सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 11 शलोक 1 से 55
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 1 से 55
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 1
अर्जुन उवाच (Arjun Said):
मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम्।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम॥1॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 1 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमुझ पर अनुग्रह कर आपने यह परम गुह्य अध्यात्म ज्ञान जो मुझे बताया, आपके इन वचनों से मेरा मोह (अन्धकार) चला गया है। EnThe compassionate words with which you have instructed me in the secret and most exalted knowledge have dispelled my ignorance.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 2
भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया।
त्वत्तः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्॥2॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 2 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे कमलपत्र नयन, मैंने आपसे सभी प्राणियों की उत्पत्ति और अन्त को विस्तार से सुना है और हे अव्यय, आपके महात्मय का वर्णन भी। EnFor I have learnt from you, O the lotus-eyed, not only a detailed account of the origin and dissolution of beings, but also of your imperishable glory.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 3
शलोक 3
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर।
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम॥3॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 3 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजैसा आप को बताया जाता है, है परमेश्वर, आप वैसे ही हैं। हे पुरुषोत्तम, मैं आप के ईश्वर रुप को देखना चाहता हूँ। EnYou are, O Lord, what you have told me, but I wish, O Supreme Being, to have a direct vision of your form in all its divine magnificence.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 4
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्॥4॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 4 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे प्रभो, यदि आप मानते हैं कि आपके उस रुप को मेरे द्वारा देख पाना संभव है, तो हे योगेश्वर, मुझे आप अपने अव्यय आत्म स्वरुप के दर्शन करवा दीजिये। EnShow me, O Lord, your eternal form if you consider, O Yogeshwar, that it is possible to see it.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 5
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च॥5॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 5 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे पार्थ, तुम मेरे रुपों का दर्शन करो। सैंकड़ों, हज़ारों, भिन्न भिन्न प्रकार के, दिव्य, भिन्न भिन्न वर्णों और आकृतियों वाले। EnBehold, O Parth, my hundreds and thousands of various celestial manifestations of different hues and forms.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 6
पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा।
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत॥6॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 6 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे भारत, तुम आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, अश्विनों, और मरुदों को देखो। और बहुत से पहले कभी न देखे गये आश्चर्यों को भी देखो। EnSee in me, O Bharat, the sons of Aditi, the Rudr, the Vasu, the Ashwin brothers, and the Marut, as well as numerous other marvellous forms that have not been seen before.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 7
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद् द्रष्टुमिच्छसि॥7॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 7 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे गुडाकेश, तुम मेरी देह में एक जगह स्थित इस संपूर्ण चर-अचर जगत को देखो। और भी जो कुछ तुम्हे देखने की इच्छा हो, वह तुम मेरी इस देह सकते हो। EnNow, O Gudakesh, see in my body at this one place the whole animate and inanimate world, and whatever else you desire to know.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 8
न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्॥8॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 8 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiलेकिन तुम मुझे अपने इस आँखों से नहीं देख सकते। इसलिये, मैं तुम्हे दिव्य चक्षु (आँखें) प्रदान करता हूँ जिससे तुम मेरे योग ऍश्वर्य का दर्शन करो। EnBut since you cannot see me with your physical eyes, I grant you divine vision with which you may behold my magnificence and the might of my yog.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 9
संजय उवाच (Sanjay Said):
एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः।
दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्॥9॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 9 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiयह बोलने के बाद, हे राजन, महायोगेश्वर हरिः ने पार्थ को अपने परम ऍश्वर्यमयी रुप का दर्शन कराया। EnAfter speaking thus, O King, the Lord-the great master of yog-revealed his supreme, omnipresent form to Arjun.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 10, 11
