साखी पिंगला की (Sakhi Pingla ki)
अजामलु पिंगुला लुभतु कुंचरु गऐ हरि कै पासि ||
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उपरोक्त तुक में भक्त रविदास जी ने कथन किया है कि अजामल, पिंगला और हाथी जैसे हरि परमात्मा के पास चले गए| हरि परमात्मा सब भक्तों को शरण देता है| जो उसका नाम जपता है; उसको याद करता है प्रभु उसी को अपने चरणों में लगाता है क्योंकि आत्मा और परमात्मा में माया की जुदाई है| माया भेद कर के ही वह परमात्मा से बिछुड़ा है| जब माया का अम्बार दूर हो जाता है तो ज्ञान आ जाता है और खुद ही आत्मा परमात्मा से घुल-मिल जाती है| बाहर क्यों रहते हैं? जुदाई क्यों पैदा होती है? इसका उत्तर है कि उनको ज्ञान प्राप्त नहीं होता| ज्ञान क्यों नहीं होता? क्योंकि उसने गुरु धारण नहीं किया होता| गुरु पर भरोसा न होने के कारण है|
सच्चे सतिगुरु के बिना आल जंजाल माया के चमत्कारों में फंसे रहते हैं| विमुख या समक्ष रहते हैं ऐसे पुरुषों का कभी कल्याण नहीं होता वह विमुख होते हैं| उनका नेकी की ओर ध्यान नहीं होता| जब नेकी, सत्य, धर्म, कर्म, भक्ति की ओर ध्यान नहीं और वह यदि ईश्वर का भय नहीं रखते तब कैसे उनका कल्याण हो सकता है? कभी नहीं होता चाहे कहीं घूमते रहें|
गंगा जमन गोदावरी कुलखेत सिधारे |
मथुरा माइआ अजुधिआ काशी केदारे |
गइआ पिराग सुरसवती गोतमी दुआरे |
जप तप संजम होम जगि सभ देव जुहारे |
अखीं परणै जे भवै तिहु लोइ मझारे |
मूलि न उतरै हतिआ बेमुख गुरदुआरे |
जब तक आत्मा पवित्र न हो, तब तक धर्म, कर्म, पूजा-पाठ और तीर्थ पर जाना लाभदायक नहीं होता| गुरु की शरण में जाएं| पिंगला उसी तरह का जीवन था जिस तरह भाई गुरदास जी फरमाते हैं:-
नारि भतारहुं बाहरी सुखि सेज न चड़ीऐ |
पुत न मंनै मापिआं कमजातीं वड़ीऐ |
पिंगला भरी जवानी में थी, पर एक पति के बिना वह कभी सुख की सेज नहीं सोई| उसके ग्राहक आते थे, वह भी विभिन्न स्वभाव के होते थे| कोई शराबी, कोई भंगी-नशेड़ी, पर उसने तो सब का स्वागत करना था| ऐसी दशा में धर्मप्रिय की नगरी में रहती थी| जब वह बाहर जाती तो गृहस्थ औरतें उसकी तरफ घूर-घूर कर देखतीं, वह सदा उनसे घृणा करती थी| उसके पास अत्यन्त धन होने के बावजूद भी समाज और धार्मिक स्थल पर सम्मान न होता| उसको एक अछूत तथा एक कोढ़ गिना जाता लेकिन मंद कर्मी पुरुष उसको आंखों पर बैठाते|
एक समय वह बाहर घूमने निकली| वह जब राजा की ओर से बनाए सरोवर के पास पहुंची तो वहां एक महात्मा नारी की महानता और पतिव्रता धर्म का उपदेश दे रहा था| सैकड़ों स्त्री-पुरुष एकाग्रचित ध्यान लगा कर उपदेश सुन रहे थे| उनका ध्यान कथा भाव के साथ जुड़ा हुआ था!
