श्रीरामभक्त विभीषण – रामायण
महर्षि विश्रवाको असुर कन्या कैकसीके संयोगसे तीन पुत्र हुए – रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण| विभीषण विश्रवाके सबसे छोटे पुत्र थे|बचपनसे ही इनकी धर्माचरणमें रुचि थी| ये भगवान् के परम भक्त थे|
तीनों भाइयोंने बहुत दिनोंतक कठोर तपस्या करके श्रीब्रह्माजीको प्रसन्न किया| ब्रह्माने प्रकट होकर तीनोंसे वर माँगनेके लिये कहा – रावणने अपने महत्त्वाकांक्षी स्वभावके अनुसार श्रीब्रह्माजीसे त्रैलोक्य विजयी होनेका वरदान माँगा, कुम्भकर्णने छ: महीनेकी नींद माँगी और विभीषणने उनसे भगवद्भक्तिकी याचना की| सबको यथायोग्य वरदान देकर श्रीब्रह्माजी अपने लोक पधारे| तपस्यासे लौटनेके बाद रावणने अपने सौतेले भाई कुबेरसे सोनेकी लंकापूरीको छीनकर उसे अपनी राजधानी बनाया और ब्रह्माके वरदानके प्रभावसे त्रैलोक्य विजयी बना| ब्रह्माजीकी सृष्टिमें जितने भी शरीरधारी प्राणी थे, सभी रावणके वशमें हो गये| विभीषण भी रावणके साथ लंकामें रहने लगे|
रावणने जब सीताजीका हरण किया, तब विभीषणने परायी स्त्रीके हरणको महापाप बताते हुए सीताजीको श्रीरामको लौटा देनेकी उसे सलाह दी| किन्तु रावणने उसपर कोई ध्यान न दिया| श्रीहनुमान् जी सीताकी खोज करते हुए लंकामें आये| उन्होंने श्रीरामनामसे अंकित विभीषणका घर देखा| घरके चारों ओर तुलसीके वृक्ष लगे हुए थे| सूर्योदयके पूर्वका समय था, उसी समय श्रीराम-नामका स्मरण करते हुए विभीषणजी की निद्रा भंग हुई| राक्षसोंके नगरमें श्रीरामभक्तको देखकर हनुमान् जीको आश्चर्य हुआ| दो रामभक्तोंका परस्पर मिलन हुआ| श्रीहनुमान् जीका दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गये| उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रीरामदूतके रूप में श्रीरामने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है| श्रीहनुमान् जी ने उनसे पता पूछकर अशोकवाटिकामें माता सीताका दर्शन किया| अशोकवाटिका-विध्वंस और अक्षयकुमारके वधके अपराधमें रावण हनुमान् जी को प्राणदण्ड देना चाहता था| उस समय विभीषणने ही उसे दूतको अवध्य बताकर हनुमान् जी को कोई और दण्ड देनेकी सलाह दी| रावणने हनुमान् जी की पूँछमें आग लगानेकी आज्ञा दी और विभीषणके मन्दिरको छोड़कर सम्पूर्ण लंका जलकर राख हो गयी|
भगवान् श्रीरामने लंकापर चढ़ायी कर दी| विभीषणने पुन: सीताको वापस करके युद्धकी विभीषणको रोकनेकि रावणसे प्रार्थना की| इसपर रावणने इन्हें लात मारकर निकाल दिया| ये श्रीरामके शरणागत हुए| रावण सपरिवार मारा गया| भगवान् श्रीरामने विभीषणको लंकाका नरेश बनाया और अजर-अमर होने का वरदान दिया| विभीषणजी सप्त चिरंजीवियों एक हैं और अभीतक विद्यमान हैं|