भक्त परमानंद जी (Bhagat Parmanand Ji)
भूमिका:
भक्त परमानंद जी अतीत ज्ञानी, विद्वान, हरि भक्त तथा कवि हुए हैं|
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परिचय:
आपका जन्म गाँव बारसी जिला शोलापुर में हुआ| आपका समय 1606 विक्रमी के निकट का है| जब भक्ति लय जोरो पर चल रही थी| आपने अधिकतर समय वृन्दावन में गुजारा| आप मुम्बई की तरफ के रहने वाले थे|
आपने उपदेश दिया:
हे मनुष्य! इतिहास की कथा सुनकर तुमने क्या किया| यह जो कथा कहानियाँ सुनी, वह नाशवान भक्ति है| सच्ची भक्ति तो तेरे अन्दर आई ही नहीं| सारी उमर डींगे मरता रहा| किसी भूखे को कमाई में से दान तक नहीं दिया| पराई निन्दा, क्रोध, लिंग वासना तो छोड़ी ही नहीं| यही बड़ी बीमारियाँ हैं| इसलिए तुमने जितनी भी भक्ति की वह भी व्यर्थ ही गई|
हे पुरुष तुम रहा रोकते रहे| ताक भी लगाई रखी| ताले तोड़ दिए| इन कामों ने परलोक में तुम्हारी निन्दा कराई और निरादर भी हुआ| तुम्हारे यह सारे कार्य मूर्खो वाले हैं| तुमने शिकार खेलना नहीं छोड़ा| जीव हत्या करते रहे| कभी पक्षी पर भी दया नहीं की| और तो और सतसंग में जाकर हरि यश नहीं सुना| तो बताओ तुम्हारा कल्याण कैसे होगा? इस प्रकार उन्होंने सबको उपदेश दिया|
साहित्य देन:
भक्त परमानंद जी के निम्नलिखित ग्रंथ मिलते हैं –
- परमानंद सागर
- परमदास पद
- दान लीला
- ध्रुव चरित्र