‘अहिंसा’ के विचार से ही ‘जय जगत’ की अवधारणा साकार होगी! – डा. जगदीश गाँधी
(1) संयुक्त राष्ट्र संघ ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया
अहिंसा की नीति के जरिये विष्व भर में शांति के संदेष को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के योगदान को स्वीकारने के लिए ही ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विष्व भर में प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय वर्ष 2007 में लिया गया। मौजूदा विष्व–व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में भारत द्वारा रखे गये इस प्रस्ताव को बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस प्रस्ताव को भारी संख्या में सदस्य देषों का समर्थन मिलना विष्व में आज भी गांधी जी के प्रति सम्मान और उनके विष्वव्यापी विचारों और सिद्धांतों की नीति की प्रासंगिकता को दर्षाता है।
(2) आज मानव जाति को जय जगत के नारे को बुलन्द करने की आवश्यकता है
15 अगस्त, 1947 को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश 300 वर्षों की अग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। भारतवासियों के हृदय में देशभक्ति की भावना गांधी जी ने भरी और फिर अंग्रेजों को भारत छोड़ने को उन्होंने ही विवश किया। इसके साथ ही सरदार पटेल ने भारत के 552 देशी राज्यों को अत्यन्त ही शान्तिपूर्वक समाप्त कर भारत को एक सुदृढ़ तथा संगठित राष्ट्र बनाया। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर विश्व के 54 देश अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद हो गये थे। गाँधी जी ने अपने शिष्य विनोबा भावे से भारत देश के आजाद होते ही कहा था कि अभी तक हमारा लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से देश को आजाद करने के लिए ‘जय हिन्द’ के नारे को बुलन्द करना था। देश के आजाद होने के साथ ‘जय हिन्द’ का हमारा लक्ष्य पूरा हो गया है और अब हमें सारे विश्व को गरीबी, अन्याय, भूख, बीमारी, अशिक्षा तथा युद्धों से बचाने के लिए ‘जय जगत’ अर्थात ‘सारे विश्व की जय हो के’ नारे को बुलन्द करने के लिए कार्य करना है।
(3) दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों का भविष्य आज की समस्या
21वीं सदी के युग में व्याप्त विश्वव्यापी समस्याओं को समाप्त करने के लिए महात्मा गाँधी के विचारों को अमल में लाने की आवश्यकता है। महात्मा गाँधी भारत जैसे महान राष्ट्र को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए उठ खड़े हुए थे और वह देश को आजादी दिलाने में सफल भी हुए। यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे ग्लोबल विलेज को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के दो अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते। महात्मा गाँधी ने महापुरूषों से प्रेरणा ली किन्तु अपने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश की गुलामी की समस्या को हल किया। तथापि विश्व के 54 देशों को गुलामी से मुक्त होने की ऊर्जा तथा विश्वास दिया।
(4) ‘जय जगत’ की भावना से ही पूरे विश्व में ‘एकता एवं शांति की स्थापना संभव
संत विनोबा भावे से किसी ने पूछा कि दो राष्ट्रों के बीच झगड़ा होने से कोई एक राष्ट्र हारेगा तथा कोई एक राष्ट्र जीतेगा। सारे जगत की जीत कैसे होगी? बच्चों के सुरक्षित भविष्य की खातिर यदि विश्व के सभी देश यह बात हृदय से स्वीकार कर लें कि आपस में युद्ध करना ठीक नहीं है तो सारे विश्व में ‘जय जगत’ हो जायेगा। अर्थात यदि दो राष्ट्र मिलकर ‘जय जगत’ की भावना से आपसी परामर्श करें तो किसी एक की हार–जीत नहीं वरन् दोनों की जीत होगी। इस प्रकार प्रत्येक राष्ट्र को सारे विश्व में ‘जय जगत’ की भावना के अनुरूप एकता एवं शांति की स्थापना के लिए अपने–अपने राष्ट्रीय हितों के साथ ही सारे विश्व के देशों के हितों को ध्यान में रखकर भी संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान कर विश्व संसद के रूप में विकसित करना होगा।