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्॥10॥
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्॥11॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 10, 11 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiअर्जुन ने देखा कि भगवान के अनेक मुख हैं, अनेक नेत्र हैं, अनेक अद्भुत दर्शन (रुप) हैं। उन्होंने अनेक दिव्य अभुषण पहने हुये हैं, और अनेकों दिव्य आयुध (शस्त्र) धारण किये हुये हैं। उन्होंने दिव्य मालायें और दिव्य वस्त्र धारण किये हुये हैं, दिव्य गन्धों से लिपित हैं। सर्व ऍश्वर्यमयी वे देव अनन्त रुप हैं, विश्व रुप (हर ओर स्थित) हैं। EnAnd (Arjun beheld before himself) the infinite, allpervading God with numerous mouths and eyes, many wondrous manifestations, decked with various ornaments, carrying many weapons in his hands, wearing celestial garlands and apparel, anointed with heavenly perfumes, and endowed with all kinds of wonder.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 12
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥12॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 12 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiयदि आकाश में हज़ार (सहस्र) सूर्य भी एक साथ उदय हो जायें, शायद ही वे उन महात्मा के समान प्रकाशमयी हो पायें। EnEven the light of a thousand suns in the sky could hardly match the radiance of the omnipresent God.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 13
तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा॥13॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 13 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiतब पाण्डव (अर्जुन) ने उन देवों के देव, भगवान् हरि के शरीर में एक स्थान पर स्थित, अनेक विभागों में बंटे संपूर्ण संसार (कृत्स्न जगत) को देखा। EnPandu’s son (Arjun) then saw in the body of Krishn, the God of gods, the many separate worlds together.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 14
संजय उवाच (Sanjay Said):
ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनंजयः।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत॥14॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 14 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiतब विस्मय (आश्चर्य) पू्र्ण होकर जिसके रोंगटे खड़े हो गये थे, उस धनंजयः ने उन देव को सिर झुका कर प्रणाम किया और हाथ जोड़ कर बोले। EnThen overwhelmed by awe and with his hair standing on end, Arjun paid obeisance to the great God and spoke thus with folded hands.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 15
अर्जुन उवाच (Arjun Said):
पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान्।
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्॥15॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 15 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे देव, मुझे आप के देह में सभी देवता और अन्य समस्त जीव समूह, कमल आसन पर स्थित ब्रह्मा ईश्वर, सभी ऋषि, और दिव्य सर्प दिख रहे हैं। EnI see in you, O Lord, all the gods, hosts of beings. Brahma on his lotus-seat, Mahadev, all the great sages, and miraculous serpents.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 16
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप॥16॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 16 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiअनेक बाहें, अनेक पेट, अनेक मुख, अनेक नेत्र, हे देव, मैं आप को हर जगह देख रहा हूँ, हे अनन्त रुप। ना मुझे आपका अन्त, न मध्य, और न ही आदि (शुरुआत) दिख रहा, हे विश्वेश्वर (विश्व के ईश्वर), हे विश्व रुप (विश्व का रुप धारण किये हुये)। EnO Lord of all the worlds, I behold your many stomachs, mouths, and eyes as well as your infinite forms of all kinds, but, O the Omnipresent, I can see neither your end, your middle, nor your beginning.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 17
किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम्।
पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्॥17॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 17 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमुकुट, गदा और चक्र धारण किये, और अपनी तेजोराशि से संपूर्ण दिशाओं को दीप्त करते हुये, हे भगवन्, आप को मैं देखता हूँ, लेकिन आपका निरीक्षण करना अत्यन्त कठिन है क्योंकि आप समस्त ओर से प्रकाशमयी, अप्रमेय (जिसके समान कोई न हो) तेजोमयी हैं। EnI see you crowned and armed with a mace and a chakr, luminous all over, like blazing fire and the sun, dazzling, and immeasurable.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 18
