परिवार, स्कूल तथा मीडिया को एकजुट होकर समाधान निकलना है! (प्रिन्सिपल की डांट से क्षुब्ध छात्र ललित ने खुदकुशी कर ली)
लखनऊ में 3 दिसम्बर 2016 को घटित एक समाचार के अनुसार कैथेड्रिल सीनियर सेकंेडरी स्कूल, लखनऊ के कक्षा 12 के पढ़ाई में टाॅपर छात्र ललित यादव ने पिता की लाइसंेसी रिवाॅल्वर से गोली मारकर मौत को गले लगा लिया। लखनऊ के मड़ियांव थाना क्षेत्र के केशवनगर में रहने वाले अमरनाथ यादव एसपी लखीमपुर के पेशकार है। परिजनों के मुताबिक, रोजाना की तरह ललित अपने छोटे भाई सुमित के साथ अपनी अपाचे बाइक से 3 दिसम्बर की सुबह भी स्कूल पढ़ने के लिए गए थे। छात्र के स्कूल पहुंचने के बाद प्रिन्सिपल फादर ने उसके पिता को फोन किया और बताया कि ललित ने अपनी बाइक से एक छात्रा के रिक्शे में टक्कर मार दी है। उस टक्कर लगने से रिक्शे पर बैठी छात्रा और उसका चालक सड़क पर गिर गये थे। प्रिन्सिपल की डांट से क्षुब्ध छात्र ललित ने घर आकर खुदकुशी कर ली। इस दुखद के घटना में दिवंगत छात्र ललित की आत्मा की शान्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं। परमपिता परमात्मा इस अपार दुःख को सहन करने की उनके परिवारजनों को शक्ति प्रदान करें।
शिक्षकों तथा प्रधानाचार्यों को समझना होगा कि आज के तकनीकी एवं वैश्विक युग में जी रहे बच्चे पहले के समय की तुलना में बड़े भावुक होते हैं उनसे कोई गलती होने पर मनोवैज्ञानिक ढंग से ही पेश आना समझदारी है। इस संबंध में तीन विशेषज्ञों के सुझाव इस प्रकार हैं:-
(1) लखनऊ के लोहिया अस्पताल के डा. देवाशीष शुक्ला का कहना है कि अगर बच्चे को एसेम्बली में बुलाकर डाटा गया तो यह उचित नहीं है। बच्चों को संयमित होने की शिक्षा नहीं मिल रही है।
(2) लखनऊ के डा. मलयकान्त सिंह, साइकियाट्रिस्ट का कहना है कि अगर बच्चा किसी की फटकार के बाद ऐसा कदम उठाता है तो आवेशशील व्यवहार (इंपल्सिव बिहेवियर) है जिसमें बच्चा अचानक ऐसा कदम उठाता है। इसमें पैरेंट्स की भी गलती है कि वे ऐसा हथियार बच्चों की पहुंच में रखते हैं। इसके अलावा यदि बच्चा चिड़चिड़ा हो रहा है तो वह डिप्रेशन का भी शिकार हो सकता है। पैरेंट्स को चाहिए वे बच्चे से दोस्ताना व्यवहार रखें और उसकी सुरक्षा के लिए केयरफुल रहें।
(3) प्रोफेसर रामगणेश यादव, पूर्व एचओडी सोशियोलाॅजी डिपार्टमेन्ट, लखनऊ यूनिवर्सिटी का कहना है कि पहले परिवार संयुक्त होते थे। अब न्यूक्लियर फैमिली का दौर है। यही पारिवारिक संरचना बच्चों को पेरेंट्स से दूर कर रही है। परिवार के सदस्यों का एक-दूसरे से कम्यूनिकेशन गैप हो जाता है। पेरेन्ट्स से बच्चे परेशानियां शेयर नही करते और हिंसक हो जाते हैं। यही वजह है कि मामूली बात पर बच्चे जोखिम में डालने से बाज नहीं आते।
परिवार, विद्यालय तथा समाज में आये दिन हो रही इस तरह की दुखद घटनायें हमें इसका उचित समाधान खोजने के लिए विवश करती है। बच्चों को निर्धारित विषयों की भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षायें भी देकर उसे संतुलित व्यक्ति बनाना परम आवश्यक है। साथ ही पारिवारिक एकता को आज प्राथमिकता देने की भी आवश्यकता है। विद्यालय में रोजाना होने वाली प्रार्थना सभा तथा अभिभावक मीटिंगों में बच्चों को पारिवारिक एकता के विचारों से अवगत कराया जाना चाहिए। विद्यालयों को अभिभावक की मीटिंगों में मनोवैज्ञानिकों को बुलाकर उनसे अभिभावकों को बच्चों के संतुलित जीवन के सन्दर्भ में मार्गदर्शन दिलाना चाहिए। बच्चों का शरीर से स्वस्थ होने के साथ ही साथ मन से भी संतुलित होना आवश्यक है।
किसी परिवार में जहाँ एकता है उस परिवार के सभी कार्यकलाप बहुत ही सुन्दर तरीके से चलते हैं, उस परिवार के सभी सदस्य अत्यधिक उन्नति करते हैं। संसार में वे सबसे अधिक समृद्धशाली बनते हैं। ऐसे परिवारों के आपसी सम्बन्ध व्यवस्थित होते हैं, वे सुख-शान्ति का उपभोग करते हैं, वे निर्विघ्न और उनकी स्थितियाँ सुनिश्चित होती है। वे सभी की प्रेरणा के òोत बन जाते हैं। ऐसा परिवार दिन-प्रतिदिन अपनी समृद्धि-सुख और अपने अटूट सम्मान में वृद्धि ही करता जाता है।
