परमाणु शस्त्रों के ‘‘सम्पूर्ण उन्मूलन’’ हेतु सभी देशों को एकजुटता दिखाने का समय अब आ गया है! – डा. जगदीश गांधी
(1) परमाणु शस्त्रों के सम्पूर्ण उन्मूलन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दिवस :-
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस वर्ष पहली बार परमाणु शस्त्रों के सम्पूर्ण उन्मूलन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय दिवस 26 सितम्बर 2014 को मनाने की घोषणा की गयी। यह दिवस मानव जाति को पूरी तरह से परमाणु शस्त्रों के निर्माण पर प्रमुखता से रोक लगाने के लिए प्रेरित करता है। यह दिवस जन समुदाय तथा उसके लीडर्स को निःशस्त्रीकरण से होने वाले सामाजिक तथा आर्थिक लाभों के बारे में शिक्षित करने का अवसर प्रदान करता है। टोटल निःशस्त्रीकरण संयुक्त राष्ट्र संघ सबसे प्रारम्भिक लक्ष्यों में से एक है। यह दिवस परमाणु शस्त्रों के सम्पूर्ण उन्मूलन के लिए सभी देशों को प्रेरित करता है। यह दिवस महज एक मनाने का दिन नही है। यह दिवस इस बात के चिन्तन-मनन का दिन है कि हम कैसे अपनी वसुंधरा को बचा सकते हैं। धरती को परमाणु शस्त्रों की होड़ से बचाने तथा इसके निर्माण पर पूरी तरह रोक लगाने के ऐसे कई तरीके हैं जिसके लिए हम अकेले और सामूहिक रूप से वातावरण बनाने में अपना यथाशक्ति योगदान दे सकते हैं। हमें प्रत्येक दिन इस दिशा में कोशिश करते रहना चाहिए।
(2) युद्ध की विभीषका से भरी हृदय को छू लेने वाली एक मार्मिक कविता :-
“जंग और नहीं“
जंग तो आखिर जंग है, इधर है या उधर है
ढेर है लाशों के, नजर पड़े जिधर है
मत मना जश्न, दुश्मन की मौत पे
वे भी तो इंसान है
कर रहम उन मासूम रिश्तों पे
जुड़े दुश्मन संग जिनके अरमान है
किसी की राखी, किसी का सिंदूर
आज पहुँचा श्मशान है
देख के हालत अपनी दुनिया की
नीली छतरी वाला परेशान है
(3) जब दो परमाणु बमों के विस्फोट से मानवता कराह उठी :-
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 6 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल बॉय’ नाम का यूरेनियम बम का विस्फोट किया था। इसके बाद 9 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने जापान के नागासाकी नगर पर ‘फैट मैन’ नाम का प्लूटोनियम बम गिराया था। इसके साथ ही तीन दिन पूर्व इन दोनों परमाणु बमों का हिरोशिमा एवं नागासाकी नगर तथा इन दोनों शहरों में रहने वाले लोगों पर जो प्रभाव पड़ा वे इस प्रकार हैं – हिरोशिमा में गिरे बम के कारण
13 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही फैल गई थी। शहर की 60 प्रतिशत से अधिक इमारतें नष्ट हो गई। एक अनुमान के अनुसार हिरोशिमा की कुल 3 लाख 50 हजार की आबादी में से 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए थे। इनमें सैनिक और वह लोग भी शामिल थे जो बाद में परमाणु विकिरण की वजह से मारे गये। इसके पश्चात् भी बहुत से लोग लंबी बीमारी कैंसर और अपंगता के भी शिकार हुए।
(4) आज भी इन दो शहरों पर गिराये गये बमों का असर देखा जा सकता है :-
तीन दिनों बाद अमरीका ने नागासाकी शहर पर पहले से भी बड़ा हमला किया, जिसमें लगभग 74 हजार लोग मारे गए थे और लगभग इतनी ही संख्या में लोग घायल हुए थे। नागासाकी शहर के पहाड़ों से घिरे होने के कारण केवल 6.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही तबाही फैल पाई। इसके अलावा इन दोनों बमों के रेडिएशन के प्रभाव से बाद के वर्षों में भी हजारों बच्चों में कैंसर जैसी बीमारी होती रही और वे असमय काल के ग्रास में समाते रहें। इन बमों से निकलने वाली विषैली गैसों ने 18000 किलोमीटर तक के क्षेत्र को अपने प्रभाव में ले लिया था। इन बमों के प्रभाव से इतनी ऊर्जा पैदा हुई जिससे 20,000 फॉरेनहाइट डिग्री तक गर्मी पैदा हुई जिससे बिल्डिंग व मकान आदि कागजों की तरह उड़ने लगे। इन बमों के धुंए की गुबार 18 किमी तक ऊँची उठ गई थी। इन बमों के प्रभाव से बच्चों व बड़ों की चमड़ी तक गल कर आपस में चिपक गई।
(5) बमों के जोर से नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय कानून से विश्व को कुटुम्ब बनाया जा सकता है :-
एक आंकड़े के अनुसार वर्तमान में विश्व में परमाणु संपन्न देश व उनके द्वारा निर्मित परमाणु बमों की लगभग संख्या इस प्रकार हैं – यूनाइटेड स्टेट्स अमेरिका – 10,640 परमाणु बम, रूस – 10,000 परमाणु बम, फ्रांस – 464 परमाणु बम, चीन – 420 परमाणु बम, इजरायल – 200 परमाणु बम, यूनाइटेड किडंगम – 200 परमाणु बम, भारत – 95 परमाणु बम तथा पाकिस्तान – 50 परमाणु बम। इसके अलावा 80 देशों ने बायोलॉजीकल तथा केमीकल्स शस्त्र विकसित कर लिये हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन बमों को बनाने में जितनी अकूत धनराशि व्यय हुई हैं इन्हें नष्ट करने में उससे काफी अधिक धनराशि व्यय होगी। वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि आतंकवादियों के पास भी खतरनाक शस्त्रों का जखीरा जमा हो चुका है।