(5) महात्मा गांधी ने विष्व में वास्तविक शांति की स्थापना के लिए बच्चों को सबसे सषक्त माध्यम बताया
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि विष्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सषक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम इस विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करनी होगी।’ इस प्रकार महात्मा गाँधी के ‘जय जगत’ के सपने को साकार करने के लिए हमें प्रत्येक बच्चे को बाल्यावस्था से ही भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक तीनों की संतुलित षिक्षा के साथ ही सार्वभौमिक जीवन–मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें ‘विश्व नागरिक’ बनाना होगा।
(6) गांधी जी ने आधुनिक विष्व की समस्याओं के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्रों की महासंघ की वकालत की
गांधी जी का कहना था कि भविष्य में शांति, सुरक्षा और निरन्तर प्रगति के लिए संसार के सभी स्वतंत्र राष्ट्रों को एक महासंघ की आवश्यकता है, इसके अलावा आधुनिक विश्व की समस्याओं को हल करने का कोई अन्य माध्यम नहीं है। एक ऐसे ही विश्व महासंघ के द्वारा उसके घटक देशों की स्वतंत्रता, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किये जाने वाले आक्रमण एवं शोषण से बचाव, राष्ट्रीय मंत्रालयों की सुरक्षा, सभी पिछड़े क्षेत्रों एवं लोगों की उन्नति, विकास एवं सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए विश्व भर के संसाधनों के एकत्रीकरण जैसे कार्य सुनिश्चित किये जाने चाहिए।
(7) सारा संसार एक नवीन विश्व–व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है
आज जब हम महात्मा गांधी के जीवन तथा शिक्षाओं को याद करते हैं तो हम उनके सत्यानुसंधान एवं विश्वव्यापी दृष्टिकोण के पीछे अपनी प्राचीन संस्कृति के मूलमंत्र ‘उदारचारितानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ (अर्थात पृथ्वी एक देश है तथा हम सभी इसके नागरिक है) को पाते हैं। इन मानवीय मूल्यों के द्वारा ही सारा संसार एक नवीन विश्व सभ्यता की ओर बढ़ रहा है। गांधी जी ने भारत की संस्कृति के आदर्श उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम् को सरल शब्दों में ‘जय जगत’ (सारे विश्व की भलाई अर्थात जीत हो) के नारे के रूप में अपनाने की प्रेरणा अपने प्रिय शिष्य संत विनोबा भावे को दी जिन्होंने इस शब्द का व्यापक प्रयोग कर आम लोगों में यह विचार फैलाया।
(8) गांधी जी अपने युग की समस्याओं से जुड़े थे
यदि महात्मा गांधी इस युग में होते तो वह हमारे ग्लोबल विलेज का स्वरूप धारण कर चुके विश्व को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के 2.4 अरब बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत् होते। महात्मा गांधी ने महापुरूषों से प्रेरणा ली किन्तु अपने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए गुलामी की समस्या को हल किया। महात्मा गांधी की शिक्षाओं से प्रेरित विनोबा भावे उनके सच्चे शिष्य थे। विनोबा भावे ने जय जगत का नारा दिया। गांधी जी इस संसार के अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने जीवन के आदर्श सत्य और अहिंसा की शिक्षाओं से अपने जीवन काल में ही करोड़ों लोगों को इतना प्रभावित किया कि उनकी सोच में व्यापक परिवर्तन हुआ। गांधी जी का मानना था कि स्वतंत्रता को सत्य और अहिंसा के माध्यम से प्राप्त करने से भारत का गौरव संसार में और अधिक बढ़ेगा और यह उदाहरण एक दिन सारे विश्व को एक नई दिशा देगा।
(9) सम्पूर्ण मानव जाति को सुन्दर एवं सुरक्षित भविष्य प्रदान करने के लिए अपना रास्ता स्वयं चुने
गांधी जी का जीवन सत्यानुसंधान था। वह निरन्तर अध्ययनशील रहते हुए कड़े अनुशासन तथा खुले दिमाग से अपने प्रत्येक कार्य का विश्लेषण करते थे। वह अपने अहिंसा, सत्य, मानवता, क्षमा, धर्मो की एकता तथा आध्यात्मिकता के सिद्धान्तों के अनुरूप हर पल जीने का अभ्यास करते थे। वह समय की आवश्यकता के अनुसार इन सिद्धान्तों का सामाजिक जीवन में प्रयोग करते थे। वह कहते थे कि सभी महापुरूष अपने युग की समस्याओं को अनेक तरीकों से सुलझाते रहते थे। मैं भी उन महापुरूषों से प्रेरणा लूँगा किन्तु मैं उन तरीकों की नकल नहीं करूँगा वरन् भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपना मार्ग स्वयं निर्धारित करूँगा।
