हमारा जीवन तेरे हवाले प्रभु इसे पग पग तू ही सम्भाल! – डा. जगदीश गांधी
(1) मेरा जीवन तेरे हवाले प्रभु इसे पग पग तू ही सम्भाल :-
सांचा बस एक प्रभु का नाम, मन रे जप ले सुबह और शाम। वह अमृत का सच्चा सागर, क्यों भटके प्यासा। इस अमृत से प्यास बुझा ले, दूर हो तेरी निराशा। हर मुश्किल में वह ही आकर सबको धीर बांधाये। संकट में इस नैया को पल में कर देता पार। वह घट-घट के अंतरयामी वह ही पालनहारा। हर निर्बल का वह ही एक सहारा। मेरा जीवन तेरे हवाले प्रभु इसे पग-पग तू ही सम्भाल। भव सागर में जीवन नैया डोल रही है ओ रखवैया। इसे अब तो आकर बचा ले। प्रभु इसे तू ही सम्भाल। हे प्रभु अपनी शरण में ले लो। यह जीवन है तुझसे पाया। सब तेरे कोई न पराया। यह जीवन तुझ पे वारे मेरा जीवन तेरे हवाले।
(2) सारा जग परिवार है अपना कोई नहीं है पराया :-
सांसां का क्या भरोसा रूक जायें कब कहां पर। प्रभु का नाम जप ले वही आसरा यहां पर। मत हॅस कभी किसी पे, न सता कभी किसी को। न जाने कल को तेरा क्या हाल हो यहां पर। जो हंस जैसा जीवन चाहते हो मेरे मित्र तो हम चुन ले गुणों के मोती बिखरे जहां जहां पर। करें कर्म इतना ऊँचा कि बुलन्दियों को छू लें। इज्जत से नाम हमारा आ जायें हर जुंबा पर। जैसी नजर से देखा हमने इस जग को ठीक वैसा ही हमने इसे पाया। सारा जग परिवार है अपना कोई नहीं है पराया। सभी धर्मों की एक ही सीख- सोचो भला, करो भला। जीवन का सुन्दरतम खेल बना है, ध्यान से खेलों मेरे भाई।
(3) यह सारी वसुधा एक है :-
प्रभु मेरे जीवन का उद्धार कर दो, भंवर में है नैया इसे पार कर दो। मेरे मन पे मेरा अधिकार कर दो, मैं गाऊ सदा तेरे गीत। तन मन में मेरे उत्साह का संचार कर दो। मुझमें विश्व भर के लिए प्यार भर दो। लोक कल्याण के लिए मुझे तैयार कर दो। धरती है एक, आसमान एक है। फूल हैं अनेक बागवान एक है। वही सूर्य की सब जगह है सवारी, यह वसुधा है जननी हमारी तुम्हारी। कुटुम्बी भले दूर हों किन्तु यह सारी वसुधा एक है। इस संसार रूपी मेले में परमपिता परमात्मा का हाथ सदैव थामे रहना चाहिए। वरना संसार की भीड़ में भटक जाना निश्चित है। परमात्मा ने अपना आशीर्वाद देने में कोई कमी नहीं रखी है। धरती, अम्बर, पर्वत जहाँ देखो उसके ही विराट स्वरूप के दर्शन होते हैं। यह सृष्टि उसकी रचना है। हर व्यक्ति उसका प्रतिरूप है। जीवन तब जीवन बनता है जब जीवन का आधार मिले।
(4) काम करो ऐसे कि पहचान बन जायें :-
उठ जाग रे मुसाफिर अब हो चला सवेरा। पलकें खोल प्यारे अब मिट गया अन्धेरा। प्राची में पौ फटी है, पक्षी चहचहा रहे हैं। लाली लिए खड़ी है ऊषा काल की बेला तुझे जगाने। यह रंग है क्षणिक सा आखिर उठाओ डेरा। साथी चले गये हैं तू सो रहा अभी रे। झट चेत चेतना तू, घर में घुसा लुटेरा। काम करो ऐसे कि पहचान बन जायें, हर कदम चलो ऐसे कि निशान बन जाये, यह जिंदगी तो सब काट लेते हैं, जिन्दगी ऐसे जियो कि मिसाल बन जाये।
(5) बच्चों के भविष्य की सुरक्षा के लिए धरती को सुरक्षित बनाना चाहिए :-
यह है जगने की बेला, अब न सोना चाहिए पावन होना चाहिए। मानव तन रत्न मिला है सचमुच सौभाग्य खिला है, कौड़ी में इसे नहीं खोना चाहिए। अति श्रम से मिला जीवन नैया को किनारा। तट पर आकर जीवन नैया को नहीं डुबोना चाहिए। यूँ ही आपसी मतभेदों में जीवन खोना नहीं चाहिए। इसी प्रकार करोड़ों वर्षों से संजोयी यह हरियाली भरी धरती प्यारी मिली है इसे आपसी मतभेदों में यूँ ही खोना नहीं चाहिए। युद्धों के द्वारा नहीं वरन् प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के द्वारा इस प्यारी प्रभु प्रदत्त धरती को वर्तमान तथा आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की सुरक्षा के लिए सुरक्षित बनाना चाहिए।
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