(6) अब हिरोशिमा और नागासाकी जैसी घटनाएं दोहराई न जायें :-
आज की परिस्थितियाँ ऐसी हैं, जिनमें मनुष्य तबाही की ओर बढ़ता ही चला जा रहा है। अब तक दो महायुद्ध हो चुके हैं और अब तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो दुनियाँ का अस्तित्व ही नहीं रहेगा; क्योंकि वर्तमान में घातक शस्त्र इतने जबरदस्त बने हैं, जो आज दुनिया में कहीं भी चला दिए गए तो एक परमाणु बम पूरी दुनियाँ को समाप्त कर देने के लिए काफी है। नागासाकी और हिरोशिमा पर तो आज की तुलना में दो छोटे-छोटे बम गिराए गए थे। आज उनकी तुलना में एक लाख गुनी ताकत के बम बनकर तैयार हैं। यदि एक सिरफिरा आदमी बस, एक बम चला दे, तो करोड़ों आदमी तो वैसे ही मर जाएँगे। बाकी बचे आदमियों के लिए हवा जहर बन जाएगी। जहरीली हवा, जहरीला पानी, जहरीले अनाज और जहरीले घास-पात को खा करके आदमी अधिक समय तक जिंदा नहीं रह सकता।
(7) वसुधैव कुटुम्बकम् तथा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ही सर्वमान्य समाधान है :-
हमारा मानना है कि दुनिया के अनेक देशों के द्वारा निर्मित परमाणु बमों को निष्क्रिय करते हुए सारे विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना के लिए (1) वसुधैव कुटुम्बकम् तथा (2) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के विश्व एकता एवं विश्व शान्ति के प्राविधानों को संसार के समक्ष एकमात्र एवं सर्वमान्य समाधान के रूप में प्रस्तुत करना होगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 भारत सरकार और उसके समस्त सरकारी तंत्र को अंतर्राष्ट्रीय शांति, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा तथा विश्व एकता को बढ़ावा देने के प्रयास के लिए संवैधानिक जनादेश देता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के चार प्राविधानों में कहा गया है कि :- भारत का गणराज्य :- (क) संसार के विभिन्न राष्ट्रों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए प्रयत्न करेगा (ख) संसार के विभिन्न राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण एवं सम्मानजनक सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करेगा (ग) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान की अभिवृद्धि करेगा तथा (घ) अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षो को मध्यस्थम् (आरबीट्रेशन) द्वारा हल करने का प्रयत्न करेगा।
(8) मनुष्य को शान्तिप्रिय तथा विचारवान बनाने की श्रेष्ठ अवस्था बचपन है :-
यह सही है कि युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में पैदा होते हैं। इसलिए मानव मस्तिष्क में ही हमें बचपन से ही शान्ति के विचार डालने होंगे। चूंकि मनुष्य को विचारवान बनाने की श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। इसलिए संसार के प्रत्येक बालक को विश्व एकता एवं विश्व शांति की शिक्षा बचपन से अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। वास्तव में मानव इतिहास में वह समय आ गया है जब शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन के सबसे शक्तिशाली हथियार के रूप में प्रयोग करते हुए विश्व भर में हो रही उथल-पुथल का समाधान विश्व एकता तथा विश्व शान्ति की शिक्षा द्वारा प्रस्तुत करना चाहिए। अगले साल संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी 70वीं सालगिरह मनाने जा रहा है। इसलिए यह मौका है, जब इसकी प्रासंगिकता को बरकरार रखने के लिए बड़े बदलाव किए जाएं। हम सभी जानते हैं कि 20वीं सदी की परिस्थितियों के ढ़ाचे पर संयुक्त राष्ट्र संघ 21वीं शताब्दी की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकता है। इसलिए इसे और अधिक लोकतांत्रिक बनाने की जरूरत है।
(9) मानवता के लिए शांति ही एकमात्र और सर्वमान्य रास्ता :-
हिरोशिमा एवं नागासाकी पर हुए परमाणु हमले के बाद सारे विश्व ने यह जान लिया है कि शान्ति का रास्ता ही सबसे अच्छा और मानवीय है। लेकिन इस परमाणु हमले की विभीषिका को जानने के बाद भी विश्व के अधिकांश देश परमाणु हथियारों की होड़ में शामिल हैं। लेकिन हमें अब यह समझना होगा की अगर फिर से तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो उसमें स्वाभाविक तौर पर परमाणु बम से हमलें होंगे जिससे सम्पूर्ण मानवता के अस्तित्व के ही समाप्त हो जाने का खतरा है। इसलिए विश्व के सभी देशों को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में परमाणु हमलें न होने पायें क्योंकि मानवता के लिए शांति ही एकमात्र और सर्वमान्य रास्ता है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान करके विश्व संसद के रूप में परिवर्तित करने की समय रहते परम आवश्यकता है। इस एक समझदारीपूर्ण कदम से एक न्यायप्रिय विश्व व्यवस्था के अन्तर्गत सुरक्षित विश्व का गठन संभव होगा।
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