Homeअतिथि पोस्टगरीबी हटाने में काला धन सबसे बड़ी बाधा (देश के प्रत्येक नागरिक को दो वक्त का भोजन सुलभ होना चाहिए!)

गरीबी हटाने में काला धन सबसे बड़ी बाधा (देश के प्रत्येक नागरिक को दो वक्त का भोजन सुलभ होना चाहिए!)

गरीबी हटाने में काला धन सबसे बड़ी बाधा (देश के प्रत्येक नागरिक को दो वक्त का भोजन सुलभ होना चाहिए!)

भूख तथा गरीबी हटाने में काला धन सबसे बड़ी बाधा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मानव समाज एवं मानव जीवन में सुचिता लाने के लिए 500 तथा 1000 के नोट्स पर 8 नवम्बर की रात्रि को प्रतिबन्ध लगाकर गरीबी, आतंकवाद, काला धन, नकली नोट तथा भ्रष्टाचार के स्त्रोत पर जबरदस्त प्रहार करके एक सशक्त तथा भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र का निर्माण करने का ऐतिहासिक कदम उठाया है। पिछले ढाई वर्षों में सवा सौ करोड़ देशवासियों के सहयोग से आज भारत ने ग्लोबल इकोनामी में एक ‘ब्राइट स्पाॅट’ अर्थात चमकता सितारा के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसा नहीं है कि यह दावा सरकार कर रही है, बल्कि यह आवाज इंटरनेशनल मोनेटरी फंड और वल्र्ड बैंक से गूंज रही है। एक तरफ तो विश्व में हम आर्थिक गति में तेजी से बढ़ने वाले विश्व के देशों में सबसे आगे हैं। दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की ग्लोबल रैकिंग में दो साल पहले भारत करीब-करीब सौवंे नंबर पर था। ढेर सारे कदम उठाने के बावजूद हम 76वें नंबर पर पहुंच पाए हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि भ्रष्टाचार और कालेधन का जाल कितने व्यापक रूप से देश में बिछा है।

संविधान ने प्रत्येक मनुष्य को जीने का अधिकार प्रदान किया है। इस संवैधानिक अधिकार के अनुकूल कल्याणकारी राज्य में सबसे पहले सभी नागरिकों को दो वक्त का भोजन सुलभ होना चाहिए। दो वक्त के भोजन के लिए मजदूरी करने की शर्त नहीं रखी जानी चाहिए। ऐसा नहीं है कि सरकार प्रत्येक नागरिक के लिए दो वक्त का भोजन निःशुल्क उपलब्ध कर देगी तो उससे प्रत्येक नागरिक काम करना छोड़कर निक्कमा हो जायेगा। हमें यह स्वीकारना चाहिए कि मनुष्य अपने स्वाभिमान तथा वैभव को बढ़ाने के लिए निरन्तर नौकरी या व्यवसाय करता है। पैदल चलने वाला साइकिल की इच्छा रखता है। साइकिल वाला मोटर साइकिल की इच्छा रखता है। मोटर साइकिल वाला कार की इच्छा रखता है। कार वाला हवाई जहाज से चलने की इच्छा रखता है। रोटी के अभाव में किसी का भूख से मरना मानवता तथा राज्य का अपमान है। इस बात को कल्याणी राज्य अपना संवैधानिक तथा नैतिक दायित्व समझकर स्वीकारना चाहिए। आज मनुष्य का काम मशीन, रोबोट तथा कम्प्यूटर कर रहे हैं। इन यंत्रों के कारण रोजगार के अवसरों में होने वाली कमी की क्षतिपूर्ति करना राज्य का दायित्व बनता है।

जीने के लिए सबसे जरूरी है कि आदमी का पेट भरा रहे। यह हर जीव-जंतु के शरीर की सबसे बड़ी मांग है। इसके बिना जीवन नहीं जीया जा सकता है। बुद्ध के शिष्य एक व्यक्ति को लेकर आए और उसे धर्म-तत्व समझाने की प्रार्थना की, क्यांेकि उनके उपदेशों को वह समझ नहीं पा रहा था। बुद्ध ने कहा, ‘पहले इसे खाने को दो। यह भूखा है। पेट भर जाने के बाद समझेगा धर्म। जीवन के लिए सबसे आवश्यक है सांस, जो प्रकृति से मिलती है। फिर है पानी, जो प्रकृति की ही देन है। तीसरी आवश्यकता है आहार। यह भी प्रकृति ने दिया है। मगर जिस जमीन पर अनाज पैदा होता है, आदमी ने व्यवस्था के नाम पर उस पर स्वामित्व की विभाजक रेखा खींच दी। उसकी उपज को भी संपत्ति और क्रय-विक्रय की वस्तु बनाकर उस पर व्यक्तिगत मिल्कियत की मुहर लगा दी।

