धरती को प्रदुषण के महाविनाश से बचाना इस युग का सबसे बड़ा पुण्य है!
(1) प्रकृति से खिलवाड़ के भयंकर परिणाम होगे!
धरती का अस्तित्व रखने वाले सभी जीवों का प्रकृति से सीधा संबंध है। प्रकृति में हो रही उथल-पुथल का प्रभाव सब पर पड़ता है। मनुष्य की छेड़छाड़ की वजह से प्रकृति रौद्ररूप धारण कर लेती है। मानव को समझ लेना चाहिए कि वह प्रकृति से जितना खिलवाड़ करेगा, उतना ही उसे नुकसान होगा। मानव ने पर्यावरण को प्रदूषित किया है, वनों को काटा है, जल संसाधनों का दुरूपयोग किया है। सुनामी हो या अमेरिका के कुछ शहरों को तबाह करने वाला तूफान, सब का कारण प्रकृति से छेड़छाड़ ही है। ओजोन परत में छेद व वातावरण में बढ़ते कार्बन डाई आॅक्साइड की वजह से ग्लोबल वार्मिग का खतरनाक संकेत है। मानव प्रकृति से छेड़छाड़ कर अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना बंद करे। आज इंसान ने इस जमीं पर मौत का आशियाॅ बनाया। यू तो कदम चाँद पर, जा पहुँचे है लेकिन जमीं पर चलना न आया। धरती को प्रदुषण के महाविनाश से बचाना आज के युग का सबसे बड़ा पुण्य है।
(2) दस्तक देता हिमयुग का खतरा!
एक ऐसे समय में जब पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग और धरती के बढ़ते तापमान को लेकर चिंतित है, एक बिल्कुल अलग किस्म का खतरा धीरे-धीरे हमारी तरफ बढ़ रहा है। वह है हिमयुग की वापसी का खतरा। अभी यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन हाल के वर्षो यूरोप और एशिया के मौसम में आए असाधारण बदलावों के देखते हुए हिमयुग की वापसी की आशंका को बल मिला है। पृथ्वी के उद्भव के शुरूआती दस हजार वर्षो तक हिमयुग था। इस दौरान पूरी धरती पर बर्फ जमी हुई थी। हिमयुग उस कालखंड को कहते है जिसमें धरती की सतह और वायुमंडल के तापमान में लंबे समय तक गिरावट आती रहती है। पिछला हिमयुग सिर्फ 25.8 लाख साल पहले आया था। इस युग में उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के कुछ भाग बर्फ की चादर से ढक गए थे।
(3) अभी नहीं तो कभी नहीं!
धरती पर नए हिमयुग का जो खतरा मंडरा रहा है इसके पीछे भी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन और धरती का बढ़ता तापमान ही मुख्य कारण है। वैज्ञानिकों का तो दावा है कि नया हिमयुग अब तक के सभी हिमयुग से ज्यादा भीषण होगा। लेकिन लगता है विश्व की सभी सरकारों ने इन चेतावनियों पर बिल्कुल भी ध्यान न देने की कसम खा ली है। अब हमें एक पल की भी देर किए प्रकृति से खिलवाड़ बंद करना चाहिए अन्यथा इस नसमझी के भयंकर परिणाम होंगे।
(4) वृक्ष हमारे बड़े योगदानकर्ता हैं:
धरती के निरन्तर बढ़ते बुखार को कम करने के लिए एक पेड़ लगाना करोड़ों पुण्य कमाने के समान है। पेड़ लगाना स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करता है। हमारे पूर्वज पेड़ों के ऊपर या उनके नीचे रहा करते थे। ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों को वृक्षों के नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ था। वृक्ष मानव जीवन और राष्ट्र-विश्व की समृद्धि में मूक योगदानकर्ता है। एक आंकड़े के अनुसार एक व्यक्ति सांस के जरिये एक घंटे में दो लीटर आक्सीजन अपने शरीर में लेता है। हिसाब लगाए तो एक पेड़ एक साल में एक व्यक्ति को सात लाख 20 हजार रूपए की आक्सीजन देता है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वृक्ष हमारे लिये कितने बड़े योगदानकर्ता हैं। कंक्रीट के बढ़ते जंगलों के बीच वृक्षों के लिये जगह मिलना बहुत मुश्किल हो चुका है। शहरवासी में गमलों में पौधों को लगाकर प्रकृति से नजदीकी बनाए रख सकते हैं।
(5) प्रकृति की गोद में हमारा वास्तविक विकास होता है:
मन की शांति हेतु चलें प्रकृति की ओर प्रकृति की हरी-भरी हरियाली से मन तनावमुक्त रहता है। प्रकृति हमें पोषण, संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करती है। यह हमारी सभी कामनाओं को पूर्ण करती है। प्रकृति की गोद में ही हमारा वास्तविक विकास होता है। प्रकृति और जीवन का गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