समाज में बढ़ रही घोर प्रतिस्पर्धा से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। संयुक्त परिवार टूटते चले जा रहे हैं और हम सभी केवल भौतिकता की इस अंधी आंधी में बहते चले जा रहे हैं। ऐसे में एक आधुनिक विद्यालय का यह सामाजिक उत्तरदायित्व है कि वे पारिवारिक एकता तथा सारी वसुधा को एक कुटुम्ब बनाने जैसे चरित्र वाले बालकों का निर्माण करें। इसके लिए उन्हें आज के युग में सभी बच्चों को सारे धर्मो की मूल शिक्षाओं का ज्ञान देना चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है।
बालक की प्रथम पाठशाला घर है। घरों में बहस के बजाय मीठी भाषा में तथा प्रेमपूर्ण वातावरण में आपसी परामर्श हो और परिवारजन जिस निष्कर्ष पर पहुँचे उसके बारे में यह सुनिश्चित कर लें कि वह परमात्मा को भी प्रसन्न करने वाला हो। कोई निर्णय ऐसा न हो जो परमात्मा की आध्यात्मिक शिक्षाओं के विरूद्ध हो। अनुशासित एवं संस्कारयुक्त पारिवारिक वातावरण में पले-बढ़े बालक ही विश्व शान्ति एवं विश्व एकता के स्वप्न को साकार कर विश्व का मार्गदर्शन कर सकते हैं। परिवार विश्व की सबसे छोटी एवं सशक्त इकाई है। बिना इस इकाई में एकता स्थापित हुए समाज, देश और विश्व में एकता की बात करना बेईमानी होगी। मेरा प्रबल विश्वास है कि यह लेख सारे विश्व के प्रत्येक परिवार को ‘पारिवारिक एकता’ के लिए रोजाना प्रयासरत तथा जागरूक रहने लिए प्रेरित करने में अवश्य सहायक होगा।
आज के युग तथा आज की परिस्थितियों में विश्व मंे सफल होने के लिए बच्चों को टोटल क्वालिटी पर्सन (टी0क्यू0पी0) बनाने के लिए स्कूल को जीवन की तीन वास्तविकताओं भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षायें देने वाला समाज के प्रकाश का केन्द्र अवश्य बनना चाहिए। टोटल क्वालिटी पर्सन ही टोटल क्वालिटी मैनेजर बनकर विश्व में बदलाव ला सकता है। उद्देश्यहीन तथा दिशाविहीन शिक्षा बालक को परमात्मा के ज्ञान से दूर कर देती है। उद्देश्यहीन शिक्षा एक बालक को विचारहीन, अबुद्धिमान, नास्तिक, टोटल डिफेक्टिव पर्सन, टोटल डिफेक्टिव मैनेजर तथा जीवन में असफल बनायेगी।
तुलसीदास जी कहते है – बड़े भाग्य मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथनि पावा।। अर्थात बड़े भाग्य से, अनके जन्मों के पुण्य से यह मनुष्य शरीर मिला है। इसलिए हम इसी पल से सजग हो जाएं कि यह कहीं व्यर्थ न चला जाये। हिन्दू धर्म के अनुसार 84 लाख पशु योनियों में जन्म लेने के बाद अपनी आत्मा का विकास करने के लिए एक सुअवसर के रूप में मानव जन्म मिला है। यदि मानव जीवन में रहकर भी हमने अपनी आत्मा का विकास नहीं किया तो पुनः 84 लाख पशु योनियों में जन्म लेकर उसके कष्ट भोगने होंगे। यह स्थिति कौड़ी में मानव जीवन के अनमोल उपहार को खोने के समान है। यह सिलसिला जन्म-जन्म तक चलता रहता है। मानव जीवन अनमोल उपहार है। बड़े भाग्य से यह मनुष्य तन मिला है। मानव जन्म व्यर्थ में नहीं खोना चाहिए।
शिक्षा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। जो जीवन पर्यन्त चलती है। मानव जीवन को उसकी तीनों वास्तविकताओं अर्थात भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा देकर बाल्यावस्था से ही उसे स्वस्थ नागरिक बनाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश हमारी वर्तमान शिक्षा उद्देश्यविहीन बन कर रह गयी है। हमने बच्चों को शिक्षा के द्वारा परमात्मा से नहीं जोड़ा। स्कूल समाज के प्रकाश का केन्द्र है अर्थात ईश्वरीय प्रकाश का केन्द्र है। बालक को पहले सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा देकर गुड अर्थात ईश्वरीय तथा फिर भौतिक शिक्षा अर्थात सभी विषयों का उत्कृष्ट ज्ञान देकर स्मार्ट बनाना है। इस प्रयास से एक स्वस्थ एवं सुखी समाज की परिकल्पना साकार होगी। परिवार, स्कूल तथा मीडिया के एकजुट होकर किये जाने प्रयास की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
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