मानव जाति की एकता में ही विश्व के ढाई अरब से अधिक बच्चों एवं आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों का हित सुरक्षित है! – डा. जगदीश गांधी
(1) संयुक्त राष्ट्र संघ की 21वीं सदी की अनुकरणीय घोषणा
संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने वर्ष 2005 में 21वीं सदी में अन्तर्राष्ट्रीय रिश्तों को मजबूत करने में एकता को एक बुनियादी मूल्य के रूप में पहचाना। इस परिपेक्ष्य में सं.रा.सं. द्वारा 20 दिसम्बर को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। जिसका उद्देश्य सदस्य देशों की सरकारों तथा गैर-सरकारी संस्थाओं को गरीबी उन्मूलन तथा सामाजिक विकास को प्रोत्साहन देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का स्मरण कराना है। यह दिवस विश्व के लोगों को प्रगतिशील पद्धतियों को अपनाकर गरीबी उन्मूलन के उपायों को आपसी विचार-विमर्श के द्वारा खोजने के लिए प्रेरित करता है। इस मुहिम के अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं पर विचार-विमर्श किया जाता है :- 1. बारूदी सुरंगों पर प्रतिबन्ध लगाना 2. जरूरतमंदों को स्वास्थ्य तथा दवाईयाँ सुलभ कराना 3. प्राकृतिक आपदाओं तथा मानव निर्मित आपदाओं से पीड़ित लोगों को राहत पहुँचाना 4. विश्व एकता तथा विश्व शान्ति को बढ़ावा देना 5. विश्वव्यापी शिक्षा के लक्ष्यों को अर्जित करना 6. .गरीबी, भ्रष्टाचार तथा आतंकवाद के खिलाफ मुहिम चलाना आदि। इस दिवस के उपरोक्त लक्ष्यों को प्रिन्ट, इलेक्ट्रिनिक्स तथा सोशल मीडिया, शिक्षण संस्थानों, भाषणों, वाद-विवाद, विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों आदि के माध्यम से अधिक से अधिक प्रचारित तथा प्रसारित करना चाहिए।
(2) विश्व को आतंकवाद से बचाने की जरूरत
मध्य एशिया की हालत प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। सीरिया में तो लगभग तीन साल पहले से ही गृहयुद्ध चल रहा है जिसमें कई लाख लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ले रखी है। यही हाल इराक में है। अफगानिस्तान पहले से ही तलिबानी आतंक के दौर से गुजर रहा है। पाकिस्तान भी तालिबानी कहर से अछूता नहीं रह सका है। इसी तरह से कई उत्तरी अफ्रीकी देशों में किसी न किसी आतंकी संगठन का आतंक अपने चरम पर है। आतंकवादी बीच-बीच में अमेरिका, चीन, रूस और भारत में आतंकवादी विस्फोट कर आतंक मचाते रहते हैं। भारत में भी समय-समय पर अलग-अलग शहरों में विस्फोटों का सिलसिला चलता रहता है। हालांकि भारत सरकार व राज्य सरकारों द्वारा अब इस पर काबू पाने की हर संभव कोशिश की जा रही है।
(3) भगवान राम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा, महावीर, नानक, बहाउल्लाह की यह सारी धरती है
हमारा विश्व विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं तथा विभिन्न धर्मों का है। भारत में अलग-अलग संस्कृति, धर्म और भाषाएं होते हुए भी हम सभी एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। इस प्रकार भगवान राम, कृष्ण, महावीर, ईसा, नानक, बुद्ध तथा बहाउल्लाह की यह सारी धरती है, जिनके जीवन शांति के लिए थे और उन्होंने विश्व भर में शांति का संदेश दिया है। हमारा मानना है कि एकता के बल पर ही अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ है और प्रत्येक वर्ग में एकता के बिना देश कदापि उन्नति नहीं कर सकता। एकता में महान शक्ति है। राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक और भावनात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।
(4) विश्व एकता सम्भव ही नहीं वरन् अब अनिवार्य है
(ए) विश्व इतिहास में पहली बार यह सम्भव हो सका है कि इस समूची धरती ‘पृथ्वी ग्रह’ को एकता एवं समग्रता की दृष्टि से देखा जा रहा है।
