हम सबकी जिम्मेदारी, मिलकर बनाये दुनियाँ प्यारी
मानव जाति के अन्नदाता किसान को जमीन को कागजी दांव-पेच से आगे एक महान उद्देश्य से भरे जीवन की तरह देखना चाहिए। कागजी दांव-पेच को हम एक किसान की सांसारिक माया कह सकते हैं, लेकिन अब जमीन पर पौधे लगाने की योजना है, ताकि हमारा सांसारिक मोह केवल जमीनी कागज का न रहे, बल्कि जीवन का एक मकसद बनकर अन्नदाता तथा प्रकृति-पर्यावरण से भी जुड़ा रहे। किसान को अपने उत्तम खेती के पेशे का उसे पूरा आनंद उठाना है। सब्सिडी का लोभ और कर्ज की लालसा किसान को कमजोर करती है। जमीन बेचने की लत से छुटकारा तभी मिलेगा, जब हम धरती की गोद में खेलेंगे, पौधे लगाएंगे। जमीन-धरती हमारी माता है। परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। केवल धरती मां के एक टूकड़े से नहीं वरन् पूरी धरती मां से प्रेम करना है। धरती मां की गोद में खेलकूद कर हम बड़े होते हैं। धरती मां को हमने बमों से घायल कर दिया है। शक्तिशाली देशों की परमाणु बमों के होड़ तथा प्रदुषण धरती की हवा, पानी तथा फसल जहरीली होती जा रही है।
अक्सर हमारी पूरी उम्र गुजर जाती है और यह तय ही नहीं कर पाते कि हम यहां हैं क्यों? इससे हमारी जीवन की गुणवत्ता दोयम दर्जे की हो जाती है। गुणवत्ता सुधारनी है, तो हमें पहले-पहल बस इतना करना चाहिए कि इसका एक उद्देश्य तय करें। इतने भर से जीवन में आमूल-चूल बदलाव आ सकता है। पैसा, करियर आदि चीजों से हटकर बस हम इतना ठान लें कि कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि उसके पूरा होने के बाद शांति और तसल्ली के साथ मर पाएं, तो समझिए जीवन यात्रा ठीक होगी। जीवन का मकसद सदैव हमारे सामने होने से राह की बाधायें परेशान नहीं करती हैं वरन् वे जीवन के सफर में एक नया अनुभव छोड़ जाती है। प्रत्येक क्षण में मनुष्य के लिए बहुत कुछ अच्छा है। वर्ष में 1 जनवरी का केवल एक दिन ही नया नहीं है वरन् प्रत्येक सुबह एक नया दिन तथा रात्रि में मृत्यु की गोद में सोने का अहसास लेकर आती है।
ओलंपिक में नौका रेस के मुकाबले के दौरान नाविक प्रतियोगी लाॅरेन्स एकाएक अपने घायल प्रतियोगी की मदद के लिए रूक गए। नतीजा यह हुआ कि वह रेस में सबसे पीछे रहे। उन्होंने जीतने की इच्छा से अधिक दूसरे के जीवन को महत्व दिया, इसलिए उनके लिए सबसे अधिक तालियां बजी। उन्होंने वह हासिल कर लिया, जो जीतने वाले के लिए एक सपना होता है। बर्तोल्त ब्रेख्त अपनी कविता में कहते हैं- हमारा उद्देश्य यह न हो कि हम एक बेहतर इंसान बने, बल्कि यह हो कि हम एक बेहतर समाज से विदा ले। रवीन्द्र नाथ टैगोर कहते है कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन को समय के किनारे पड़ी हुई ओस की भांति हल्के-हल्के नाचने दे। यह नाच तभी हो सकता है, जब हमारा मन ओस की तरह हल्का हो। शुद्ध, दयालु तथा प्रकाशित हृदय हो। हृदय में परहित के लिए जगह हो। आध्यात्मिक गुरू तेजश्री कहते है कि दुनिया वैसी नहीं है जैसी हमें दिखाई देती है वरन् दुनिया वैसी है जिस दृष्टिकोण-विचार से हम उसे देखते हैं।
पंजाब केसरी के वरिष्ठ नागरिक केसरी क्ल्ब की चेयरपर्सन श्रीमती किरण चैपड़ा के अनुसार पिछले दिनों मैंने काॅफी टेबल बुक ‘बेटिया’ लांच की, जिसमें देश के हर फील्ड से प्रसिद्ध बेटियां, चाहे वह राजनीतिक, स्पोट्र्स, एक्टिंग, सामाजिक, पत्रकारिता क्षेत्र को शामिल किया, जिसका उद्देश्य था कि देश की हर आम-खास बेटी जाने कि वह किसी से कम नहीं, वह भी उनकी तरह हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती है। आज भ्रूण हत्या करने वाले भी सोच लें कि बेटी है तो परिवार, समाज, देश है। श्रीमती किरण चैपड़ा के नारियों तथा वरिष्ठ नागरिकों को आगे बढ़ाने के उत्कृष्ट जज्बे को लाखों सलाम।
