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डॉक्टर को बाबा में श्रीराम के दर्शन – श्री साईं कथा व लीला

एक बार एक तहसीलदार साईं बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी आये थे| उनके साथ एक डॉक्टर जो उनके मित्र थे, वे भी आये थे| डॉक्टर रामभक्त और जाति से ब्राह्मण थे| वे राम के अतिरिक्त और किसी को न मानते और पूजते थे| वे अपने तहसीलदार दोस्त के साथ इस शर्त पर शिरडी आये थे कि वे न तो बाबा के चरण छुएंगे और न ही उनके आगे सिर झुकायेंगे, न ही वे उन्हें इस बात के लिए मजबूर करें, क्योंकि बाबा यवन (मुसलमान) हैं और वे श्रीराम के अलावा किसी के आगे सिर नहीं झुकाते|

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शिरडी पहुंचकर जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के लिए मस्जिद गये, तो तहसीलदार से पहले उनके डॉक्टर मित्र आगे गये और बाबा के चरणों में गिरकर वंदना करने लगे| यह देखकर तहसीलदार को बड़ा आश्चर्य हुआ| अन्य सब उपस्थित लोग भी अचरज में डूब गये| कुछ देर बाद जब उन्होंने डॉक्टर से इस बारे में पूछा कि आपने अपना इरादा कैसे बदल लिया ? तब डॉक्टर ने उन्हें बताया कि बाबा के स्थान पर उन्हें उनके इष्ट श्रीराम जी खड़े दिखाई दिये और उनकी मोहिनी सूरत देखकर मैं तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ा| जब वह ऐसा कह रहे थे तो उस समय साईं बाबा खड़े मुस्करा रहे थे| साईं बाबा को खड़े देख डॉक्टर को बहुत आश्चर्य हुआ कि कहीं वह कोई स्वप्न तो नहीं देख रहे हैं ? उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और वे बोले कि साईं बाबा को मुसलमान कहना मेरी बहुत बड़ी भूल थी| बाबा तो पूर्ण योगावतार हैं|

अगले दिन से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया और प्रण किया कि जब तक बाबा स्वयं मस्जिद बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे, तब तक मस्जिद नहीं जाऊंगा| उन्हें प्रण किए तीन दिन बीत गए| चौथे दिन उनका खान देश में रहनेवाला मित्र आया| मित्र से कई वर्षों के बाद मिलने पर वह बहुत खुश हुए| अपने मित्र के साथ डॉक्टर मस्जिद गए| जब डॉक्टर बाबा की चरण वंदना करने के लिए झुके, तो बाबा ने कहा – “तुम तो मस्जिद नहीं आने वाले थे, फिर आज कैसे आये ?” बाबा के वचनों को सुनकर डॉक्टर को अपना प्रण याद आया| उनका हृदय द्रवित हो उठा और आँखों में आँसू भर आये|

उसी रात को साईं बाबा ने डॉक्टर पर अपनी कृपादृष्टि की तो उन्हें सोते हुए ही परमानंद की अनुभूति हुई और वे 15 दिनों तक उसी आनंद में डूबे रहे| उसके बाद वे साईं बाबा की भक्ति के रंग में रंग गये|

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