त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे॥18॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 18 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआप ही अक्षर (जिसका कभी नाश नहीं होता) हैं, आप ही परम हैं, आप ही जानना ज़रुरी है (जिन्हें जाना जाना चाहिये), आप ही इस विश्व के परम निधान (आश्रय) हैं। आप ही अव्यय (विकार हीन) हैं, मेरे मत में आप ही शाश्वत धर्म के रक्षक सनातन पुरुष हैं। EnI believe that you are Akshar, the imperishable God who is worthy of being known, the supreme goal of the Self, the great haven of the world, keeper of eternal Dharm, and the universal Supreme Spirit.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 19
अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्॥19॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 19 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआप आदि, मध्य और अन्त रहित (अनादिमध्यान्तम), अनन्त वीर्य (पराक्रम), अनन्त बाहू (बाजुयें) हैं। चन्द्र (शशि) और सूर्य आपके नेत्र हैं। हे भगवन, मैं आपके आग्नि पूर्ण प्रज्वलित वक्त्रों (मूँहों) को देखता हूँ जो अपने तेज से इस विश्व को तपा (गरमा) रहे हैं। EnI see you without beginning, end or middle, possessed of boundless might, innumerable hands, eyes like the sun and the moon, and a face as bright as fire, lighting up the world with your radiance.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 20
द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः।
दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्॥20॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 20 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiस्वर्ग (आकाश) और पृथिवी के बीच में जो भी स्थान है, सभी दिशाओं में, वह केवल एक आप के द्वारा ही व्याप्त है (स्वर्ग से लेकर पृथिवी तक केवल आप ही हैं)। आप के इस अद्भुत उग्र (घोर) रूप को देख कर, हे महात्मा, तीनों लोक प्रव्यथित (भय व्याकुल) हो रहे हैं। EnAnd, O Supreme Being, the whole space between heaven and earth is filled up by you and the three worlds are trembling with fear at the sight of your divine but terrible form.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 21
अमी हि त्वां सुरसंघा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसंघाः स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः॥21॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 21 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआप ही में देवता गण प्रवेश कर रहे हैं। कुछ भयभीत हुये हाथ जोड़े आप की स्तुति कर रहे हैं। महर्षी और सिद्ध गण स्वस्ति (कल्याण हो) उच्चारण कर उत्तम स्तुतियों द्वारा आप की प्रशंसा कर रहे हैं। EnMultitudes of gods are dissolving in you while a host of them are fearfully extolling your name and glories with folded hands, and, repeatedly pronouncing benediction, hosts of great sages and men of attainment are singing sublime hymns in your praise.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 22
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे॥22॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 22 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiरूद्र, आदित्य, वसु, साध्य गण, विश्वदेव, अश्विनी कुमार, मरूत गण, पितृ गण, गन्धर्व, यक्ष, असुर, सिद्ध गण – सब आप को विस्मय से देखते हैं। EnThe Rudr, sons of Aditi, Vasu, Sadhya,8 sons of vishwa, the Ashwin, Marut, Agni and hordes of gandharv, yaksh, demons and men of achievement, are all looking up at you with marvel.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 23
रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम्।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्॥23॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 23 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे महाबाहो, बहुत से मुख, बहुत से नेत्र, बहुत सी बाहुयें, बहुत सी जँगाऐं (उरु), पैर, बहुत से उदर (पेट), बहुत से विकराल दांतो वाले इस महान् रूप को देख कर यह संसार प्रव्यथित (भयभीत) हो रहा है और मैं भी। EnLooking at your colossus form with its many mouths and eyes, hands, thighs and feet, stomachs and dreadful tusks, O the mighty-armed, all beings are struck with terror and so am I.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 24
नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो॥24॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 24 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआकाश को छूते, अनेकों प्रकार (वर्णों) वाले आपके दीप्तमान रूप, जिनके खुले हुये विशाल मुख हैं और प्रज्वलित (दिप्तमान) विशाल नेत्र हैं – आपके इस रुप को देख कर मेरी अन्तर आत्मा भयभीत (प्रव्यथित) हो रही है। न मुझे धैर्य मिल रहा हैं, हे विष्णु, और न ही शान्ति। EnWhen I look at your enormous, dazzling form that reaches right up to the sky, with its numerous manifestations, wide open mouth, and huge glowing eyes, O Vishnu, my inmost soul trembles in fear, I am bereft of courage and peace of mind.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 25
दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास॥25॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 25 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआपके विकराल भयानक दाँतो को देख कर और काल-अग्नि के समान भयानक प्रज्वलित मुखों को देख कर मुझे दिशाओं कि सुध नहीं रही, न ही मुझे शान्ति प्राप्त हो रही है। प्रसन्न होईये हे देवेश (देवों के ईश), हे जगन्-निवास। EnSince I have lost my sense of direction and joy by beholding your faces with their frightening tusks and flaming like the great conflagration that is believed to consume the world in the event of doom, I entreat you, O God of gods, to be merciful and pacified.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 26, 27
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसंघैः।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः॥26॥
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः॥27॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 26, 27 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiधृतराष्ट्र के सभी पुत्र और उनके साथ और भी राजा लोग, श्री भीष्म, द्रोण, तथा कर्ण और हमारे पक्ष के भी कई मुख्य योधा आप के भयानक विकराल दाँतों वाले मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। और आप के दाँतों मे बीच फसें कईयों के सिर चूर्ण हुये दिखाई दे रहे हैं। EnAnd I see Dhritrashtr’s sons along with many other kings, Bheeshm, Dronacharya, Karn, even the commanders of our side and all… Beings rushing wildly into your dreadful mouth with its terrible tusks, and some of them lying between your teeth with crushed heads.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 28
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति॥28॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 28 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजैसे नदियों के अनेक जल प्रवाह वेग से समुद्र में प्रवेश करते हैं (की ओर बढते हैं), वैसे ही नर लोक (मनुष्य लोक) के यह योद्धा आप के प्रज्वलित मुखों में प्रवेश करते हैं। EnWarriors of the human world are flinging themselves into your flaming mouths just as numerous rivers plunge into the ocean.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 29
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः॥29॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 29 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजैसे जलती अग्नि में पतंगे बहुत तेज़ी से अपने ही नाश के लिये प्रवेश करते हैं, उसी प्रकार अपने नाश के लिये यह लोग अति वेग से आप के मुखों में प्रवेश करते हैं। EnThey cast themselves into your mouths for their destruction just as flying insects fling themselves into the flame.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 30
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो॥30॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 30 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiअपने प्रज्वलित मुखों से इन संपूर्ण लोकों को निगलते हुये और हर ओर से समेटते हुये, हे विष्णु, आपका यह उग्र प्रकाश संपूर्ण जगत में फैल कर इन लोकों को तपा रहा है। EnDevouring all the worlds with your flaming mouths and licking your lips, your intense lustre is consuming the whole world by filling it with its radiance.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 31
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्॥31॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 31 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiइस उग्र रुप वाले आप कौन हैं, मुझ से कहिये। आप को प्रणाम है हे देववर, प्रसन्न होईये। हे आदिदेव, मैं आप को अनुभव सहित जानना चाहता हूँ। मैं आपकी प्रवृत्ति अर्थात इस रुप लेने के कारण को नहीं जानता। EnSince I am ignorant of your nature, O Primal Being, and wish to know its reality, I pay my humble obeisance and pray you, O supreme God, to tell me who you are in this terrible form.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 32
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः॥32॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 32 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमैं संसार का क्षय करने के लिये प्रवृद्ध (बढा) हुआ काल हूँ। और इस समय इन लोकों का संहार करने में प्रवृत्त हूँ। तुम्हारे बिना भी, यहाँ तुम्हारे विपक्ष में जो योद्धा गण स्थित हैं, वे भविष्य में नहीं रहेंगे। Enl am the almighty time (kal), now inclined to and engaged in the destruction of worlds, and warriors of the opposing armies are going to die even without your killing them.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 33
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्॥33॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 33 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiइसलिये तुम उठो और अपने शत्रुयों को जीत कर यश प्राप्त करो और समृद्ध राज्य भोगो। तुम्हारे यह शत्रु मेरे द्वारा पैहले से ही मारे जा चुके हैं, हे सव्यसाचिन्, तुम केवल निमित्त-मात्र (कहने को) ही बनो। EnSo you should get up and earn renown and enjoy a thriving and affluent kingdom by vanquishing your enemies, because these warriors have already been killed by me and you, O Savyasachin (Arjun), have to be just the nominal agent of their destruction.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 34
