निष्काम की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित
जीवन की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या
1 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
संसारी से प्रीतड़ी,
सरै न एको काम |
दुविधा में दोनों गये,
माया मिली न राम ||
सरै न एको काम |
दुविधा में दोनों गये,
माया मिली न राम ||
व्याख्या: संसारियों से प्रेम जोड़ने से, कल्याण का एक काम भी नहीं होता| दुविधा में तुम्हारे दोनों चले जयेंगे, न माया हाथ लगेगी न स्वस्वरूप स्तिथि होगी, अतः जगत से निराश होकर अखंड वैराग्ये करो|
2 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
स्वारथ का सब कोई सगा,
सारा ही जग जान |
बिन स्वारथ आदर करे,
सो नर चतुर सुजान ||
सारा ही जग जान |
बिन स्वारथ आदर करे,
सो नर चतुर सुजान ||
व्याख्या: स्वार्थ के ही सब मित्र हैं, सरे संसार की येही दशा समझलो| बिना स्वार्थ के जो आदर करता है, वही मनुष्य विचारवान – बुद्धिमान है |