सद्आचरण की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित
सद्आचरण की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या
मरै जु माँगन जाहिं |
तिनते पहिले वे मरे,
होत करत हैं नहिं ||
व्याख्या: जो किसी के यहाँ मांगने गया, जानो वह मर गया | उससे पहले वो मरगया जिसने होते हुए मना कर दिया |
जो मानै गुरु सीख |
जब लग तू घर में रहैं,
मति कहुँ माँगे भीख ||
व्याख्या: आज भी तेरे सब दोष – दुःख मिट जाये, यदि तू सतगुरु की शिक्षा को सुने और माने | जब तक तू ग्रस्थ में है, कहीं भिक्षा मत माँग |
माँगि लिया नहीं दोष |
उदर समाता माँगि ले,
निश्चै पावै मोष ||
व्याख्या: बिना माँगे मिला हुआ सर्वोतम है, साधु को दोष नहीं है यदि पेट के लिए माँग लिया | उदर पूर्ति के लिए माँग लेने में मोक्ष साधन में निश्चय ही कोई बाधा नहीं पड़ेगी |
माँगि मिलै सौ पानि |
कहैं कबीर वह रक्त है,
जामे ऐंचातानि ||
व्याख्या: वह दूध के समान उत्तम है, जो बिना माँगे सहज रूप से मिल जाये | मांगने से मिले वह पानी के समान मध्यम है | गुरु कबीर जी कहते हैं जिसमे ऐचातान (अडंगा डालकर मांगना और कष्टपूर्वक देना) है, वह रक्त के समान त्यागने योग्य है |
तेहि दई मैं सीख |
कहैं कबीर समझाय को,
मति कोई माँगै भीख ||
व्याख्या: माँगन मरने के समान है येही गुरु कबीर सीख देते है और समझाते हुए कहते हैं की मैं तुम्हे शिक्षा देता हूँ, कोई भीख मत मांगो |
मध्यम माँगि जोलेय |
कहैं कबीर निकृष्टि सो,
पर घर धरना देय ||
व्याख्या: उपयुक्त बिना माँगे मिला हुआ उत्तम कहा, माँगा लेना मध्यम कहा पराये – द्वारे पर धरना देकर हठपूर्वक माँगना तो महापाप है |