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पृथ्वी एक देश है और हम सभी इसके नागरिक हैं – प्रदीप कुमार सिंह

पृथ्वी एक देश है और हम सभी इसके नागरिक हैं

प्रत्येक वर्ष 20 जून को संपूर्ण विश्व में ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस विश्व भर में शरणार्थियों की स्थिति के प्रति जागरूकता बढ़ाने हेतु मनाया जाता है। विश्व शरणार्थी दिवस 2019 का विषय (थीम) – ‘‘रिफ्यूजियों से हमारा वैश्विक रिश्ता है।“ इस वर्ष गुरूवार 20 जून 2019 को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ मनाया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष 20 जून को उन लोगों के साहस, शक्ति और संकल्प के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है, जिन्हें युद्ध, प्रताड़ना, संघर्ष और हिंसा की चुनौतियों के कारण अपना देश छोड़कर बाहर भागने को मजबूर होना पड़ता है। शरणार्थियों की दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने और शरणार्थी समस्याओं को हल करने के लिए ही यह दिवस मनाया जाता है।

विश्व के अनेक देश अलग-अलग तिथियों में अपने यहां शरणार्थी दिवस मनाते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण अफ्रीका शरणार्थी दिवस है, जो 20 जून को प्रति वर्ष मनाया जाता रहा है। दिसंबर 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने अफ्रीका शरणार्थी दिवस यानी 20 जून को प्रतिवर्ष विश्व शरणार्थी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। वर्ष 2001 से प्रति वर्ष संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जा रहा है। मानवता के नाते सारे संसार में यह विचार फैलाना है कि ग्लोबल विलेज के युग में पृथ्वी एक देश है और हम सभी इसके नागरिक हैं। धरती हमारी माता है और हम सभी इसके पुत्र-पुत्रियाँ हैं। हृदय को विशाल करके सोचे तो कोई भी इंसान अमान्य नहीं होता फिर चाहे वह इस सुन्दर धरती के किसी भी देश का हो। विश्व एकता और विश्व बन्धुत्व की भावना रखते हुए हमें विश्व के सभी शरणार्थियों को मान्यता, सम्मान, सराहना, सुविधा तथा सुरक्षा देनी चाहिए। म्यांमार, लीबिया, सीरिया, अफगानिस्तान, मलेशिया, यूनान और अधिकांश अफ्रीकी देशों से हर साल लाखों नागरिक दूसरे देशों में शरणार्थी के रूप में शरण लेते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएचसीआर रिफ्यूजी लोगों की सहायता करती है। अंतर्राष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल रेस्क्यू केमिटी (आई.आर.सी.) और एमनेस्टी इंटरनेशनल और अनेक स्वयंसेवी संस्थान इस दिवस पर अनेक गतिविधियाँ आयोजित करते हैं। विश्व शरणार्थी दिवस वाले दिन होने वाली गतिविधियां इस प्रकार हंै – 1. शरणार्थी कैंपों के हालात का निरीक्षण करना। 2. शरणार्थियों और उनकी समस्याओं से संबंधित फिल्मों का प्रदर्शन। 3. जो शरणार्थी किसी कारणवश गिरफ्तार हो गये हैं उनकी आजादी के लिए विरोध प्रदर्शन। 4. जेल में बंद शरणार्थियों के लिए सही चिकित्सकीय सुविधा और नैतिक समर्थन उपलब्ध कराने के लिए रैलियाँ निकालना। 5. विश्व शरणार्थी दिवस दुनिया भर के शरणार्थियों के दुखों और तकलीफों को दुनिया से रूबरू करने का दिन है। 7. शरणार्थियों को नैतिक समर्थन उपलब्ध कराने के लिए प्रदर्शन करना आदि-आदि।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने एक ऐसा स्मार्टफोन गेम जारी किया है जिसके जरिए दुनिया भर के शरणार्थियों के अनुभव से लोगों को जागरूक किया जाता है। “माई लाइफ ऐज ए रिफ्यूजी” के माध्यम से शरणार्थी लोगों को संघर्ष की वजह से भागने और अपने लोगों को ढ़ूंढ़ने में मदद मिलती है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग अर्थात् यूएनएचसीआर का कहना है कि यह शरणार्थियों की असल जिंदगी पर आधारित है।

