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संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाने की मांग जोरदार तरीके से भारत को उठानी चाहिए! – प्रदीप कुमार सिंह

संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाने की मांग जोरदार तरीके से भारत को उठानी चाहिए!

देश की आजादी के पश्चात 14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने तथा उनकी सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हिन्दी को देश-विदेश में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए 1953 से सम्पूर्ण भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। भारत का परिपक्व लोकतंत्र, प्राचीन सभ्यता, समृद्ध संस्कृति तथा अनूठा संविधान विश्व भर में एक उच्च स्थान रखता है। भारत की गरिमा, गौरव तथा हिन्दी भाषा को हर कीमत पर विकसित करना चाहिए।

स्वदेशी के प्रबल समर्थक भाई राजीव दीक्षित के अनुसार हिन्दी के विकास में सबसे ज्यादा योगदान महर्षि दयानंद सरस्वती तथा महात्मा गांधी ने दिया था। महर्षि दयानंद का जन्म गुजरात में हुआ था। उनकी मातृ भाषा गुजराती थी। उन्होंने अपना सारा जीवन अपनी संस्था आर्य समाज के माध्यम से दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगाया था। महर्षि दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में देश भक्तों का यह पहला सबसे बड़ा अहिंसक संगठित आन्दोलन था। गांधीजी भी गुजरात से थे उनकी मातृ भाषा भी गुजराती थी। 29 मार्च 1918 में गांधी जी ने घोषणा की थी कि हिन्दी को राष्ट्र भाषा बना देना चाहिए। उसके बाद कांग्रेस ने हिन्दी को महत्व देना शुरू किया था। 1918 के पहले राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन के प्रस्ताव अंग्रेजी भाषा में जारी होते थे। कहा जाता है कि गांधीजी की अंग्रेजी का ज्ञान अंग्रेजों से अच्छा था। 1918 के बाद उन्होंने यह कहा था कि सभी को बता दो कि गांधी अंग्रेजी भूल गया। गांधी जी भारत की आजादी की मांग लेकर अंग्रेजी सरकार से बात करने के लिए लंदन गये थे।

लंदन में अंग्रेज जानते थे कि गांधी जी अंग्रेजी भाषा के अच्छे विद्वान है। अंग्रेजों ने गांधीजी से अंग्रेजी में बात करने के लिए कहा तो गांधीजी ने कहा वह अब अंग्रेजी भूल गये हैं। लंदन में भी उन्होंने ब्रिटिश सरकार से हिन्दी में ही बात की। इसके लिए अंग्रेज सरकार को दोभाषियाँ रखना पड़ा था। कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण करने के बाद अंग्रेज युद्ध जीतने के बाद भी हार गये थे और हिटलर युद्ध हारने के बाद भी युद्ध जीत गया था। गांधीजी के स्वदेशी आन्दोलन, भारतीयों द्वारा सरकारी टेक्स न देने के निर्णय तथा द्वितीय विश्व युद्ध से घोर आर्थिक संकट, बेरोजगारी तथा अराजकता से जूझ रही अंग्रेजी सरकार ने अन्तिम रूप से 1945 में भारत को छोड़कर जाने का फैसला कर लिया था। इसके बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था।

भारत ही एक ऐसा देश है जिसे आजादी ट्रान्सफर आॅफ पाॅवर एग्रीमेन्ट (इण्डियन इन्डिपेडेन्ट एक्ट) की शर्तों के आधार पर मिली थी। यह कानून ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में पास हुआ था। इंग्लैण्ड को उसके सबसे बड़े मित्र अमेरिका ने यह आदेश दिया था कि एग्रीमेन्ट की शर्तों के अनुसार आजादी के बाद भी आजाद भारत का शासकीय ढांचा वैसा ही रहना चाहिए जैसा अंग्रेजी शासन में था। अमेरिका तथा इंग्लैण्ड की कूटनीति के कारण हम अंग्रेजी मानसिकता में आज भी मजबूरी में जी रहे हैं। इस एग्रीमेन्ट की शर्तों के कारण हम आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हिन्दी को राष्ट्र भाषा का संवैधानिक अधिकार अर्थात इज्जत नहीं दे सके है। विश्व के 70 देश अंग्रेजों के शासन से बिना शर्त के आजाद हुए थे। दक्षिण अफ्रीका सबसे अन्त में बिना किसी शर्त के आजाद हुआ था।