महात्मा उपदेश कर रहा था कि नारी का धर्म पति की सेवा करना है, वह भी एकाग्रचित होकर और घर गृहस्थी को चलाना क्योंकि घर गृहस्थी और नारी जगत उत्पति का मूल है| नारी की सूजना इसलिए की गई है| लेकिन यदि नारी एक पति की सेवा नहीं करती एक के भरोसे पर नहीं रहती और पराए पुरुष के पीछे भटकती फिरती है तो वह नारी एक डायन बन जाती है| इसलिए नारी को पतिव्रता रहना चाहिए|
ऐसा उपदेश जब हो रहा था तो पिंगला ने भी सुन लिया, वह कभी मन्दिर, कथा कीर्तन स्थान के पास कभी खड़ी नहीं होती थी पर उस समय उसके मन में आ गया, वह खड़ी हो गई और महात्मा का उपदेश वरदान की तरह हृदय को छू गया| वह खड़ी रही| आगे का उपदेश वरदान की तरह हृदय को छू गया| वह खड़ी रही| आगे उसके पांव न चले| उसको ऐसा महसूस हुआ कि सच्ची बातों का उपदेश उसको दिया जा रहा था| वह उपदेश सुन रही थी|
महात्मा जब उपदेश करके रुके तो उसने आगे बढ़ कर महात्मा के चरणों को छू कर विनम्रता से प्रार्थना की-‘महाराज! मैं एक वेश्या हूं, हर रात तन बेचती और मूल्य लेती हूं, नाचती और गाती हूं, मदिरापान भी करती हूं! जो भी पुरुष आता है उससे झूठ बोल कर कहती हूं, ‘मैं तुम्हारी हूं| तुम्हें ही प्यार करती हूं| और किसी को प्यार नहीं करती|’ होता झूठ है, झूठ के साथ जूठन भी खानी पड़ती है, बताएं ऐसे कुकर्म करने वालों का भी कभी कल्याण हो सकता है?
महात्मा ने पिंगला की बात को ध्यान से सुना| उसकी और देखकर उसके चेहरे और उसकी आंखों और हृदय की बात जानने का विचार किया| उस समय उसको उत्तर दिया -‘हां देवी! तेरा भी कल्याण हो सकता है| केवल मन बदलने की जरूरत है| बुरे कामों से निकल कर स्नान करके अच्छे वस्त्र पहनने की आवश्यकता है| ऐसा कर लो तो ईश्वर प्रसन्न होगा| धन पदार्थ तो ईश्वर के हैं| यह लीला है जो होती रहती है| हर एक जीव आत्मा अमलों के कारण ही तो पवित्र है, वह जैसे वातावरण से निकलती है वैसा ही रंग ले लेती है और कोई बात नहीं|’
पिंगला – ‘कीचड़ में से कैसे निकलूं, मैं तो दलदल तक फंसी हूं|’
महात्मा – ‘यत्न करने की आवश्यकता है| मन पर काबू पा सको तो|
पिंगला – जैसे आप बताएंगे वैसा ही करूंगी| आपको गुरु धारण करती हूं| ‘आज्ञा करें|’
यह कह कर पिंगला ने महात्मा के चरण पकड़ लिए|
महात्मा ने उसकी पसीजी आत्मा की ओर देखा और कहा – ‘देवी! एक पर्ण करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है|’
पिंगला – ‘आज्ञा करें महाराज|’
महात्मा – ‘वचन का पालन करोगी?’
पिंगला – ‘महाराज! जीवन भर आपकी आज्ञा का पालन करूंगी, मेरा मन कह रहा है|’
महात्मा – ‘देख, तेरे जीवन का वातावरण ऐसा है, गृहस्थ धर्म ग्रहण करो| एक पति की पूजा करो| पति प्यार और श्रद्धा से तेरा कल्याण हो जाएगा|’
पिंगला – ‘पति मेरा कोई नहीं, विवाह मेरे साथ कौन करेगा? मैं कैसे तपस्या करूंगी?’