यूएनआरए की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में संपूर्ण विश्व में 68.5 मिलियन लोग अपने घरों से बलपूर्वक विस्थापित हुए थे। इसके साथ ही यूएनआरए दुनिया भर में लाखों शरणार्थियों और आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों पर जनता का ध्यान आकर्षित करता है, जिन्हें युद्ध, संघर्ष और उत्पीड़न के कारण अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा। विश्व शरणार्थी दिवस के आगमन पर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कार्यालय ने रिपोर्ट जारी कर कहा कि 2016 के अंत तक विश्व में शरणार्थियों व बेघरों की संख्या 6.56 करोड़ तक पहुंची, वहीं करीब 28 लाख लोग अन्य देशों में रहने के लिए आवेदन दे रहे हैं। यह संख्या ब्रिटेन की कुल आबादी के बराबर है। यानी कि विश्व के हर 113 लोगों में एक व्यक्ति बेघर या शरणार्थी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया की स्थिति सबसे गंभीर है, कोलम्बिया, अफगानिस्तान व इराक इसके बाद रहे।

शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचसीआर) जो कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के नाम से भी जाना जाता है। इस एजेन्सी का कार्य सरकार या संयुक्त राष्ट्र के निवेदन पर शरणार्थियों की रक्षा और उनके स्वैच्छिक प्रत्यावर्तन, स्थानीय एकीकरण या किसी तीसरे देश में पुनर्वास में उनकी सहायता करना है इसका मुख्यालय जेनेवा, स्विट्जरलैंड में है। यूएनएचसीआर एक बार 1954 में और दुबारा 1981 में नोबेल शांति पुरस्कार जीत चुका है।

वर्तमान समय की बात करे तो पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी घट रही है और इसकी मुख्य वजह हिन्दू लोगांे पर हो रहे अत्याचार हैं। इस वजह से वहां के हिन्दू समुदाय के लोग भारत की ओर पलायन करने लगे हैं। आज के समय पाकिस्तान की कुल जनसंख्या 20 करोड़ के पार है। वर्तमान में पाकिस्तान में 25 लाख हिन्दू लोगांे की जनसंख्या है। यह पाकिस्तान की कुल आबादी का 2 प्रतिशत से कम है। इसकी मुख्य वजह हिन्दू और गैरमुस्लिम लोगांे पर हो रहे अत्याचार है। ऐसे में बहुत से लोग भारत और दूसरे देशों की ओर पलायन कर रहे हैं।

बांग्लादेश में हिंदू की जनसंख्या करीब 1.70 करोड़ हैं। बांग्लादेश के सांख्यिकीय आंकड़ों के अनुसार सन 2011 में वहां पर हिंदुओं की आबादी 8.4 प्रतिशत थी, जो 2017 में बढ़कर 10.7 प्रतिशत हो गई। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और वहां अक्सर उन पर हमले होते रहते हैं। इसके चलते उनके वहां से पलायन की खबरें भी आती रहती हैं। बांग्लादेश में पहली जनगणना में (जब वह पूर्वी पाकिस्तान था) मुस्लिम आबादी 3 करोड़ 22 लाख थी जबकि हिन्दुओं की जनसंख्या 92 लाख 39 हजार थी। वर्तमान में हिन्दुओं की संख्या केवल 1 करोड़ 20 लाख है जबकि मुस्लिमों की संख्या 12 करोड़ 62 लाख हो गई है।

वर्तमान में समाज में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास के मुकाबले धर्म, संप्रदाय और रूढ़िवादिता की चर्चा अधिक हो रही है, जो शैक्षिक एवं आर्थिक प्रगति में बाधक है। 21वीं सदी के विकसित समाज में वर्तमान विश्व व्यवस्था में समयानुकूल परिवर्तन की परम आवश्यकता है। शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का सबसे शक्तिशाली माध्यम है। आज संसार के प्रत्येक व्यक्ति का संकल्प होना चाहिए कि मैं विश्व में सामाजिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक परिवर्तन क्यों नहीं ला सकता? हम वैश्विक युग में सामाजिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक परिवर्तन के एक सशक्त माध्यम के रूप में काम करें !