(6) पर्याप्त आक्सीजन व प्राणवायु न मिलने से क्रियाशीलता घटती है:
प्राकृतिक वातावरण हमें सुकून प्रदान करता है। इस वातावरण में घुली प्राणशक्ति हमें प्राणवान बनाती है। साँसों के माध्यम से यह हमारे रग-रग में रच-बस जाती है और मन एवं भाव प्रसन्नता एवं खुशियों से भर जाते हैं। इस वातावरण में शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कार्य सहजता से संपन्न होते हैं, जबकि प्रकृति से दूर भीड़ भरे माहौल में हमारे तन, मन एवं मस्तिष्क को पर्याप्त प्राणवायु के न मिलने से इनकी क्रियाशीलता घटती जाती है। हमारा दिमाग कुदरत की एक खूबसूरत मशीन है। प्राकृतिक वातावरण इस मशीन को क्रियाशील एवं जीवंत रखता है, जबकि भीड़भाड़, शोरगुल इस मशीन को बुरी तरह से थका देते हैं और यही वजह है कि हम भीड़-भाड़े में अधिक थके एवं निस्तेज नजर आते हैं।
(7) हरियाली एक प्रकार की मानसिक औषधि है:
प्राकृतिक वातावरण, जैसे वन, उपवन, झरना, पर्वत, नदी आदि के किनारे, खेतों की हरियाली में मस्तिष्क शांत होता है, प्रसन्न होता है तथा इसकी क्रियाशीलता एवं रचनात्मकता में वृद्धि होती है। हरियाली से कल्पनाशीलता भी बढ़ती है। वास्तव में हरियाली एक प्रकार की मानसिक औषधि है, जिससे तनाव से सहज ही मुक्ति मिल जाती है हमें अपने आस-पास एवं घर-आँगन में पेड़-पौधे रोपने चाहिए, जिससे हमारे घर का वातावरण ठीक रहे एवं सभी की मानसिकता ठीक रहे। प्रकृति के गर्भ में विपुल संपदा भरी पड़ी है, यदि मानवीय पुरूषार्थ उसका सदुपयोग सीख ले तो कोई कारण नहीं कि हर मनुष्य को, हर प्राणी को, सुख-शांति के साथ रह सकने योग्य विपुल साधन उपलब्ध न हो जाएँ।
(8) मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त अपार संसाधनों का उपयोग विवेकी ढंग से करना चाहिए:
सृष्टि का गतिचक्र एक सुनियोजित विधि व्यवस्था के आधार पर चल रहा है। ब्रह्माण्ड में अवस्थित विभिन्न नीहारिकाएं ग्रह-नक्षत्रादि परस्पर सहकार-संतुलन के सहारे निरन्तर परिभ्रमण विचरण करते रहते हैं। अपना भू-लोक सौर मंडल के वृहत परिवार का एक सदस्य है। सारे परिजन एक सूत्र में आबद्ध हैं। वे अपनी-अपनी कक्षाओं में घूमते तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य स्वयं अपने परिवार के ग्रह उपग्रह के साथ महासूर्य की परिक्रमा करता है। इतने सब कुछ जटिल क्रम होते हुए भी सौर, ग्रह, नक्षत्र एक दूसरे के साथ न केवल बंधे हुए हैं वरन् परस्पर अति महत्वपूर्ण आदान-प्रदान भी करते हैं। पृथ्वी का सूर्य से सीधा सम्बन्ध होने के कारण सौर-परिवर्तन से यहाॅ का भौगोलिक परिवेश और पर्यावरण अत्यन्त प्रभावित होता है। यह सृष्टि केवल मनुष्य के लिए ही नहीं है वरन् इस पर जीव-जन्तुओं व वनस्पति का भी पूरा अधिकार है। अतः मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त अपार संसाधनों का उपयोग विवेकी ढंग से करना चाहिए तथा उन शक्तियों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अरबों वर्ष पूर्व यह ब्रह्माण्ड हमें दिया।
(9) प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून से विश्व को न्यायपूर्ण ढंग से चलाया जा सकता है:
मानवता को बिगड़ते विश्व पर्यावरण, हिमयुग की वापिसी, परमाणु शस्त्रों की होड़ के कारण सम्भावित तृतीय विश्व युद्ध, आतंकवाद, अशिक्षा, भूख-गरीबी एवं महारोगों के महाविनाश से उत्पन्न भयानक परिस्थितियों से बचाना है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्राविधानों को जन-जन में प्रसारित करके विश्व को महाविनाश से बचाया जा सकता है। विश्व को बमों के जोर से नहीं वरन् प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून से न्यायपूर्ण ढंग से चलाया जा सकता है। प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने के लिए हमें लोकतांत्रिक ढंग से विश्व के सभी देशों से सदस्यों को चुनकर विश्व संसद का गठन शीघ्र करना होगा। विश्व का प्रत्येक नागरिक यह संकल्प ले कि विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय की अति आवश्यकता को समझते हुए इसके गठन के लिए सार्थक कदम उठायेंगे।
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