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान्।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्॥34॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 34 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiद्रोण, श्री भीष्म, जयद्रथ, कर्ण तथा अन्य वीर योधा भी, मेरे द्वारा (पहले ही) मारे जा चुके हैं। व्यथा (गलत आग्रह) त्यागो और युध करो, तुम रण में अपने शत्रुओं को जीतोगे। EnDestroy, without any fear, Dronacharya, Bheeshm, Jayadrath, Karn, and the many other warriors who have already been killed by me, and fight because you will doubtlessly vanquish your foes.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 35
संजय उवाच (Sanjay Said):
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य॥35॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 35 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiश्री केशव के इन वचनों को सुन कर मुकुटधारी अर्जुन ने हाथ जोड़ कर श्री कृष्ण को नमस्कार किया और काँपते हुये भयभीत हृदय से फिरसे प्रणाम करते हुये बोले। EnTrembling with fear at hearing these words of Keshav11 and overwhelmed by feeling, Arjun thus spoke to Krishn with folded hands and reverent humbleness.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 36
अर्जुन उवाच (Arjun Said):
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः॥36॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 36 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiयह योग्य है, हे हृषीकेश, कि यह जगत आप की कीर्ती का गुणगान कर हर्षित होतै है और अनुरागित (प्रेम युक्त) होता है। आप से भयभीत हो कर राक्षस हर दिशाओं में भाग रहे हैं और सभी सिद्ध गण आपको नमस्कार कर रहे हैं। EnIt is but right, O Hrishikesh, that men rejoice in singing praises of your name and glory, demons flee helter-skelter out of fear of your glory, and accomplished sages bow to you in reverence.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 37
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्॥37॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 37 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiऔर हे महात्मा, आपको नमस्कार करें भी क्यों नहीं। आप ही सबसे बढकर हैं, ब्रह्मा जी के भी आदि कर्ता हैं (ब्रह्मा जी के भी आदि हैं)। आप ही अनन्त हैं, देव-ईश हैं, जगत्-निवास हैं। आप ही अक्षर हैं, आप ही सत् और असत् हैं, और उन संज्ञाओं से भी परे जो है वह भी आप ही हैं। EnWhat else can they do, O Great Soul, besides paying homage to you when you are, O God of gods and primal energy of the universe, the imperishable Supreme Spirit who is beyond all being and the non-being ?सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 38
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥38॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 38 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hआप ही आदि-देव (पुरातन देव) हैं, सनातन पुरुष हैं, आप ही इस संसार के परम आश्रय (निधान) हैं। आप ही ज्ञाता हैं और ज्ञेय (जिन्हें जानना चाहिये) हैं। आप ही परम धाम हैं और आप से ही यह संपूर्ण संसार व्याप्त है, हे अनन्त रुप। EYou, O infinite, are the primal God, eternal Spirit, the ultimate heaven of the world, seer, worthy of realization, the supreme goal, and the all-pervading.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 39
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥39॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 39 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआप ही वायु हैं, आप ही यम हैं, आप ही अग्नि हैं, आप ही वरुण (जल देवता) हैं, आप ही चन्द्र हैं, प्रजापति भी आप ही हैं, और प्रपितामहा (पितामह अर्थात पिता-के-पिता के भी पिता) भी आप हैं। आप को नमस्कार है, नमस्कार है, सहस्र (हज़ार) बार मैं आपको नमस्कार करता हूँ। और फिर से आपको नमस्कार है, नमस्कार है। EnAs you are the wind, the god of death (Yamraj), fire, the rain-god (Varun), the moon, the Lord of all creation, and even the primal root of Brahma, I bow before you a thousand times and even more.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 40
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥40॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 40 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे सर्व, आप को आगे से नमस्कार है, पीछे से भी नमस्कार है, हर प्रकार से नमस्कार है। हे अनन्त वीर्य, हे अमित विक्रमशाली, सबमें आप समाये हुये हैं (व्याप्त हैं), आप ही सब कुछ हैं। EnSince you possess, O the imperishable and almighty, infinite prowess and are the God who is omnipresent, you are honoured everywhere (by all).सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 41, 42
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।
अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि॥41॥
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु।