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हम प्राचीन तरीकों के बलबूते पर आज की विशालकाय और बढ़ती हुई जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते, इसलिए प्रत्येक कार्य के लिए वैज्ञानिक तौर-तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है। तभी हम समाज की समस्याओं को दूर कर सकते हैं। ग्लोबल विलेज के वैज्ञानिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, परमाणु शस्त्रों की होड़, शरणार्थी समस्या, बिगड़ता पर्यावरण, प्रत्येक देश का प्रतिवर्ष बढ़ता रक्षा बजट, भोजन की समस्या आदि ने विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया है। अब कोई राष्ट्र पुरानी सोच से अकेले इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाल सकता।

स्वामी विवेकानंद ने बहुत पहले अपनी विश्वव्यापी दूरदृष्टि से इसका समाधान इन विचारों के माध्यम से प्रस्तुत किया था कि जो समाज आने वाले समय में अपने मस्तिष्क का प्रयोग मानवता की सुरक्षा के लिए नहीं करेगा, प्रकृति का सहारा नहीं लेगा, प्राकृतिक ऊर्जा का अधिकतम उपयोग नहीं करेगा, वह समाज नष्ट हो जायेगा। स्वामी जी का स्पष्ट मत था कि विज्ञान के अद्भुत विकास के साथ धर्म की सोच में भी परिवर्तन की आवश्यकता है। वैश्विक युग में हमें बच्चों को यह सीख देना है कि धर्म एक है, ईश्वर एक है तथा मानव जाति एक है। अब एक ही छत के नीचे सभी धर्मों की प्रार्थना में होनी चाहिए।

संसार के नवीनतम बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह (शाब्दिक अर्थ- ईश्वर का प्रकाश) का कथन है कि इस दुनियाँ में या तो पूरी अराजकता होगी जिससे सरकारी सत्ता बिखरेगी, राज्य टूटेगें, अन्तर्राष्ट्रीय आपराधिक माफियाओं का उद्भव होगा, शरणार्थियों की संख्या दसियों लाखों में पहुंचेगी, आतंकवाद का प्रसार, नरसंहार और नस्लवाद एक परम्परा बन जायेगी, या दो दुनियां- अमीर और गरीब, पश्चिमी एवं गैर पश्चिमी, उत्तर या गैर उत्तरी – जो सदैव युद्ध को तत्पर रहेंगे, या 192 राज्यों के एक राष्ट्रकुल एवं विश्व सरकार का निर्माण होगा।
मनुष्य जाति की एकता की स्वीकृति यह मांग करती है कि सम्पूर्ण सभ्य संसार का पुनःनिर्माण एवं असैन्यीकरण हो, इससे कम कुछ नहीं, एक संसार जो जीवन के सभी सारभूत पक्षों में, अपनी राजनैतिक प्रणाली में, अपनी आध्यात्मिक आकांक्षाओं में, अपने व्यापार एवं अर्थ व्यवस्था में, अपनी लिपि और भाषा में जीवन्त रूप से विश्व एकता रूपी धागे में बंधा हो, और फिर इस संघ की सभी संघभूत इकाइयों की राष्ट्रीय विविधताओं की विशिष्टता अनन्त हो। तभी ये निरर्थक विवाद, ये विनाशकारी युद्ध बीत जायेंगे। विश्व एक परिवार बनेगा अर्थात सारी पृथ्वी एक देश है तथा हम सभी इसके नागरिक हैं।

अब 21वीं सदी में लोकतंत्र को देश की सीमाओं से निकालकर विश्व के प्रत्येक नागरिक को वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन के बारे में सोचना तथा कार्य करना चाहिए। तभी हम अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, परमाणु शस्त्रों को होड़ तथा युद्धों की तैयारी में होने वाले खर्चें को बचाकर उस विशाल धनराशि को विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ, सुखी, सुरक्षित तथा समृद्ध बनाने में नियोजित कर सकेंगे। विश्व के प्रत्येक वोटर को सामाजिक तथा आर्थिक सुरक्षा देने के लिए सभी देशों की सरकारों द्वारा यूनिवर्सल बेसिक इनकम या वोटरशिप स्कीम के अन्तर्गत प्रतिमाह सम्मान के साथ रोटी खाने योग्य कुछ धनराशि उसके बैंक के खाते में डालनी चाहिए। ताकि आज के सभ्य विश्व के किसी व्यक्ति को भूख से मरना न पड़े। सही मायने में तब धरती का प्रत्येक व्यक्ति राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक रूप से स्वतंत्रतापूर्वक अपना जीवन जी सकेगा। धरती को शरणार्थी, भूख आदि की विकराल समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।

 

-प्रदीप कुमार सिंह, लेखक

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