कुत्ते की पूँछ – श्री साईं कथा व लीला
पंडितजी चुपचाप बैठे अपने भविष्य के विषय में चिंतन कर रहे थे| उन्हें पता ही नहीं चला कि कब एक आदमी उनके पास आकर खड़ा हो गया है| जब पंडितजी ने कुछ ध्यान न दिया तो, उसने स्वयं आवाज दी|
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“राम-राम पंडितजी|”
पंडितजी चौंक गये|
“क्या बात है, किस सोच में पड़े हो ?”
पंडितजी ने देखा तो देखते ही रह गये| उनके सामने लक्ष्मण खड़ा था|
“लक्ष्मण…तुम…|”
“हां पंडितजी|”
“कब आये ?” -पूछा पंडितजी ने|
“बस सीधे आपके पास ही चला आ रहा हूं|” लक्ष्मण पंडितजी के पास बैठ गया|
पंडितजी अभी भी उसे एकटक देखे जा रहे थे| कोई दो साल के बाद लक्ष्मण को देखा था| लक्ष्मण शिरडी का मशहूर बदमाश था| दो साल की सजा भुगतने के बाद अब वह जेल से सीधा आ रहा था| लक्ष्मण का इस दुनिया में कोई न था| वह एकदम अकेला था| आवारागर्दी, चोरी, गुंडागर्दी, छेड़छाड़, मारपीट करना ही उसके काम थे|
लक्ष्मण बोला – “क्या बात है, बड़े चुपचाप और उदास से बैठे हैं आज आप ?”
“हां|” – पंडितजी ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा|
“क्या बात हो गयी ?”
“कुछ न पूछ लक्ष्मण ! इस गांव में एक चमत्कारी बाबा आया है| उसने मेरा सारा धंधा-पानी ही चौपट कर दिया है| अब तो भूखों मरने की नौबत आ गयी है|”
लक्ष्मण आश्चर्य से बोला – “कौन है वह ?”
“लोग उसको साईं बाबा कहते हैं|”
“अच्छा कहां का है वह ?”
“क्या पता ?” पंडितजी ने कहा – “तुम अपना हालचाल कहो|”
“बस ! सीधा जेल से छूटते ही यहां चला आ रहा हूं|” लक्ष्मण मुस्कराया – “यदि तुम कहो तो बाबा को अपना चमत्कार दिखा दूं|” और वह हँसने लगा|
वैसे इससे पहले कई बार लक्ष्मण की सहायता से पंडित अपने विरोधियों को धूल चटवा चुका था| वह सोचने लगा, सांप की उस चमत्कारी घटना के कारण, जो स्वयं उसके साथ घटित हुई थी, वह भुला न पा रहा था|
“बोलो पंडितजी ! क्या विचार है ?”
“कोशिश कर लो !”
“कोशिश क्यों ? मैं करके दिखा दूंगा| एक ही दिन में छोड़कर भाग जाएगा|” लक्ष्मण हँसने लगा|
“जैसी तुम्हारी इच्छा|”
“क्या मैं तुम्हारे लिए इतना छोटा-सा काम नहीं कर सकता हूं ?” लक्ष्मण ने कहा – “आपके तो बहुत अहसमान हैं मुझ पर|”
“पंडित चुप रह गया|”
“कहां रहता है वह चमत्कारी बाबा ?”
“द्वारिकामाई मस्जिद में|”
“क्या पता, कभी वह मुसलमान बन जाता है और कभी हिन्दू ! क्या है वह, कुछ पता नहीं|”
“ठीक है, मैं देख लूंगा उसे|”
“जरा सावधानी से|” पंडित बोला – “सुना है, बड़ा चमत्कारी है वह|”
“अच्छा-अच्छा|” लक्ष्मण बोला – “ख्याल रखूंगा|”
“ठीक है सुबह-शाम मेरे यहां आकर खाना खा गया जाया करो| रात मैं बरामदा सोने के लिए है ही|”
लक्ष्मण चला गया|
पंडित चिंता में पड़ गया| कहीं फिर उसने आत्मघाती कदम तो नहीं उठा लिया| यदि चमत्कार हो गया तो इस बार साईं बाबा उसे माफ नहीं करेगा| वह परेशान था कि आखिर यह साईं है क्या ?
लक्ष्मण पंडित के पास से उठकर सीधे द्वारिकामाई मस्जिद गया| टूटी-फूटी द्वारिका मस्जिद का कायाकल्प देखकर वह हैरान रह गया| मस्जिद में चहल-पहल थी| साईं बाबा की धूनी जली हुई थी| वह उनकी धूनी के पास जाकर बैठ गया|
साईं बाबा के पास उनके शिष्य बैठे थे| लक्ष्मण ने देखा, साईं बाबा कोई विशेष नहीं है| दुबला-पतला, इकहरा बदन है| एक ही हाथ में जमीन सूंघ जाएगा| हां, चेहरे पर एक अजीब-सा आकर्षक-तेज अवश्य था|”
साईं बाबा ने लक्ष्मण की ओर नजर उठाकर भी न देखा| अजनबी होने के बावजूद उससे पूछताछ न की|
शिष्यगण चले गए| लक्ष्मण अकेला बैठा रह गया|
उसकी उपस्थिति की सर्वथा उपेक्षा कर साईं बाबा आँखें मूंदकर लेट गए| मौका अच्छा जानकर, लक्ष्मण बाबा को धमकी देने के बारे में विचार कर रहा था|
इससे पहले कि वह कुछ बोलता, साईं बाबा ने स्वयं कहा –
“मैं जानता हूं कि तू मुझे मारने आया है|”
यह बात सुनते ही लक्ष्मण बुरी तरह से चौंक गया| वह बुरी तरह घबरा गया|
“मार, मार दे मुझे और अपनी इच्छा पूरी कर ले|”
साईं बाबा का चेहरा बुरी तरह से तमतमा गया|
लक्ष्मण को काटो तो खून न था| वह काठ के समान जड़ होकर रह गया| साईं बाबा का रौद्र रूप देखकर वह घबरा गया| उसका शरीर पसीने से तर-ब-तर हो गया|
“कोई हथियार लाया है या खाली हाथ आया है?” – साईं बाबा बोले|
वह घबरा गया|
“बोल, जवाब दे|”
लक्ष्मण पसीने-पसीने हो गया| वह घबराकर साईं बाबा के चरणों पर गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा – “क्षमा कर दो बाबा| क्षमा कर दो|”
“मेरे पैर छोड़|”
“जब तक आप मुझे क्षमा नहीं करेंगे, तब तक मैं आपके पैर नहीं छोड़ूंगा| आप तो अंतर्यामी हैं| मैं आपकी महिमा को न जान सका|”
“जा माफ किया| नेक आदमी बन|”
लक्ष्मण चुपचाप सिर झुकाकर चला गया|
तब साईं बाबा खिलखिलाकर हँस पड़े| एकदम बच्चों के समान थी उनकी हँसी| यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि कुछ समय पूर्व उनका रूप बेहद रौद्र हो गया था|
साईं बाबा के पास उनका एक शिष्य आया, तो वह बड़बड़ा रहे थे – “कुत्ते की पूँछ क्या भला कभी सीधी हो सकती है ?”
शिष्य इस बात को समझ न पाया|
लक्ष्मण ने पंडित के पास जाकर हाथ जोड़कर सारा किस्सा बताया, तो पंडित का मन ग्लानी, पश्चात्ताप से भर गया| वह साईं बाबा को मान गया| उसने साईं बाबा का विरोध करना बंद कर दिया और उनका परमभक्त बन गया|
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