Homeअतिथि पोस्टपरमात्मा अपनी सभी संतानों की हिफाजत करता है!

परमात्मा अपनी सभी संतानों की हिफाजत करता है!

परमात्मा अपनी सभी संतानों की हिफाजत करता है!

जीवन में मिलने वाले सभी दुःखों का कारण हम परमात्मा को मान लेते हैं:-

जिंदगी में कई बार हम बहुत खुश होते हैं तो कभी दुःखी हो जाते हैं। जब हम सुख में रहते हैं तो इसकी वजह हम अपने को व अपनी योग्यता को मानते हैं, लेकिन जब हम दुःख में रहते हैं तो इसका कारण हम परमात्मा को मान लेते हैं। तब हम कहने लगते है कि यह सब परमात्मा की देन है। वास्तव में अगर हम अपने जीवन के पिछले कुछ वर्षो को देखें तो हम पायेंगे कि इस समय में हमें सुख भी आया और दुःख भी आया। लेकिन हमें याद केवल दुःख ही रहते हैं। एक कहानी है कि एक बार एक व्यक्ति का सब कुछ चला गया। उसकी नौकरी भी चली गई। जिंदगी से हताश होकर उस व्यक्ति ने आत्महत्या करने की सोची और जंगल की तरफ चल दिया। जंगल में पहुँच कर उस व्यक्ति ने सोचा कि आत्महत्या करने से पहले मैं एक बार परमात्मा की प्रार्थना अवश्य करूगाँ। उनसे आखरी बार बातचीत करूगाँ और उसके बार मैं अपने जीवन का अन्त कर लूँगा।

परमात्मा अपनी बनाई हुई सभी चीजों की बराबरी से हिफाजत करता है:-

जंगल में पहँुचकर वह व्यक्ति कहने लगा कि हे परमात्मा आप मुझे कोई भी एक ऐसा कारण बता दीजिए जिससे कि मैं यह कह सकूँ कि मैं अपने जीवन को अभी समाप्त नही करूँगा। उसी समय परमात्मा की ओर से उसको उत्तर आया कि तुम जंगल में देखों! इस जंगल में तुम्हें दो चीज दिखाई देगी। पहली चीज है घास और दूसरी चीज है बांस का पेड़। इन दोनों की ही मैं बराबरी से हिफाजत करता हूँ। तुम देखों कि घास कितनी देजी के साथ बढ़ने के साथ ही फैलती चली जाती है जबकि बांस के पेड़ में लगभग 5 सालों के बाद कहीं जाकर एक कोपल निकलती है। लेकिन जो कोपल 5 सालों के बाद निकलती है वह अगले 6 महीनों में बहुत बड़ी डाल का रूप ले लेती है।

हमें अपनी जिंदगी को बांस के पेड़ की तरह बनाना है:-

इसका कारण यह है कि बांस का पेड़ शुरू के 5 सालों तक जमीन के अंदर अपनी जड़ को फैलाकर उसको मजबूत बनाता चला जाता है। ठीक इसी प्रकार तुम्हें अभी तक जो सफलता नहीं मिली, उसका कारण यह था कि तुम इतने सालों तक अपनी जड़ों को मजबूत कर रहे थे। तुम अपनी जड़ों को जमा रहे थे। इस प्रकार तुम्हें अपनी सफलता को नहीं देखना चाहिए। तुम्हें दूसरों को मिलने वाली सफलता को भी नहीं देखना चाहिए बल्कि तुम्हें यह देखना चाहिए कि तुम अपने को क्या बना रहे हो? तुम्हें देखना चाहिए कि तुम बांस के पेड़ की तरह ही अपनी जड़ को जमा रहे हो या नहीं? परमात्मा द्वारा दिये गये इस उत्तर को सुनकर वह व्यक्ति जो अपनी जिंदगी को खत्म करने के लिए जंगल में गया था, अपने मरने के ख्याल को छोड़कर वापस लौट आया क्योंकि उसे आत्महत्या न करने का एक कारण पता चल चुका था। उसको यह पता चल चुका था कि हमंे जीवन के अन्त में क्या प्राप्त होता है, इसे देखना चाहिए।

जीवन में हमें दो प्रकार के दुःखों से होकर गुजरना पड़ता है:-

इस युग के अवतार बहाउल्लाह ने कहा है कि हमारे जीवन में दो प्रकार के दुःख आते हैं। पहले प्रकार का दुःख वह होता हैं जो हमें हमारे गलत कार्यो के प्रतिफल के रूप में हमें प्राप्त होता है। दूसरे प्रकार का दुःख वह होता है जो हमें परमात्मा द्वारा बताये हुए रास्ते पर चलते हुए मिलता है। परमात्मा के तरफ से हमें जो दुःख प्राप्त होते हैं, वे ठीक हैं। उनको हमें खुशी-खुशी धारण करना चाहिए। लेकिन जो फल हमारे गलत कर्मो के कारण हमें प्राप्त होते हैं, उन्हें हमें जीवन में दुबारा नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के दुखों में शराब पीकर गाड़ी चलनाना और फिर दुर्घटना का शिकर होना आदि शामिल है। इसलिए हमें परमात्मा के द्वारा बताये हुए रास्ते पर ही चलना चाहिए और इस रास्ते पर चलते हुए यदि हमें कष्ट भी आये, दुःख भी आये तो हमें इसको परमात्मा की अहैतुकी कृपा समझकर ग्रहण करना चाहिए।