विश्व में सबसे अधिक 138 करोड़ लोग चीनी भाषा बोलते तथा जानते हैं। संख्या के आधार पर विश्व में पहले नम्बर पर चीनी भाषा है। विश्व में हिन्दी भाषा 120 करोड़ लोग बोलते तथा जानते हैं। भारत में इनकी संख्या 100 करोड़ है तथा अन्य देशों में हिन्दी बोलने तथा जानने वाले 20 करोड़ लोग का हैं। हिन्दी विश्व में दूसरे नम्बर की भाषा है। ज्यादातर अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में बोली जाने वाली अंग्रेजी भाषा को लगभग 50 करोड़ 80 लाख लोग बोलते हैं। यह दुनिया में तीसरे नम्बर की बोली जाने वाली भाषा है।

विश्व के दूसरे नम्बर की भाषा हिन्दी होने के नाते संयुक्त राष्ट्र संघ को इसे अपनी आधिकारिक भाषा घोषित करके इस आत्मीयतापूर्ण भाषा, विश्व के सबसे बड़े तथा युवा लोकतांत्रिक देश भारत को सम्मान देना चाहिए। 1945 में संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएं 4 थीं – अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी और चीनी। बाद में इनमें अरबी और स्पेनिश शामिल कर ली गई। इन 6 भाषाओं में से केवल अंग्रेजी भाषा ने ही विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनायी है। शेष 5 भाषायें अपने-अपने देश में सिमट कर रह गयी हैं। फिर भी वे संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनी हुई हैं।

वर्तमान में भारत के 10 राज्यों (1) उत्तर प्रदेश, (2) बिहार, (3) झारखंड, (4) मध्य प्रदेश, (5) छत्तीसगढ़, (6) राजस्थान, (7) उत्तराखण्ड, (8) हिमाचल प्रदेश, (9) हरियाणा और (10) दिल्ली में हिन्दी राजभाषा भी है। राजभाषा बनने के बाद हिन्दी ने देश के सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में सम्पर्क भाषा के रूप में अपनी पहचान बनायी है। इसके अलावा विश्व के ग्यारह देशों – (1) पाकिस्तान की तो अधिकांश आबादी हिंदी बोलती व समझती है। (2) बांग्लादेश, (3) नेपाल, (4) भूटान, (5) तिब्बत, (6) म्यांमार, (7) अफगानिस्तान में भी लाखों लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। (8) फिजी, (9) सुरिनाम, (10) गुयाना, (11) त्रिनिदाद जैसे देश तो हिंदी भाषियों द्वारा ही बसाए गये हैं। हिन्दी भाषा आत्मीयता, मित्रता और सौहार्द की भाषा है। हिन्दी के ज्यादातर शब्द संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा से लिए गए हैं। इस तरह यह संस्कृत, उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं के बीच भी रिश्ता, आत्मीयता तथा एकता स्थापित करती है।

सर्वविदित है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा महात्मा गांधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया गया है। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया जा चुका है। इस प्रकार अहिंसा तथा योग को वैश्विक पहचान देकर विश्व बिरादरी ने सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के प्रति अपना विश्वास तथा सम्मान प्रकट किया है। इसी प्रकार के जज्बे की अब हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने की आवश्यकता है। हिन्दी भाषा हर दृष्टिकोण से इसके योग्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनने से वसुधैव कुटुम्बकम् तथा ‘जय जगत’ के सार्वभौमिक विचारों से विश्व बिरादरी अत्यधिक लाभान्वित होगी।

दिल्ली राज्य के उप-मुख्यमंत्री तथा शिक्षा मंत्री श्री मनीष सिसौदिया ने विगत वर्ष हिन्दी दिवस पर हिन्दी के शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि विज्ञान तथा गणित विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के सामने यह स्पष्ट रहता है कि विज्ञान तथा गणित विषयों के अच्छी प्रकार से पढ़ाने से बालक आगे चलकर एक इंजीनियर, डाक्टर, गणितज्ञ, एकाउन्टेन्ट आदि बन सकता है। लेकिन हिन्दी विषय पढ़ाने वाले शिक्षक को यह स्पष्ट नहीं होता है कि हम बालक को हिन्दी विषय क्यों पढ़ा रहे हैं? विज्ञान तथा गणित के द्वारा हम एक बालक को इंजीनियर, डाक्टर, गणितज्ञ आदि बनाते हैं उसी बालक को हम हिन्दी विषय के द्वारा उसमें जीवन मूल्यों को विकसित करते हैं। हिन्दी एक जीवनशैली है जो एक जिम्मेदार नागरिक का निर्माण कर समाज को ऊँचा उठाती है। हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी विषय पढ़ाने वाले टीचर को इस सबक को अवश्य स्मरण रखना चाहिए। नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित नेल्शन मण्डेला के अनुसार शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है।

