क्यों, कहा जाता है शिव जी को नीलकंठ
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सोमवार का दिन भगवान शंकर का होता है। इस दिन भोलेनाथ की पूजा करने वाले जातकों के मन की मुराद पूरी होती है। भगवान शिव को उनके भक्त कई नामों से बुलाते हैं। कोई उन्हें भोलेनाथ कहता है तो कोई महादेव और महेश कहकर पुकारता है। शिव को भोले इसलिए भी कहते हैं, क्योंकि वो अपने भक्तों के बीच भेद नहीं करते और उन्हें प्रसन्न करने के लिए भी अन्य देवी देवताओं की तरह महंगी या दुर्लभ चीजों का चढ़ावा नहीं चढ़ाना पड़ता।
पंडित विनोद मिश्र के अनुसार भगवान शिव के अनगिनत नामों में एक नाम है नीलकंठ। भोलेनाथ को उनके भक्त नीलकंठ के नाम से भी जानते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शंकर को नीलकंठ के नाम से क्यों बुलाते हैं। आज हम आपको यही बताने वाले हैं। जानिये भगवान शंकर को नीलकंठ क्यों कहते हैं।
समुद्र मंथन के बाद समुद्र से कई अच्छी चीजें निकलीं और साथ में विष भी निकला। अच्छी चीजों को लेने के लिए तो असुर और सुर दोनों तैयार थे, पर विष लेने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। सबसे खतरनाक बात यह थी कि अगर विष का एक भी बूंद धरती पर गिर जाती तो तबाही मच जाती। ऐसे में भगवान शंकर ने लोगों की रक्षा करने के लिए समुद्र से निकले विष को पी लिया।
मां पार्वती यह देख समझ गईं कि भगवान शंकर के लिए विष घातक साबित हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने हाथों से भगवान शंकर का गला पकड़ लिया और विष गले में ही रोक लिया। विष के कारण भगवान शिव का गला नीला हो गया और इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
– तेजस्वनी पटेल, पत्रकार
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