महात्मा – ‘जो पुरुष तुम्हारे पास पहले आए, उसको पति मान ले और उसकी सेवा करती रहना अन्य किसी के पास तन भेंट मत करना, उसी से तुम्हारी मुक्ति होगी|
पिंगला – ‘आप ने मुझे ज्ञान दिया है, मेरे गुरु बने हैं, क्या मैं अपनी सारी दौलत आपको अर्पण कर सकती हूं? सारी दौलत किस काम की|’
महात्मा – ‘जो कुछ तेरे पास है, वह अपने पास ही रखो, धन-पूंजी रखो| जाओ, तुम्हारा कल्याण होगा|’
इस तरह उपदेश लेकर पिंगला अपने घर आ गई| उसको ऐसा लगा जैसे उसका शरीर और दिल-दिमाग हल्का हो गया हो| घर आई तो हर वस्तु उसको पराई और नई-नई लगी| उस शाम को उसने स्नान किया| नए वस्त्र पहने और तैयार होकर बैठ गई| महात्मा की बात पर अमल करना था, जो पुरुष पहले आए, जिस के साथ मेल हो, उसको अपना पति मान ले| उसके बगैर किसी और के नजदीक न जाए|
एक पुरुष आया, वह जवान था और घर से भी अच्छा था| उसके आने पर उसने घर के दरवाजे बंद कर लिए और उसको कहा, ‘देखो प्रिय! मैंने फैसला किया है, एक पुरुष के बगैर किसी अन्य के निकट नहीं जाऊंगी, आप मेरा साथ देंगे तो मैं आपकी ही रहूंगी और आप मेरे, ऐसा ही करना होगा|’
‘….यदि ऐसा हो जाए तो और क्या चाहिए, मैं तो आपका प्रेमी हूं| जान देने को तैयार हूं|’ पुरुष ने उत्तर दिया|
यह बात सुन कर पिंगला खुश हो गई और उसने अपना तन और मन उस पुरुष के हवाले कर दिया| उसके बाद किसी अन्य पुरुष के पास न गई, नाचगान सब कुछ एक पुरुष के लिए हो गया| इस प्रकार कई साल बीत गए| लोग पिंगला की बैठक को भूल गए| और वह एक गृहिणी बन गई, उसकी रूचि बदल गई| उसने मदिरा पान छोड़ दिया| वह धर्म-कर्म की और बढ़ गई| प्यारा पति आता तो उसकी सेवा करती और उसका दिया खाती और किसी के हाथ का खाना ज़हर समझती| कहते हैं इस तरह बारह साल बीत गए| वह एक पुरुष की दासी रही| उसकी भक्ति देखकर लोग हैरान हो गए| उसके प्रेमी ने विवाह न किया और वह मर गया| फिर जो पुरुष पहले आता उसी को पति मानती…. पर उसकी मूल मंशा पूरी न हुई|
एक दिन भगवान विष्णु ने उसकी परीक्षा लेकर उसका कल्याण के लिए मार्ग ढूंढा| उसका धर्म देखने और महात्मा के वचनों पर कितना चली है परीक्षा लेने आए भगवान विष्णु|
शाम हुई तो भगवान विष्णु एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके पिंगला की बैठक पर आ गए| पिंगला ने उनका स्वागत किया| चरणों को धोया| हालचाल पूछा और आदर से बिठाया| पहले उनके चरण दबाए| जब उसके मन की इच्छा पूर्ण करने का विचार आया तो वह बीमार हो गया| उसको हैजा हो गया| टट्टियां आने लगी और दसतों का रूप धारण करके और भी हालत बिगड़ गई| पिंगला सेवा करती रही| रात भर जरा भी आराम न किया परन्तु माथे पर बल न आया| एक पतिव्रता स्त्री की तरह खिले माथे सेवा करती रही| सुबह होते ही वह ब्राह्मण मर गया| उसके मरने पर रोने लगी| बाजार वाले हैरान हुए| किसी ने कुछ कहा| पर उसने कोई बात न सुनी| उसने अपने पास से ब्राह्मण की चिता का प्रबन्ध किया| हाथ में सधौरा लेकर साथ ही सती होने के लिए तैयार हो गई| जब लोगों ने रोका तब भी न रुकी| तब भगवान विष्णु ने अपना हाथ छोड़ दिया और वह उस चिता से उठ खड़े हुए| वह विष्णु रूप ब्राह्मण जीवित हो गया| लोग काफी हैरान हुए| पिंगला खुश हो गई| उस समय वह ब्राहमण विष्णु का रूप हो गया| शंखों की धुन अपने आप प्रगट हुई| सभी लोग हाथ जोड़ कर खड़े हो गए| विष्णु ने पिंगला को कहा – ‘धन्य है देवी! मांग लो जो मांगना है| तेरी भक्ति प्रवान हुई|’
पिंगला भगवान विष्णु के चरणों में झुक गई| उसने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि, ‘महाराज! कोई इच्छा नहीं| बस पापिन का कल्याण हो|’
यह सुन कर विष्णु जी बहुत खुश हुए और उन्होंने कहा, ‘तथास्तु’ तेरी इच्छा पूर्ण होगी| बाकी जीवन उसने भक्ति में गुजारा और अंतकाल वह स्वर्ग में गई|
इस कथा का संक्षेप भाव है कि जो भी मंद कर्मी जब किसी नेक पुरुष, गुरु पीर का उपदेश ग्रहण कर अपना जीवन बदल लेता है, उसका कल्याण होता है| जगत में यश होता है|