बुढ़ापा जीवन का एक अटूट सत्य है। बुढ़ापा और गरीबी से जिंदगी अभिशाप बन जाती है। हम बुजुर्गों का ऐसा सहारा बनें, ताकि उन्हें बुढ़ापा अभिशाप नहीं अनुभवों का खजाना महसूस हो। आओ ऐसा संसार बसाएं जहां सुखी-दुखी लोग अपने आपको अकेला, असहाय न महसूस करें और आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करें। वृद्धजनों का सम्मान होना चाहिए। सरकारी तथा निजी संस्थाओं को ओल्ड ऐज होम अधिक से अधिक बनाना चाहिए। ताकि वरिष्ठ नागरिक अपने हम उम्र के लोगों के साथ मजे से हर पल जीवन जीते हुए संसार से विदा हो।
23 साल की उम्र में रितेश बनें अरबपति। छोटी सी उम्र सिम कार्ड बेचकर गुजारा करने वाले रितेश अग्रवाल आज भारत के सफलतम उद्यमियों में से एक हो गए हैं। एक समय रितेश इंजीनियरिग की परीक्षा देना चाहते थे परंतु आज मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे देश के नामी अरबपतियों में से एक हैं। वह ओयो रूम्स के संस्थापक है। कुदरत में भरपूर है। जैसा हम चाहते हैं तथा वैसा करते हैं तो सफलता हमारे कदम चूमती है। सकारात्मक दृष्टिकोण का भी सफलता में काफी श्रेय है। श्रेष्ठ भावना यह है कि कैसे करें ईश्वर की नौकरी? रितेश की कहानी एक जिम्मेदार इंसान की कहानी है समझ मिलने के बाद। बड़बोले बनने से अच्छा है कि सच्चे कर्मयोगी बनने की कला सीखे।
असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद पर चयनित हुए उपदेश कुमार वत्स का कहना है कि सिर्फ आगे देखेंगे, तभी आगे बढ़ पाएंगे। मैनेज करना आपके हाथ में होता है। यह बस इस पर निर्भर करता है कि आपकी मानसिकता तैयारी को लेकर कितनी सकारात्मक है। एक समय मेरे मन में जाॅब छोड़कर तैयारी करने का विचार आया, लेकिन फिर लगा कि मैं मैनेज कर सकता हूं और करके रहंूगा। आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो पूरे मन से करें। फोकस के अभाव में की गई तैयारी, आपको पुनः उसी जगह खड़ा कर देती है, जहां से आपने शुरूआत की थी। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नैया पार नहीं होती।
बहादुर बच्चों से मुखातिब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्हें मन की शक्ति मजबूत बनाने की जरूरत है। इस दौरान पीएम ने 25 बच्चों को गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय वीरता सम्मान से नवाजा। देश के 25 बहादुर बच्चों के साहसिक जज्बे को हमारी ओर से लाखों सलाम। विश्व के किसी भी एक बच्चे की शक्ल और उसके अंगूठे की छाप किसी दूसरे बच्चे से कभी नहीं मिलती है। ईश्वर ने प्रत्येक बच्चे को अलग एवं विशिष्ट बनाया है। ये बच्चे अपनी अलग-अलग प्रतिभा एवं विशेषता के कारण अपने चुने हुए कार्य क्षेत्र में सबसे सर्वश्रेष्ठ बन सकते हैं। माता-पिता तथा शिक्षक भावी पीढ़ी को मानवजाति की सेवा के लिए तैयार करें। क्या? क्यों? और कैसे? से वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शुरूआत होती है। बच्चों की जिज्ञासा का समाधान ध्येयपूर्वक करना चाहिए। बच्चों का बाल्यावस्था से ही वैज्ञानिक तथा विश्वव्यापी दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए।
थाईलैंड का खूबसूरत राज्य फुकेत पर्यटकों का पसंदीदा स्थल होने के साथ ही हाथियों का आश्रयस्थल भी बनकर उभरा है। फुकेत एलिफैंट सेंचुरी में बीमार, घयाल व वृद्ध हाथियों को रखा जाता है। उनकी देखभाल व सामान्य वातावरण देने की कोशिश की जाती है। यहां उन्हें किसी शो में या पर्यटकों को घुमाने या फिर मंदिर के सेवा कार्य में नहीं लगाया जाता है। बल्कि यहां ऐसी जगहों से मुक्त कराए हाथियों को रखा जाता है। हाथियों को यहां न तो जंजीरों में बांधा जाता है न ही बाड़ों में बंद किया जाता है। धरती पर प्रत्येक जीव का समान अधिकार है। धरती पर पलने वाले प्रत्येक जीव के अस्तित्व का हमें पूरा सम्मान करना चाहिए। मनुष्य का श्रेष्ठ प्राणी होने के नाते यह नैतिक दायित्व है।
