जो मस्जिद में आया, सुखी हो गया – श्री साईं कथा व लीला
भीमा जी पाटिल पूना जिले के गांव जुन्नर के रहनेवाले थे| वह धनवान होने के साथ उदार और दरियादिल भी थे| सन् 1909 में उन्हें बलगम के साथ क्षयरोग (टी.बी.) की बीमारी हो गयी| जिस कारण उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ा| घरवालों ने इलाज कराने में किसी तरह की कोई कोर-कसर न छोड़ी| लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ| वह हर ओर से पूरी तरह से निराश हो गये और भगवान् से अपने लिए मौत मांगने लगे|
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फिर ऐसे में अचानक पाटिल को नाना सोहब चाँदोरकर की याद आयी| उन्होंने उन्हें लाइलाज बीमारी के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुए पत्र लिखा| चूंकि नाना साहब भीमा पाटिल के पुराने मित्र थे, सो पत्र पढ़कर बेचैन हो उठे| जवाब में उन्होंने शिरडी और साईं बाबा का महत्व बताते हुए उनकी शरण लेने को कहा, कि अब इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है|
नाना साहब का पत्र पाकर, उनके वचनों पर विश्वास करते हुए उन्हें आशा की किरण दिखाई दी| उन्होंने शिरडी जाने की तैयारी की| साथ में घरवाले भी थे| उन्होंने उन्हें शिरडी में लाकर मस्जिद में बाबा के सामने लिटा दिया| उस समय वहां पर नाना साहब और माधवराव (शामा) तथा अन्य भक्त भी उपस्थित थे|
भीमा की हालत देखकर बाबा बोले – “ये सब तो पूर्वजन्म के दुष्कर्मों का फल है, मैं कोई मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता|” साईं बाबा का जवाब सुनकर भीमा ने बाबा के चरण छूकर, गिड़गिड़ाते हुए अपने प्राण बचाने की विनती की, तो बाबा के मन में करुणा पैदा हो गयी| बाबा पाटिल से बोले – “ऐ भीमा ! घबरा मत| जिस समय तू शिरडी में दाखिल हुआ, उसी क्षण तेरा बदनसीब दूर हुआ| मस्जिद का फकीर बड़ा दयालु है| वह रोग भी दूर करता है और प्यार से परवरिश भी करता है| जो भी व्यक्ति श्रद्धा के साथ इस मस्जिद की सीढ़ी पर कदम रखता है, वह सुखी हो जाता है|” यह सुनते ही भीमा बेफिक्र हो गया|
भीमा बाबा के पास लगभग एक घंटा बैठा होगा, पर सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि भीमा को हर पांच मिनट में खूनी उल्टियां हुआ करती थीं| पर बाबा के सामने रहने पर उसे एक बार भी उल्टी नहीं हुई| रोग तो तभी समाप्त हो गया था जब बाबा ने भीमा को दयालुता-भरे वचन कहे थे| बाद में बाबा ने भीमा जी को भीमाबाई के घर ठहरने के लिए कहा|
बाबा के कहने पर भीमा पाटिल भीमाबाई के घर रुक गया और थोड़े ही दिनों में उसका रोग पूरी तरह से ठीक हो गया| वह बाबा का गुणगान करता हुआ अपने घर लौट गया और बाबा के दर्शन करने के लिए आने लगा| भीमा की साईं बाबा ने निष्ठा बढ़ गई|
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