(बी) इस धरा पर ‘विश्व शांति’ की स्थापना सम्भव ही नहीं बल्कि अवश्यंभावी है।
(सी) इस धरती पर मानव जाति के सामूहिक भविष्य के लिए योजना बनाने के जो अवसर इस समय हमारे पास हैं, वे मानव इतिहास में इससे पहले कभी नहीं थे।
(डी) विज्ञान, विश्वव्यापी दृष्टिकोण एवं आध्यात्मिकता के विकास ने अब एक भूमण्डलीय समाज की स्थापना को समस्त राष्ट्रों और जनसाधारण की पहुँच के अन्दर ला दिया है।
(ई) सार्वभौमिक संगठन की नई व्यवस्थायें जो गत शताब्दी के प्रारम्भ में अकल्पनीय थीं, अब अस्तित्व में आ रही हैं।
(एफ) हमें खराब व्यवहार एवं आचरण को छोड़ने के लिये तैयार होना ही पड़ेगा और सौहाद्रपूर्ण वातावरण में परामर्श करके राष्ट्रों के सामने खड़ी असामान्य समस्याओं को सुलझाने हेतु प्रयास करना होगा।
(5) विश्व शान्ति की स्थापना को तात्कालिक आवश्यकता के रूप में इंगित करने वाले अनेक लक्षण प्रत्यक्ष हैं
(ए) एक नई विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ते हुए कदमों का निरन्तर सशक्त होना।
(बी) लीग ऑफ नेशन्स की समाप्ति के बाद अब उसके उत्तराधिकारी ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के आधार का निरन्तर अत्यधिक व्यापक होना।
(सी) यहाँ तक कि ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ में आमूलचूल परिवर्तन करके इसको अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का एक सशक्त केन्द्र बनाने के लिए अनेक प्रयत्न किये जा रहे हैं।
(डी) नवोदित राष्ट्रों का अपने पुराने राष्ट्रों से संलग्नता बनाये रखना- जैसे ‘कामनवेल्थ ऑफ नेशन्स’।
(ई) पहला- राष्ट्रों के परस्पर संलाप से सीमा निर्धारण तथा दूसरा- 25 यूरोपीय देशों में एक मुद्रा का अपनाया जाना।
(एफ) अंग्रेंजी भाषा के रूप में एक विश्व भाषा का सारे संसार में प्रचलन का बढ़ना।
(जी) बाजारों का उदारीकरण एवं सबके लिए खुलना।
(एच) सीमा शुल्क में निरन्तर कमी आदि अनेक बिंदु इस दिशा में प्रगति के प्रतीक हैं।
(आई) आतंकवाद के विरूद्ध विश्व के राष्ट्रों में से अधिकतर से सहमति।
(जे) मानव जाति का एक अलग सामाजिक इकाई के रूप में विकास।
(के) धर्म एवं शिक्षा सदैव से ‘मानव स्वभाव का एक गुण’ रहा है। इस गुण की विकृति होने के कारण ही समाज में तथा व्यक्तियों के बीच होने वाली अव्यवस्था और संघर्षो को जन्म मिला है।
(एल) धर्म एवं शिक्षा द्वारा सभ्यता की महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियों पर पड़ने वाले प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता है।
(एम) इस संसार में व्यवस्था की स्थापना और उसमें जो रहते हैं उनकी शान्ति एवं संतुष्टि के लिये धर्म एवं शिक्षा सभी साधनों में सबसे महान हैं।
(ओ) धर्मान्धता, धार्मिक उन्माद या हिंसा और विघटनकारी घटनाओं का आना इसके आध्यात्मिक दिवालियापन के द्योतक हैं।
(पी) न्यूक्लियर बमों पर पाबन्दी लगने, जहरीली गैसों के इस्तेमाल को रोकने या कीटाणु युद्ध को गैर कानूनी करार देने से युद्ध या लड़ाई के मूल कारण समाप्त नहीं होंगे। अनेक राष्ट्र इतने चतुर हैं कि वे युद्ध के कोई नये तरीके खोज लेंगे।
(क्यू) मानव अधिकार की सार्वभौम उद्घोषणा, जातिनाश के अपराध को रोकने और दंडित करने पर सभी राष्ट्रों में सहमति, लिंग भेद या धार्मिक विश्वास और नस्ल पर आधारित सभी प्रकार के भेदभाव समाप्त करने से सम्बन्धित सभी प्रकार के उपाय, बच्चों के सुरक्षित भविष्य के अधिकारों की रक्षा, यंत्रणा के शिकार सभी लोगों का बचाव, संसार से गरीबी, बीमारी, भूख, भ्रष्टाचार और कुपोषण को मिटाना, विश्व एकता एवं विश्व शान्ति और मानव कल्याण के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी विकास का उपयोग आदि ऐसे सभी उपायों को यदि विस्तारपूर्वक एवं साहसपूर्वक सर्वसम्मति से लागू किया जाये तो युद्ध को समाप्त किया जा सकता है।
