Homeअतिथि पोस्टअवतारों को ही परमपिता परमात्मा का ‘सही पता’ मालूम होता है! – डा. जगदीश गाँधी

अवतारों को ही परमपिता परमात्मा का ‘सही पता’ मालूम होता है! – डा. जगदीश गाँधी

अवतारों को ही परमपिता परमात्मा का ‘सही पता’ मालूम होता है! - डा. जगदीश गाँधी

(1) अवतारों को ही सारी सृष्टि को बनाने वाले परमपिता परमात्मा का सही पता मालूम होता है

एक ही परमपिता परमात्मा द्वारा युग-युग में भेजे गये अवतारों – राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, महावीर, मोजज, जोरास्टर, बहाउल्लाह आदि को ही सारी सृष्टि को बनाने वाले परमपिता परमात्मा का सही पता मालूम होता है। सभी अवतारों ने यह बताया है कि परमात्मा को जानने का मतलब है प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को जानना। इसके लिए हमें पवित्र ग्रन्थों – गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता की गहराई में जाकर उनकी शिक्षाओं को जानना तथा उनके अनुसार प्रभु का कार्य करना होगा। ये सभी अवतार हमारे सच्चे गुरू हैं। जो हमें परमात्मा की इच्छा तथा आज्ञा को पहचानने हेतु अपने त्यागपूर्ण एवं पवित्र जीवन को सारी मानव जाति के लिए समर्पित करते हैं। ये अवतार हमें परमात्मा की ओर से युग-युग में अवतरित पवित्र ग्रन्थों द्वारा मार्गदर्शन देते हैं। कबीरदास जी ने कहा है कि गुरू गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय। बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताय अर्थात् गुरू और भगवान अगर दोनों हमारे सामने खड़े हो तो हमें सबसे पहले गुरू का चरण स्पर्श करना चाहिए क्योंकि गुरू ही हमे भगवान तक पहुँचने का मार्ग बताते है।  

 

(2) प्रभु तो सर्वत्र व्याप्त है पर हम अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचाने कैसे?

प्रभु तो सर्वत्र व्याप्त है पर हम उसको देख नहीं सकते। हम उसको सुन नहीं सकते। हम उसको छू नहीं सकते तो फिर हम प्रभु को जाने कैसे? अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को हम पहचाने कैसे? बच्चों द्वारा प्रतिदिन की जाने वाली हमारे स्कूल की प्रार्थना है कि हे मेरे परमात्मा मैं साक्षी देता हूँ कि तूने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तूझे जाँनू और तेरी पूजा करूँ। इस प्रकार प्रभु ने हमें केवल दो कार्यों (पहला) परमात्मा को जानने और (दूसरा) उसकी पूजा करने के लिए ही इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में उत्पन्न किया है। प्रभु को जानने का मतलब है परमात्मा द्वारा युग-युग में पवित्र धर्म ग्रंथों गीता की न्याय, त्रिपटक की समता, बाईबिल की करुणा, कुरान की भाईचारा, गुरू ग्रन्थ साहेब की त्याग व किताबे अकदस की हृदय की एकता आदि की ईश्वरीय शिक्षाओं को जानना और परमात्मा की पूजा करने का मतलब है कि परमात्मा की शिक्षाओं पर जीवन-पर्यन्त दृढ़तापूर्वक चलते हुए अपनी नौकरी या व्यवसाय करके अपनी आत्मा का विकास करना। इसलिए हमें प्रभु की इच्छा को अपनी इच्छा बनाकर जीवन जीना चाहिए। हमें अपनी इच्छा को प्रभु की इच्छा बनाने की अज्ञानता कभी नहीं करनी चाहिए।

(3) ईश्वर की इच्छा और आज्ञा को पहचानने की अहैतुकी कृपा बड़े सौभाग्य से मिलती है:-

परमात्मा अपनी दिव्य शिक्षाओं को मानव जाति को देने के लिए संसार की सबसे पवित्र आत्मा वाले मनुष्य को ही चुनता है। उसे हम उस युग का युगावतार कहते हंै। जिन लोगों ने परमात्मा की दिव्य योजना के अनुसार अपने-अपने युग के युगावतार को पहचानकर उसकी इच्छा और आज्ञा का पालन किया उनको प्रभु का आशीर्वाद तथा सारी मानव जाति का सम्मान मिला है। युगावतार अपने युग की समस्याओं का समाधान किसी नैतिक मूल्य को सामाजिक मूल्य बनाकर सारी मानव जाति के कल्याण के लिए भारी कष्ट उठाकर प्रचारित करते हैं। युगावतार की पहचान उसके शरीर, जाति, स्थान, नाम, वेशभूषा आदि से नहीं वरन् उसके युगानुकूल एवं समाजोपयोगी विचारों से होती है।

 

(4) ईश्वर की इच्छा और आज्ञा को पहचानने से हमें बड़े से बड़े कष्ट सहने की शक्ति मिलती है

ईश्वरीय अवतारों – राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, महावीर, बहाउल्लाह आदि के द्वारा प्रभु की राह में उठाये गये अपार कष्टों एवं जीवन में आये महान संकटों को हंसते-हंसते सहन करने की शक्ति उन्हें ईश्वर की इच्छा और आज्ञा को पहचान लेने के कारण ही मिली। हमें भी अपने महान अवतारों तथा महापुरूषों के जीवन का अनुसरण करते हुए पवित्र भावना से प्रभु का कार्य की तरह अपनी नौकरी या व्यवसाय करना चाहिए। नौकरी या व्यवसाय अपनी मानव आत्मा के विकास का सबसे सरल उपाय है। इस सम्पूर्ण विश्व समाज को परमात्मा ने स्वयं निर्मित किया है। परमात्मा अपनी प्रत्येक रचना से प्रेम करता है। इसलिए हमें भी अपने आत्मा के पिता परमात्मा के आज्ञाकारी पुत्र/पुत्री की तरह सारी मानव जाति से प्रेम तथा उसकी सेवा करनी चाहिए। मनुष्य जिस मात्रा मंे प्रभु की राह में स्वेच्छापूर्वक दुःख झेलता है उसी मात्रा मंे उसे प्रभु का प्रेम व आशीर्वाद प्राप्त होता है। हमारा मानना है कि मंगलमय वह जगह जहाँ प्रभु महिमा गायी जाती। इसलिए हम मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरूद्वारे कहीं से प्रभु की पूजा, इबादत, प्रेयर तथा पाठ करें उसे सुनने वाला परमात्मा एक है। वो ‘‘अनाम’’ जिसे हम रब, खुदा, जीसस, ईश्वर व अन्य बहुत से नामों से जानते हैं।

डा. जगदीश गांधी

डा. जगदीश गांधी

– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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