भी था| वह कुत्ते से खेलता था| कुत्ते उसकी गोद में बैठ जाता था, और पांव चाटता था| बदले में उसे रोटी, हड्डी और व्यापारी की प्यार भरी थपकी मिलाती थी|
संस्कृत भाषा का एक प्रसिद्ध ग्रंथ है-: ‘मृच्छ कटिकम्-| इस ग्रंथ में चारुदत ब्राहमण के उत्तम शील की चर्चा की है|
अगस्त्य मुनि ने आगे कहा, “एक दिन हिमालय प्रदेश में भ्रमण करते हुये रावण ने अमित तेजस्वी ब्रह्मर्षि कुशध्वज की कन्या वेदवती को तपस्या करते देखा। उस देखकर वह मुग्ध हो गया और उसके पास आकर उसका परिचय तथा अविवाहित रहने का कारण पूछा।
कछुए का एक राजा था| उसे राजा बृहस्पति के विवाह का निमंत्रण मिला| वह आलसी था, फलतः घर पर ही रह गया| विवाह के उत्सव में सम्मिलित नहीं हुआ| बृहस्पति नाराज हो गए| उन्होंने कछुए की पीठ पर अपना घर ढोने का शाप दे दिया|
एक बार की घटना है| फ्रांस में पहले राजतंत्र शासन था| एक समय वहाँ पर हेनरी चतुर्थ का शासन था| एक बार वह अपने राज्य के अधिकारियों के साथ किसी कार्यक्रम में जा रहे थे| रास्ते में एक भिक्षुक खड़ा था|
अगस्त्य मुनि ने कहना जारी रखा, “पिता की आज्ञा पाकर कैकसी विश्रवा के पास गई। उस समय भयंकर आँधी चल रही थी। आकाश में मेघ गरज रहे थे। कैकसी का अभिप्राय जानकर विश्रवा ने कहा कि भद्रे! तुम इस कुबेला में आई हो।
बहुत दिन पहले एक झील के किनारे एक बहुत बड़ा नगर था| नगर जितना बड़ा था उतना ही सुन्दर भी था| वहां अनेक मंदिर और शानदार इमारते थी|
जब श्रीराम अयोध्या में राज्य करने लगे तब एक दिन समस्त ऋषि-मुनि श्रीरघुनाथजी का अभिनन्दन करने के लिये अयोध्यापुरी में आये। श्रीरामचन्द्रजी ने उन सबका यथोचित सत्कार किया।
एक भूखा शेर शिकार की खोज में जंगल में घूम रहा था|
एक बार एक सैनिक घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जंगल जा रहा था| रास्ते में डाकुओं की एक बस्ती पड़ी| एक घर के दरवाजे के बाहर लटके पिंजरे में बैठा एक तोता चिल्ला उठा- “भागो, पकड़ लो, इसे मार डालो, इसका घोड़ा और माल-असबाब सब छीन लो|
प्राचीन काल में एक राजा थे। उनके कोई संतान नहीं थी। अत्याधिक पूजा-अर्चना व मन्नतों के पश्चात दैव योग से उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई।
एक तालाब में तीन मछलियां रहती थीं| उनकी आपस में दोस्ती तो थी लेकिन तीनों का स्वभाव अलग-अलग था|
एक समय की बात है| अचानक ओलों की वर्षा से सारी फसल नष्ट हो गई| कुरू प्रदेश में एक गाँव में हाथीवान रहते थे| इसी गाँव में एक निर्धन ऋषि उशस्ति चाकृायण अपनी पत्नी के साथ रहने लगे| गाँव में कहीं अनाज का दाना नहीं मिला|
उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। शिवगणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण उसका मित्र था। एक बार मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक अत्यंत तेजोमय ‘चिंतामणि’ प्रदान की। चंद्रसेन ने इसे गले में धारण किया तो उसका प्रभामंडल तो जगमगा ही उठा, साथ ही दूरस्थ देशों में उसकी यश-कीर्ति बढ़ने लगी। उस ‘मणि’ को प्राप्त करने के लिए दूसरे राजाओं ने प्रयास आरंभ कर दिए। कुछ ने प्रत्यक्षतः माँग की, कुछ ने विनती की।