बांग्लादेश सरकार ने हाल ही में स्कूल में पढ़ाई जाने वाली बांग्ला भाषा कि किताबों से रबिंद्रनाथ टैगोर और जाने-माने बांग्ला लेखक शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कविता और कहानी हटा दी है। सारे विश्व में लोकप्रिय महापुरूष, साहित्यकार, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी किसी एक देश के नहीं वरन् सारी मानव जाति के होते हैं। देश की सीमाओं को लेकर उनके महान विचारों तथा प्रतिभा के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए वरना आने वाली पीढ़ी उनके विचारों तथा प्रतिभा के लाभ से वंचित रह जायेगी। भारत में आयोजित एक सम्मेलन में बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन ने समान नागरिक संहिता की वकालत की है। उन्होंने कहा है कि लोगों को उनका अधिकार दिलाने के लिए यह कदम तत्काल उठाने की जरूरत है। वरिष्ठ लेखक-पत्रकार सईद नकवी ने कहा कि विभाजन ने भारत की सदियों पुरानी साझी संस्कृति को काफी नुकसान पहुंचाया। गीतकार प्रसून जोशी ने कहा कि नोटबंदी की मंशा की आलोचना नहीं होनी चाहिए।
देश तथा प्रदेश में चुनाव अक्सर कुछ मुद्दों पर लड़े जाते हैं। मतदाताओं को लुभाने के लिए घोषणापत्रों में जनता के ही धन से ढेर सारे मुफ्त सामान देने के वादे अंत में मतदाताओं को ही नुकसान पहुंचाते हैं। अब दलों की घोषणापत्रों में नीतियों या किन्हीं ठोस योजनाओं की बजाय वह हिस्सा ही महत्वपूर्ण होता जा रहा है, जिसमें मुफ्तखोरी के वादे किए जाते हैं। अच्छा रास्ता तो यह है कि सबको इतना समृद्ध बनाया जाए कि वे खुद सरकार द्वारा दी जाने वाली वस्तुऐं खरीदने के योग्य बन सकें। देश के प्रत्येक मतदाता की क्रय शक्ति बढ़े। प्रति व्यक्ति आय उच्च कोटि की हो। अब चुनाव का मुद्दा सर्वप्रथम देश के प्रत्येक बालक को गुणात्मक शिक्षा उपलब्ध कराना होना चाहिए, अमीर-गरीब के बीच बढ़ती असमानता कम करना होना चाहिए, प्रत्येक शिक्षित-अशिक्षित युवक को रोजगार उपलब्ध कराना होना चाहिए, बिगड़ता पर्यावरण को नियंत्रित करना होना चाहिए आदि-आदि।
हमारा यह भी सुझाव है कि विकसित तकनीकी के युग में सरकारी मशीनरी को ठोस तथा बुनियादी योजनाओं में लगाने से भ्रष्टाचार भी कम होगा। छोटी-छोटी अनेक मन को लुभाने वाली योजनाओं से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। समाज में लालच, अविश्वास, अधीरता तथा भेदभाव की भावना बढ़ती है। गरीब-अमीर के बीच सबसे ज्यादा असमानता हमारे देश में हैं। ब्रिटेन जैसे देशों में गरीब-अमीर की आमदनी में मामूली सा अन्तर है। प्रति व्यक्ति आय का स्तर काफी उच्च है। इस कारण से लोग घरेलु नौकर न रखकर स्वयं अपने आप छोटे-मोटे कार्य करते हैं। प्रत्येक वोटर की न्यूनतम मासिक आय निर्धारित की जानी चाहिए। देश के प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को सरकार से इस तरह की मांग करना चाहिए। जाति-धर्म के आधार पर किसी एक तबके को लालचाने या मुफ्तखोरी से वोटरों को मुक्त करना चाहिए। देश के सभी गरीब तथा अमीर को पूरे सम्मान के साथ न्यूनतम मासिक आय के रूप में धनराशि दिए जाने से वोटर का स्वाभिमान बना रहेगा।
प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
पता– बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025
मो. 9839423719