(6) अब इस सारी धरती को एक करने का समय आ गया है
इस दुनियाँ में या तो पूरी अराजकता होगी जिससे सरकारी सत्ता बिखरेगी, राज्य टूटेगें, अन्तर्राष्ट्रीय आपराधिक माफियाओं का उद्भव होगा, शरणार्थियों की संख्या कई लाखों में पहुंचेगी, आतंकवाद का प्रसार, नरसंहार और नस्लवाद एक परम्परा बन जायेगी या अमीर और गरीब, पश्चिमी एवं गैर पश्चिमी, उत्तर या गैर उत्तरी – जो सदैव युद्ध को तत्पर रहेंगे या 193 राज्यों के एक राष्ट्रकुल एवं विश्व सरकार का निर्माण होगा। मनुष्य जाति की एकता की स्वीकृति यह मांग करती है कि सम्पूर्ण सभ्य संसार का पुनः निर्माण एवं असैन्यीकरण हो, इससे कम कुछ नहीं। एक संसार जो जीवन के सभी सारभूत पक्षों में, अपनी राजनैतिक प्रणाली में, अपनी आध्यात्मिक आकांक्षाओं में, अपने व्यापार एवं अर्थ व्यवस्था में, अपनी लिपि और भाषा में जीवन्त रूप से एकता के सूत्र में बंधा हो, और फिर इस संघ की सभी संघभूत इकाइयों की राष्ट्रीय विविधताओं की विशिष्टता अनन्त हो। तभी ‘ये निरर्थक विवाद, ये विनाशकारी युद्ध समाप्त हो जायेंगे’ और विश्व एक परिवार बनेगा। वर्तमान में धरती माँ नई सभ्यता के जन्म के पूर्व की प्रसव पीड़ा झेल रही हैं। यह समय हमारी धरती माँ के एक टुकड़े को प्रेम करने का नहीं वरन् अब इस सारी धरती को एक करने का समय आ गया है। विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य का अभियान बने। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि विश्व का प्रत्येक बालक मानव जाति की भलाई के संकल्प के साथ विश्व एकता तथा विश्व शांति का दूत बने। इसके लिए हमें परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिये कि हे ईश्वर आप हमें यह आशीर्वाद दे कि एकता की ज्योति सारी पृथ्वी पर छा जायें। यह सारी सृष्टि परमेश्वर की है। यह विचार उसके सभी समुदाओं एवं राष्ट्रों के चिन्तन में अंकित हो जाये।
(7) विश्व एकता की शिक्षा 21वीं सदी की सबसे बड़ी आवश्यकता है
बदलते विश्व परिदृश्य के अनुरूप शिक्षा पद्धति में भी नवीनता व बदलाव लाने की महती आवश्यकता है, जो छात्रों को संकुचित राष्ट्रीयता, रंग, जाति-धर्म, भाषा से ऊपर उठकर वैश्विक स्तर पर सोचने, समझने व समस्याओं का रचनात्मक समाधान ढूंढने के काबिल बना सके। युद्ध के विचार सबसे पहले मनुष्य के मस्तिष्क में पैदा होते हैं। इसलिए युद्ध के मुहाने पर खड़े विश्व में शान्ति लाने के लिए मनुष्य के मस्तिष्क में सबसे पहले एकता तथा शान्ति के विचार उत्पन्न करने होंगे। मानव मस्तिष्क में एकता तथा शान्ति के विचार डालने की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। विद्यालय समाज के प्रकाश का केन्द्र है और प्रत्येक बालक विश्व का प्रकाश है। प्रत्येक बालक एक ओर जहां विश्व का प्रकाश है वहीं दूसरी ओर उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के अभाव में बालक बड़ा होकर विश्व में अंधकार फैलाने का कारण भी बन सकता है। अतः सारे विश्व में उद्देश्यपूर्ण विश्व एकता की शिक्षा को सबसे अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यही विश्व की सभी समस्याओं का समाधान है। प्रत्येक बालक को विश्वव्यापी दृष्टिकोण वाला टोटल क्वालिटी पर्सन (टी0क्यू0पी0) बनायें। हमारा मानना है कि प्रत्येक बालक को बचपन से ही ‘विश्व एकता की शिक्षा’ द्वारा भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित करके सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने की परिकल्पना निकट भविष्य में अवश्य साकार होगी। ‘विश्व एकता की शिक्षा’ 21वीं सदी की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान कर विश्व संसद के रूप में परिवर्तित करने का समय अब आ गया है।
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