एकादशी माहात्म्य – मार्गशीर्ष शुक्ला मोक्षदा एकादशी
श्री युधिष्ठिर ने कहा कि भगवन्! आप तीनों लोकों के स्वामी, सबको सुख देने वाले और जगत् के पति हैं| मैं आपको नमस्कार करता हूँ| हे देव! आप सबके हितैषी हैं, अतः मेरे संशय को दूर करके मुझे बताइये कि मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी का क्या नाम है, उस दिन कौन से देवता की पूजा की जाती है और उसकी विधि क्या है? भगवन्! कृपया आप मेरे प्रश्नों के विस्तारपूर्वक उत्तर दें|
यह सुनकर भक्तवत्सल श्रीकृष्ण जी कहने लगे – हे धर्मराज! आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न किये हैं| इनके सुनने से आपका यश संसार में फैलेगा सो तुम सुनो|
मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी का नाम मोक्षदा है| उस दिन दामोदर भगवान् की धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये| अब इस विषय में मैं एक पौराणिक कथा तुमसे कहता हूँ| इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से नरक में गये हुए माता-पिता-पुत्रादि को स्वर्ग की प्राप्ति होती है| यह कथा आप ध्यानपूर्वक एकाग्रचित्त होकर सुनिये| गोकुल नाम के नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था| उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे| वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत् पालन करता था| एक समय रात्रि को सोते समय राजा ने स्वप्न में देखा कि उनका पिता नरक में पड़ा हुआ है| इससे उसे बड़ा दुःख हुआ और प्रातः होते ही विद्वान ब्राह्मणों के पास जा अपनी स्वप्न कथा कहने लगा कि मैंने अपने पिता को नरक में पड़ा देखा है और उन्होंने मुझसे कहा है – हे पुत्र! मैं नरक में पड़ा हूँ| यहाँ से तुम किसी प्रकार मेरी मुक्ति का उपाय करो| जब से उनके ये वचन मैंने सुने हैं मेरे चित्त में बड़ी अशान्ति हो रही है| मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता| अब मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ? इस दुःख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है| अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइये जिससे मेरे पिता की मुक्ति हो जाये| उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उधार न करा सके| एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार कराता है वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है, जैसे एक चन्द्रमा सारे जगत् में प्रकाश कर देता है, परन्तु हजारों तारे नहीं कर पाते| राजा के ऐसे वचन सुनकर ब्राह्मण कहने लगे कि हे राजन्! यहाँ समीप ही भूत-भविष्य-वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है, आपके प्रश्नों का उत्तर वे भली-भाँति दे सकते हैं| ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया| उस आश्रम में अनेकों शान्त चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे| उसी जगह चारों वेदों के ज्ञाता, साक्षात ब्रह्मा के समान पर्वत मुनि बैठे थे| राजा ने वहाँ जाकर उनको साष्टांग प्रणाम किया| पर्वत मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी| राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है, परन्तु अकस्मात एक विघ्न आ गया है, जिससे मेरे चित्त में अत्यन्त अशांति हो रही है| ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने एक क्षण के लिए अपनी आँखें बन्द कीं और भूत, भविष्य को विचारने लगे| फिर बोले की राजन्! मैंने योगबल से तुम्हारे पिता के सब कुकर्मों को जान लिया है| उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, परन्तु सौत के कहने पर दूसरी पत्नी को ऋतु दान माँगने पर भी नहीं दिया, उसी पाप कर्म के फल से तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा| तब राजा बोला कि महात्मन्! मेरे पिता के उद्धार के निमित्त कोई उपाय बताइये| पर्वत मुनि बोले-हे राजन्! आप मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी को उपवास करें और उस उपवास के पुण्य का अपने पिता के निमित्त संकल्प कर दें| उस एकादशी के पुण्य के प्रभाव से अवश्य ही आपके पिता की मुक्ति होगी| मुनि के वचनों को सुनकर राजा अपने महल में आया और कुटुम्ब सहित इस मोक्षदा एकादशी का व्रत किया| उस उपवास के पुण्य को राजा ने अपने पिता को अर्पण कर दिया| उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और वह स्वर्ग में जाते हुए अपने पुत्र से कहने लगा – ‘हे पुत्र तेरा कल्याण हो|’ यह कहकर राजा का पिता स्वर्ग चला गया| मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की इस मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग लोक को पाते हैं|
इस व्रत से बढ़ कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है| इस कथा को पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है| यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिन्तामणि के समान सब कामनायें पूरी करने वाला है|
|| इस प्रकार एकादशी माहात्म्य का दूसरा अध्याय समाप्त हुआ ||
फलाहार – इस दिन बिल्व पत्र का सागार लेना चाहिए| व्रत में दूध, फल व सिंघाड़े के आटे के पदार्थ ले सकते हैं|