भगवान श्रीराम – रामायण

भगवान श्रीराम

असंख्य सद्गुणरूपी रत्नोंके महान निधि भगवान् श्रीराम धर्मपरायण भारतीयोंके परमाराध्य हैं| श्रीराम ही धर्मके रक्षक, चराचर विश्वकी सृष्टि करनेवाले, पालन करनेवाले तथा संहार करनेवाले परब्रह्मके पूर्णावतार हैं|

रामायणमें यथार्थ ही कह गया है – ‘रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता|’ भगवान् श्रीराम धर्मके क्षीण हो जानेपर साधुओंकी रक्षा, दुष्टोंका विनाश और भूतलपर शान्ति एवं धर्मकी स्थापना करनेके लिये अवतार लेते हैं| उन्होंने त्रेतायुगमें देवताओंकी प्रार्थना सुनकर पृथ्वीका भार हरण करनेके लिये अयोध्याधिपति महाराज दशरथके यहाँ चैत्र शुक्ल नवमीके दिन अवतार लिया और राक्षसोंका संहार करके त्रिलोकीमें अपनी अविचल कीर्ति स्थापित की| पृथ्वीका धारण-पोषण, समाजका संरक्षण और साधुओंका परित्राण करनेके कारण भगवान् श्रीराम मूर्तिमान् धर्म ही हैं|

भगवान् श्रीराम जीवमात्रके कल्याणके लिये अवतरित हुए थे| विविध रामायणों, अठराह महापुराणों, रघुवंशादि महाकाव्यों, हनुमदादि नाटकों, अनेक चप्पू-काव्यों तथा महाभारतादिमें इनके विस्तृत चरित्रका ललित वर्णन मिलता है| श्रीरामके विषयमें जितने ग्रन्थ लिखे गये, उतने किसी अन्य अवतारके चरित्रपर नहीं लिखे गये| गुरुगृहसे अल्पकालमें शिक्षा प्राप्त करके लौटनेके बाद इनका चरित्र विश्वामित्रकी यज्ञरक्षा, जनकपुरमें शिव-धनुष-भंग, सीता-विवाह, परशुरामका गर्वभंग आदिके रूपमें विख्यात है| यज्ञरक्षाके लिये जाते समय इन्होंने ताड़का-वध, महर्षि विश्वामित्रके आश्रमपर सुबाहु आदि दैत्योंका संहार तथा गौतमकी पत्नी अहल्याका उद्धार किया| कैकेयीके वरदानस्वरूप पिताकी आज्ञाका पालन करनेके लिये ये चौदह वर्षोंके लिये वनमें गये| चित्रकूटादि अनेक स्थानोंमें रहकर इन्होंने ऋषियोंको कृतार्थ किया| पञ्चवटीमें शूर्पणखाकी नाक-कान काटकर और खर-दूषण, त्रिशिरा आदिका वधकर इन्होंने रावणको युद्धके लिये चुनौती दी| रावणने मारीचकी सहायतासे सीताका अपहरण किया| सीताकी खोज करते हुए इन्होंने सुतीक्ष्ण, शरभंग, जटायु, शबरी आदिको सद्गति प्रदान की कथा ऋष्यमूक पर्वतपर पहुँचकर सुग्रीवसे मैत्री की और वालीका वध किया| फिर श्रीहनुमान् जीके द्वारा सीताका पता लगवाकर इन्होंने समुद्रपार सेतु बँधवाया और वानरी-सेनाकी सहायतासे रावण-कुम्भकर्णादिका वध किया तथा विभीषणको राज्य देकर सीताजीका उद्धार किया| भगवान् श्रीरामने लगभग ग्यारह हजार वर्षोंतक राज्य करके त्रेतामें सत्ययुगकी स्थापना की| अपने राज्यकालमें रामराज्यको चिरस्मरणीय बनाकर पुराणपुरुष श्रीराम सपरिकर अपने दिव्यधाम साकेत पधारे|

कर्तव्यज्ञानकी शिक्षा देना रामावतारकी विशेषता है| इसका दुष्टान्त भगवान् श्रीरामने स्वयं अपने आचरणोंके द्वारा कर्म करके दिखाया| वे एक आदर्श पुत्र, आदर्श भ्राता, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श स्वामी, आदर्श वीर, आदर्श देशसेवक और सर्वश्रेष्ठ महामानव होनेके साथ साक्षात् परमात्मा थे| भगवान् श्रीरामका चरित्र अनन्त है, उनकी कथा अनन्त है| उसका वर्णन करनेकी सामर्थ्य किसीमें नहीं है| भक्तगण अपनी भावनाके अनुसार उनका गुणगान करते हैं|