मनुष्य की व्यवस्था ने प्रकृति की हर चीज का बंटवारा किया और उसका मालिक होने का हक जता दिया। धीमे-धीमे आवश्यकता गौण व मालिकाना पकड़ मजबूत हो गई। इससे एक तरफ समाज में अभाव, तो दूसरी तरफ अति-भाव की विषम स्थिति बन गई। रोटी के संसार को दो टुकड़ों में बांट दिया गया। एक टुकड़ा रोटी को सर्वोच्च मूल्य मानकर जीवन के सारे परम सत्यों को नकार रहा है, तो दूसरा उनकी दुहाई देकर रोटी के सर्वजन्य अधिकार को नकार रहा है। महावीर कहते हैं, ‘जिजीविषा सार्वभौम सत्ता है। जीने की इच्छा सबकी है। अतः जीवन का अधिकार भी सबका है। उन्होंने कहा, अच्छा हो कि संयम से हम खुद को नियंत्रित करें, नहीं तो दूसरे हमें बंधन, बलात नियंत्रण, वध और रक्तपात द्वारा नियंत्रित कर देंगे।

ईसा मसीह भक्तों को सलाह देते थे, ‘केवल रोटी के बूते जिंदगी नहीं चलती’। किसी ने टिप्पणी की, ‘हमें तो वह भी नसीब नहीं होती।’ कहते है यह सुन कर ईशु की आंखें भर गयी। दो जून खाए बगैर इंसान का कहां गुजारा, प्रभु का नाम लेना हो तब भी। किसी ने कहा है कि भूखे पेट भजन नहीं होता प्रभु। लाजिमी है, भूख की तड़प और रोटी नसीब नहीं होने की पीड़ा सभी देशों में मुखर हंै। बेटी ब्याहते वक्त देखा जाता रहा है कि होने वाले दामाद का खेत, नौकरी या धंधा हो ताकि वह बेटी को खिला सके। एक न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था में सबसे पहले सभी नागरिकों को दो वक्त भोजन सुलभ होना चाहिए।

गरीबी रेखा के नीचे की देश की करीब 30 करोड़ आबादी को अनाज मुहैया कराने के लिए एफसीआई के जरिए अधिक उत्पादन वाले राज्यों से खरीद कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की शुरूआत हुई, किन्तु भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, राशनकार्ड बनने की जटिल प्रक्रिया आदि कारणों से वांछित लाभ नहीं मिला। संशोधित पीडीएस 1997, आईसीडीएस कार्य के बदले अनाज जैसी योजनाएं भी आंशिक तौर पर ही कामयाब रहीं। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को सूखाग्रस्त राज्यों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू नहीं करने पर फटकार लगाई तो सफाई मिली कि यह जिम्मा मूलतः राज्यों का है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख का कहना है कि वैश्विक वृद्धि का लाभ अत्यन्त लंबे अर्से से बहुत कम लोगों को मिल पाया है।

बेसिक इनकम स्विट्जरलैण्ड नामक संगठन ने स्विस सरकार के सामने एक प्रपोजल रखा कि नागरिकों के खाते में हर महीने दो हजार पांच सौ स्विस फ्रैंक जमा कराए जाएं ताकि नागरिकांे की न्यूनतम आय सुनिश्चित की जा सके। इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए सरकार ने जनमत संग्रह कराया जिसमें लगभग अस्सी प्रतिशत लोगों ने विरोध में वोट डालकर इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया। वहां के लोगों ने माना कि ऐसे अनुदान का लाभ उठाकर हम आलसी और अकर्मण्य हो जाएंगे जो अंततोगत्वा हमारे लिए आत्मघाती साबित होगा।

हमारा मानना है कि स्विट्जरलैण्ड की तुलना में हमारा देश 125 करोड़ लोगों का बहुत बड़ा तथा गरीब देश है। देश के करोड़ों लोग भूखे तथा बेरोजगार हैं। प्रत्येक वोटर को वोटरशिप के नाम पर बिना गरीब तथा अमीर का भेदभाव किये न्यूनतम आय सुनिश्चित की जानी चाहिए। इस बारे में यदि हमारे देश में इस तरह का समय रहते जनमत कराके यह जानना चाहिए कि आम जनता की क्या राय है? देश के असली मालिक वोटर तथा उसके परिवार को भी स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार है। वोटरशिप की न्यूनतम आय की इस धनराशि को गरीब तथा अमीर दोनों को स्वाभिमान के साथ लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए। वोटर को गरीब की श्रेणी में रखकर उसे तथा उसके परिवार को किसी भी प्रकार की सहायता देना उसके स्वाभिमान को ठेस पहंुचाना तथा उसे सामाजिक रूप से कमजोर करना है।

भ्रष्टाचार की बीमारी को कुछ वर्ग विशेष के लोगों ने अपने स्वार्थ के कारण फैला रखा है। जीवन में स्वार्थवश गैरकानूनी ढंग से ज्यादा धन का संग्रह करके अपमानित तथा दण्डित होने तथा अपने बच्चों का गलत सीख देने में जरा भी समझदारी नहीं है। बच्चों को बाल्यावस्था से परिवार तथा स्कूल में ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए कि वह जीवन में चरित्रवान तथा स्वेच्छा से कानून का पालन करने वाले बने। चरित्रवान तथा कानून का स्वतः सम्मान करने वाली पीढ़ी निर्मित करने में परिवार तथा स्कूल की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। इस प्रयास में समाज तथा मीडिया को भी अह्म भूमिका निभानी है। भ्रष्टाचार को देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। राजनीतिक पार्टियों को भी सूचना के अधिकार कानून के अन्तर्गत चुनाव में मिले चन्दे तथा चुनाव में किये गये खर्चे का हिसाब देना चाहिए।

प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
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