घमण्ड अग्नि के समान होती है:-

कई बार ऐसा होता है कि हम किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किये गये कार्य के लिए उसे धन्यवाद नहीं देते। उसका कारण यह भी हो सकता है कि हम बहुत ज्यादा घमंड में रहते हैं। ऐसे में हम कहते हैं कि यह तो उसका काम था इसलिए उसे तो यह करना ही था। ऐसे में हम उसको धन्यवाद क्यों दें? अब्दुल बहा ने कहा है कि हम लोग घमण्डी इसलिए हो जाते हैं क्योंकि हमारे अंदर विनम्रता नहीं होती है। अब्दुल बहा के अनुसार घमण्ड अग्नि के समान होती है। इसमें चाहे जितनी भी चीजें डाली जायें यह और भी अधिक बढ़ती ही जाती है। इसलिए हमें घमण्डी नहीं होना चाहि बल्कि हमें धन्यवाद देने वाला होना चाहिए।


विनम्रता का गुण हमें पृथ्वी से सीखना चाहिए:-

पृथ्वी के अन्दर तीन गुण होते हैं। पहला है- ईमानदारी। पृथ्वी में कोई भी रत्न छिपाकर रख दिया जाये वह हमकों वैसे ही वापस मिल जाती हैं। पृथ्वी का दूसरा गुण है – उदारता का। पृथ्वी उदार होती है। पृथ्वी में अगर आप एक मुठ्ठी दाना डालते हैं तो पृथ्वी उसके बदले हमें कई गुना फसल वापस देती है। पृथ्वी का तीसरा गुण यह कि वह धैर्यवान होती है। हम पृथ्वी के ऊपर चलते है। धूल उड़ाते हैं, लेकिन तब भी यह हमें अपने ऊपर चलने देती है। यह कभी भी हमसे यह नहीं कहती कि तुम मुझ पर क्यों चल रहे हो? इसलिए विनम्रता सीखने के लिए हमें पृथ्वी का उदाहरण लेना चाहिये।


जब हम सम्पन्न हो जायें तो हमें उदार होना चाहिए:-

भगवान कृष्ण ने भगवत्गीता में बहुत अच्छा संदेश दिया है कि हमें खुशी और दुःख में हमेशा समान रहना चाहिए। हमें आराम में और तकलीफ में बराबर रहना चाहिए। भगवान कृष्ण ने कहा है कि वही लोग मेरे सच्चे भक्त हैं जो दुःख और सुख दोनों में समान व्यवहार करते हैं। 5000 वर्ष पूर्व परमात्मा ने हमें इतने अच्छे त्याग का सबक दिया। इसलिए जब हम सम्पन्न हो जायंे तो हमें उदार होना चाहिए और जब हमारे पास दुःख आये तो हमें परमात्मा को धन्यवाद देना चाहिए। क्योंकि दुःख में ही हमें परमात्मा का नाम भी याद आता है और दुःख में ही हम सही कामों या गुणों की ओर बढ़ने लगते हैं। सुख में तो हम परमात्मा और उसके गुणों को भूले रहते हैं।


परमात्मा ने तो हमें सब कुछ दे दिया है:-

परमपिता परमात्मा ने तो हमें सब कुछ दे दिया है। वास्तव में हमें इसके लिए परमात्मा को धन्यवाद देना चाहिए। प्रभु ने हमें इस योग्य बनाया है कि हम वे सभी काम सकते हैं जो परमात्मा हमसे चाहता है। इस प्रकार हमें अपने जीवन में चाहे दुःख मिले या सुख हमें सभी के लिए परमपिता परमात्मा को बारम्बार धन्यवाद देना चाहिए। हमें किसी भी व्यक्ति को केवल शब्दों के माध्यम से ही धन्यवाद नहीं देना चाहिए। वास्तव में किसी को धन्यवाद देते समय हमारे अंदर धन्यवाद देने की कृतज्ञता का भाव होने के साथ ही साथ हमें उस व्यक्ति को कुछ उपहार भी साथ में देना चाहिए।


परमात्मा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए हमें उसकी सभी संतानों से प्यार करना चाहिए:-

ईसा मसीह ने कहा था कि ‘‘तुम्हारें हृदय में शांति आ जाये तो शांति आने के लिए तुम प्रभु को धन्यवाद दो।’’ परमात्मा को धन्यवाद देने का सबसे अच्छा उपाय है कि हम उसकी सभी संतानों की बराबर से हिफाजत करें। एक-दूसरें को प्यार करें। एक-दूसरें के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें। सभी को धन्यवाद दें। इस प्रकार जब हम दूसरों को प्यार करते हैं, दूसरों द्वारा किये गये कार्यों के लिए हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करतें हैं, उनको धन्यवाद देते हैं तो वास्तव में ऐसा करके हम परमात्मा के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, परमात्मा को धन्यवाद देते हैं।

विश्व में शांति की स्थापना के लिए महिलाओं को सशक्त बनायें!डाॅ. भारती गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-संचालिका,

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