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्॥42॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 41, 42 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे भगवन्, आप को केवल आपना मित्र ही मान कर मैंने प्रमादवश (मूर्खता कारण) यां प्रेम वश आपको जो हे कृष्ण, हे यादव, हे सखा (मित्र) – कह कर संबोधित किया, आप के महिमानता को न जानते हुये। और हास्य मज़ाक करते हुये, या चलते फिरते, लेटे हुये, बैठे हुये अथवा भोजन करते हुये, अकेले में या आप के सामने मैंने जो भी असत् व्यवहार किया हो (जितना आदर पूर्ण व्यहार करना चाहिये उतना न किया हो) उसके लिये, हे अप्रमेय, आप मुझे क्षमा कर दीजिये। EnI seek your forgiveness, O the infinite, for all the indiscreet words I might have spoken to you, for taking the undue liberty of addressing you as ‘Krishn’ and ‘Yadav’, for any disrespect I might have inadvertently shown you in the course of frivolous dalliance or repose or while eating meals, O Achyut (infallible), or while we were together alone or with others, out of my feeling that you are my intimate friend and because of carelessness arising from my ignorance of your true magnificence.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 43
पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्।
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव॥43॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 43 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiआप इस चर-अचर लोक के पिता हैं, आप ही पूजनीय हैं, परम् गुरू हैं। हे अप्रतिम प्रभाव, इन तीनो लोकों में आप के बराबर (समान) ही कोई नहीं है, आप से बढकर तो कौन होगा भला। EnSince no one in the three worlds can even equal you, who are father of the animate and inanimate worlds, the greatest of all teachers, most venerable, and of immense magnificence, how can anyone else be superior to you?सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 44
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्॥44॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 44 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiइसलिये मैं झुक कर आप को प्रणाम करता, मुझ से प्रसन्न होईये हे ईश्वर। जैसे एक पिता अपने पुत्र के, मित्र आपने मित्र के, औप प्रिय आपने प्रिय की गलतियों को क्षमा कर देता है, वैसे ही हे देव, आप मुझे क्षमा कर दीजिये। EnSo throwing myself at your feet and bowing to you in the humblest homage, I beseech you, O the most adorable God, to forgive my errors as a father forgives his son, a friend his friend and a loving husband his beloved wife.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 45
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।
तदेव मे दर्शय देव रूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास॥45॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 45 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजो मैंने पहले कभी नहीं देखा, आप के इस रुप को देख लेने पर मैं अति प्रसन्न हो रहा हूँ, और साथ ही साथ मेरा मन भय से प्रव्यथित (व्याकुल) भी हो रहा है। हे भगवन्, आप कृप्या कर मुझे अपना सौम्य देव रुप (चार बाहों वाला रुप) ही दिखाईये। प्रसन्न होईये, हे देवेश, हे जगन्निवास (इस जगत के निवास स्थान)। EnBe appeased, O the infinite and God of gods, and show me your merciful form, because although I rejoice at beholding your wondrous (all-pervading) form which I had not viewed before, my mind is also afflicted with terror.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 46
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥46॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 46 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमैं आप को मुकुट धारण किये, और हाथों में गदा और चक्र धारण किये देखने का इच्छुक हूँ। हे भगवन्, आप चतुर्भुज (चार भुजाओं वाला) रुप धारण कर लीजिये, हे सहस्र बाहो (हज़ारों बाहों वाले), हे विश्व मूर्ते (विश्व रूप)। EnSince I long to see you, O the thousand-armed omnipresent God, as I beheld you earlier, wearing a crown and armed with a mace and your chakr, I pray you to resume your four-armed shape.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 47
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शितमात्मयोगात्।
तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्॥47॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 47 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे अर्जुन, तुम पर प्रसन्न होकर मैंने तुम्हे अपनी योगशक्ति द्वारा इस परम रूप का दर्शन कराया है। मेरे इस तेजोमयी, अनन्त, आदि विश्व रूप को तुमसे पहले किसी ने नहीं देखा है। EnI have compassionately revealed to you, O Arjun, by an exercise of my power of yog, my resplendent, primeval, infinite, omnipresent form which no one else has beheld before.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 48
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।
एवंरूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर॥48॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 48 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे कुरुप्रवीर (कुरूओं में श्रेष्ठ वीर), तुम्हारे अतिरिक्त इस नर लोक में कोई भी वेदों द्वारा, यज्ञों द्वारा, अध्ययन द्वारा, दान द्वारा, या क्रयाओं द्वारा (योग क्रियाऐं आदि), या फिर उग्र तप द्वारा भी मेरे इस रुप को नहीं देख सकता। EnO the most distinguished of Kuru, no one else besides you in this mortal world is capable of seeing my infinite, universal form, which can be known neither by study of the Ved nor by performance of yagya, nor even by charity or virtuous deeds, or rigorous spiritual austerities.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 49
मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम्।
व्यपेतभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य॥49॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 49 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमेरे इस घोर रुप को देख कर न तुम व्यथा करो न मूढ भाव हो (अतः भयभीत और स्तब्ध न हो)। तुम भयमुक्त होकर फिर से प्रिति पूर्ण मन से (प्रसन्न चित्त से) मेरे इस (सौम्य) रूप को देखो। EnBehold again my four-armed form (bearing a lotus, a conch, a mace, and my chakr), so that you are freed from the confusions and fears inspired by my terrible manifestation and think of me with (nothing but) affection.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 50
संजय उवाच (Sanjay Said):
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।
आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा॥50॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 50 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiअर्जुन को यह कह कर वासुदेव ने फिर से उन्हें अपने (सौम्य) रुप के दर्शन कराये। इस प्रकार उन महात्मा (भगवान्) ने भयभीत हुये अर्जुन को अपना सौम्य रूप दिखा कर आश्वासन दिया। EnAfter thus speaking to Arjun, Lord Vasudev again revealed his earlier form and the sage-like Krishn thus comforted the frightened Arjun by manifesting to him his placid form.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 51
अर्जुन उवाच (Arjun Said):
दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन।
इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः॥51॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 51 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiहे जनार्दन, आपके इस सौम्य (मधुर) मानुष रूप को देख कर शान्तचित्त हो कर अपनी प्रकृति को प्राप्त हो गया हूँ (अर्थात अब मेरी सुध बुध वापिस आ गई है)। EnO Janardan, I have regained my composure and tranquillity (of mind) by seeing this your most benevolent human form.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 52
श्रीभगवानुवाच (THE LORD SAID):
सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम।
देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः॥52॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 52 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiमेरा यह रूप जो तुमने देखा है, इसे देख पाना अत्यन्त कठिन (अति दुर्लभ) है। इसे देखने की देवता भी सदा कामना करते हैं। EnThis form of mine which you have seen is the most rare, because even gods ever pine for a view of it.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 53
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।
शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा॥53॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 53 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiन मुझे वेदों द्वारा, न तप द्वारा, न दान द्वारा और न ही यज्ञ द्वारा इस रूप में देखा जा सकता है, जिस रूप में मुझे तुमने देखा है हे अर्जुन। EnMy four-armed form which you have seen is beyond knowing by either study of the Ved or by penance or by charity, and not even by munificence or performance of yagya.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 54
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन।
ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप॥54॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 54 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiलेकिन अनन्य भक्ति द्वारा, हे अर्जुन, मुझे इस प्रकार (रूप को) जाना भी जा सकता है, देखा भी जा सकता है, और मेरे तत्व (सार) में प्रवेष भी किया जा सकता है हे परंतप। EnO Arjun, a man of great penance, a worshipper can know this form of mine directly, acquire its essence, and even become one with it by a total and unswerving dedication.सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 11 शलोक 55
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्गवर्जितः।
निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव॥55॥
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 शलोक 55 का हिन्दी और English में अनुवाद
Hiजो मनुष्य मेरे लिये ही कर्म करता है, मुझी की तरफ लगा हुआ है, मेरा भक्त है, और संग रहित है (दूसरी चीज़ों, विषयों के चिन्तन में डूबा हुआ नहीं है), सभी जीवों की तरफ वैर रहित है, वह भक्त मुझे प्राप्त करता है हे पाण्डव। EnThis man, O Arjun, who acts only for my sake (matkarmah), rests on and is dedicated to me alone (matparmah), in complete detachment (sangvarjitah) and freedom from malice towards all beings (nirvairah sarvbhooteshu), knows and attains to me.