हिन्दी के महान कवि श्री अटल बिहारी बाजपेई देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री रहे थे। इस दौरान वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में उन्होंने अत्यन्त ही विश्वव्यापी तथा विश्व बन्धुत्व के दृष्टिकोण से ओतप्रोत ओजस्वी भाषण हिन्दी में दिया था। अटल जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत तथा हिन्दी को वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित किया था। विश्व बिरादरी ने इस अवसर पर करोड़ों भारतीयों के प्रति जोरदार तालियाँ बजाकर अपना सम्मान व्यक्त किया था। हिन्दी को विश्वव्यापी पहचान दिलाने के लिए 10 जनवरी को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने कहा था – जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं! वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं!! हिन्दी के महान कवि एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने देश की हिन्दी भाषा, अपने देश की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति को विश्व संस्कृति में सारी मानव जाति की भलाई को देखते थे। उनकी प्रिय कविता ‘‘विश्व शांति के हम साधक हैं, जंग न होने देंगे’’ सारे विश्व को युद्धरहित बनाने के लिए संकल्पित होने के लिए प्रेरित करती है। वर्तमान में वसुधैव कुटम्बकम् के संदेश को वल्र्ड लीडर के रूप में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सारी दुनिया में फैला रहे हंै। श्री मोदी जी ने दावोस (स्विटजरलैण्ड) में आयोजित वल्र्ड इकोनाॅमिक फोरम की वार्षिक बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत वसुधैव कुटुम्बकम् के मंत्र को मानता है। उन्होंने आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और देशों का आत्म केंद्रित होने को विश्व की सबसे बड़ी समस्या बताया था।

लोकमान्य तिलक ने हमें बताया था कि आजादी जीवन है तथा गुलामी मृत्यु है। वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों मंे देश स्तर पर तो लोकतंत्र तथा कानून का राज है लेकिन विश्व स्तर पर लोकतंत्र न होने के कारण जंगल राज है। सारा विश्व पांच वीटो पाॅवर वाले शक्तिशाली देशों अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन तथा फ्रान्स द्वारा अपनी मर्जी के अनुसार चलाया जा रहा है। देश की आजादी के लिए बलिदान होने वाले महापुरूषों के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि यह होगी कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत को एक लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन की पहल अब पूरी दृढ़ता के साथ करना चाहिए। विश्व स्तर पर लोकतंत्र लाने के इस बड़े दायित्व को हमें समय रहते निभाना चाहिए। किसी महापुरूष ने कहा कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं।

मैं एक 64 वर्षीय शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा एक वरिष्ठ नागरिक तथा एक जागरूक वोटर हूँ। मेरे वोट से प्रदेश तथा देश को व्यवस्थित, न्यायपूर्ण तथा संवैधानिक ढंग से चलाने के लिए सरकारों का गठन होता है। संविधान ने प्रत्येक नागरिक तथा वोटर को समान रूप से असीम शक्ति तथा दायित्व प्रदान किये हैं। एक सैनिक बन्दूक लेकर देश की सीमा पर अपनी जान की बाजी लगाकर देश के नागरिकों की रक्षा करता है। मैं कलम का एक सैनिक हूँ। मैं हिन्दी भाषा से लेश कलम का एक सैनिक विश्व मानवता को बचाने के लिए अपने सीमित संसाधनों का उच्चतम उपयोग करते हुए प्रतिदिन-प्रतिक्षण युद्ध लड़ रहा हूँ। मेरा विश्वास है कि ईश्वर ही सत्य है तथा सत्य ही ईश्वर है। सत्य रूपी उस ईश्वर का आशीर्वाद सदैव हमारे साथ है।

इस दिशा में मैं भी 30 वर्षों से निरन्तर हिन्दी के एक लेखक तथा पत्रकार के रूप में समाज को अपनी सेवायें दे रहा हूँ। मेरे विश्व एकता के विचार से ओतप्रोत हिन्दी के लेख देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा सोशल मीडिया द्वारा प्रकाशित तथा प्रसारित होते हैं। सबसे प्यारी हिन्दी भाषा के माध्यम से मैं अपनी कलम से जो थोड़ी बहुत सेवा समाज की कर पा रहा हूँ उसमें आप सभी की प्रेरणा, मार्गदर्शन तथा सुझावों का विशेष योगदान है। हिन्दी दिवस के अवसर पर मैं आप सभी सहयोगियों के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ। साथ ही मेरी सभी भारतवासियों से प्रार्थना है कि मानव सभ्यता की यात्रा के निर्णायक दौर में हम अपनी प्रतिभा के अनुसार कुछ न कुछ योगदान रोजाना अवश्य करें।

 

-प्रदीप कुमार सिंह, लेखक

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