(10) महात्मा गांधी सभी धर्मों का समान आदर करते थे
गांधी जी एक सच्चे ईश्वर भक्त थे। वे सभी धर्मो की शिक्षाओं का एक समान आदर करते थे। गांधी जी का मानना था कि सभी महान अवतार एक ही ईश्वर की ओर से आये हंै, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है, इसलिए हमें प्रत्येक धर्म का आदर करना चाहिए। सभी धर्म एवं सभी धर्मों के दैवीय शिक्षक एक ही परमपिता परमात्मा के द्वारा भेजे गये हैं। हम चाहे मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर या गुरूद्वारे किसी भी पूजा स्थल में प्रार्थना करें हमारी पूजा, इबादत तथा प्रार्थना एक ही ईश्वर तक पहुँचती हैं। गांधी जी निरन्तर अपने युग के प्रश्नों को हल करने का प्रयास अपने सत्यानुसंधान से करते रहे। गांधी जी ने अपनी युग की सबसे प्रमुख आवश्यकता के रुप में गुलामी को मिटाया तथा बाद में उनका मिशन इस विश्व को संगठित करके आध्यात्मिक साम्राज्य धरती पर स्थापित करना था।
(11) विष्व के सभी देष अपने संविधान में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 को शामिल करें
अब सारे विश्व को सचमुच एक परिवार बनाने का समय आ चुका है। हम सबने इस विश्व को एक परिवार न बनाया तो यह सम्पूर्ण मानवजाति नष्ट हो जायेंगी। इसके लिए विश्व के सभी राष्ट्रों को भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुरूप एक विश्व व्यवस्था बनाने की पहल करनी चाहिए। इस अनुच्छेद में परमात्मा की षिक्षाओं के अनुरूप संसार को सुन्दर एवं सुरक्षित बनाने के लिए ‘सहयोग’, ‘परामर्ष’, ‘विचार–विमर्ष’, ‘न्याय की स्थापना’, व ‘कानून के पालन’ आदि जैसी षिक्षाओं को सम्मिलित किया गया है।
(12) आज बापू की सत्य, अहिंसा एवं सादगी की षिक्षायें और भी अधिक प्रासंगिक हो गयी है
महात्मा गांधी चाहते थे कि भारत केवल एषिया और अफ्रीका का ही नहीं अपितु सारे विष्व की मुक्ति का नेत्त्व करें। उनका कहना था कि ‘‘एक दिन आयेगा, जब शांति की खोज में विश्व के सभी देश भारत की ओर अपना रूख करेगें और विश्व को शांति की राह दिखाने के कारण भारत विश्व का प्रकाश बनेगा।’’ आज विश्व सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका, 36,000 बमों का जखीरा तथा हैती व सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदायें मानव अस्तित्व को महाविनाश की ओर ले जा रही है। ऐसी विषम परिस्थितियों में बापू की सत्य, अहिंसा एवं सादगी की शिक्षायें और भी अधिक प्रासंगिक हो गई है।
(13) आइये, महात्मा गांधी के ‘जय जगत’ के सपने को साकार करने की पहल करें
गांधी जी की शिक्षाओं पर चलकर हम सारे विष्व को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका आदि से होने वाले महाविनाश से बचा सकते है। अब समय आ गया है कि यदि हमंे मानव जाति को महाविनाश से बचाते हुए सारे विष्व में शांति एवं एकता की स्थापना करनी है तो (1) परिवार, विद्यालय एवं समाज द्वारा प्रत्येक बच्चे को ‘जय जगत’ की शिक्षा देकर उन्हें विष्व नागरिक बनाना होगा तथा (2) भारत सरकार को अपनी ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ की महान संस्कृति, सभ्यता एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुरूप सारे विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना के लिए विष्व के नेताओं की एक बैठक भारत में अतिषीघ्र बुलाने की पहल करनी चाहिए। मेरा प्रबल विष्वास है कि भारत ही विष्व में शांति स्थापित करेंगा। इस प्रकार विष्व में एकता एवं शांति की स्थापना के लिए प्रयास करके ही हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘जय जगत’ अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा को साकार करने की दिषा में आगे बढ़कर उन्हें अपनी सच्ची श्रद्धांजली दे सकते हैं।