जानें, शनि की साढ़ेसाती से बचने के कुछ उपाय
शनि की ढैय्या तथा साढ़ेसाती से मिलने वाले कष्टों को दूर करने के बहुत से उपाय हैं जिनमें से कुछ उपायों के विषय में पाठकगणों को इस लेख के माध्यम से अवगत कराया जा रहा हैं। इन उपायों में से कोई भी उपाय पूरी श्रद्धा तथा विश्वास से करने पर अवश्य ही लाभ मिलता है।
शनि की साढ़ेसाती –
गोचर का शनि जब चंद्र राशि से एक भाव पहले भ्रमण करना शुरु करता है तब जातक की शनि की साढ़ेसाती का आरंभ होता है। साढ़ेसाती का अर्थ है – साढ़े सात साल अर्थात जन्म चंद्र से एक भाव पहले, चंद्र राशि व चंद्र राशि से एक भाव आगे तक के शनि के भ्रमण में पूरे साढ़े सात साल का समय लगता है क्योंकि शनि एक राशि में ढ़ाई साल तक रहता है। इस साढ़ेसाती में जातक को कई बार मानसिक व शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है लेकिन शनि की साढ़ेसाती सदा बुरी नहीं होती है। शनि की साढ़ेसाती व्यक्ति को कैसे फल प्रदान करेगी यह व्यक्ति की जन्म कुंडली के योगों पर निर्भर करेगा। जन्म कुंडली के योगों के साथ दशा/अंतर्दशा किस ग्रह की चल रही है और दशानाथ कुंडली के किन भावों से संबंध बना रहा है आदि बहुत सी बातें शनि की साढ़ेसाती के परिणाम देने के लिए देखी जाती है। जन्म कुंडली में शनि महाराज स्वयं किस हालत में है, शनि कुंडली के लिए शुभफलदायक हैं अथवा अशुभ फल देने वाले हैं और शनि किन योगों में शामिल हैं अथवा नहीं है, पीड़ित है अथवा नहीं है आदि बातें शनि के लिए देखी जाती हैं। इनके अलावा और भी बहुत सी बातें हैं जिनका विश्लेषण करने के बाद ही शनि की साढ़ेसाती का फल कहना चाहिए।
शनि की ढ़ैय्या-
जन्म चंद्र से जब गोचर का शनि चौथे अथवा आठवें भाव में गोचर करता है तब शनि की ढ़ैय्या आरंभ होती है। ढ़ैय्या अर्थात ढ़ाई साल का समय। जन्म कुंडली का अच्छी तरह से विश्लेषण करने के बाद ही शनि की ढैय्या का प्रभाव बताना चाहिए। यह अच्छी अथवा बुरी तब होगी जब कुंडली में समस्याएँ होगी।
उपाय-
शनि की साढ़ेसाती अथवा ढ़ैय़्या में जीवन में बदलाव अवश्य आता है और यह बदलाव अच्छा होगा या बुरा होगा ये आपकी जन्म कुंडली तय करेगी क्योंकि अच्छी दशा के साथ शनि की ढैय्या अथवा साढ़ेसाती बुरी साबित नहीं होती है लेकिन यदि अशुभ भाव अथवा अशुभ ग्रह की दशा चल रही है तब काफी कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।परेशानियों से बचने के लिए शनि महाराज को प्रसन्न रखना चाहिए जिससे जीवन सरलता से चल सके। इस समय शनि का दान, मंत्र जाप, पूजन आदि करने से काफी राहत मिलती हैं। शास्त्रों में शनि की औषधि स्नान आदि के बारे में भी कहा गया है। शनि को शांत रखने के लिए शनि के बीज मंत्र की कम से कम तीन मालाएँ अवश्य करनी चाहिए और मंत्र जाप से पूर्व संकल्प करना जरुरी है। बीज मंत्र के बाद शनि स्तोत्र का पाठ करना लाभदायक होगा।
बीज मंत्र – “ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:”
शनि स्तोत्र-
जब किसी शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र पड़ रहा हो तब शमी की जड़ को काले धागे में बाँध कर अभिमंत्रित कर के धारण करने से भी लाभ मिलता है। शनि से संबंधित वस्तुएँ जैसे – तेल, लोहा, काली मसूर, काले जूते, काले तिल, कस्तूरी आदि का दान करने से भी राहत मिलती है। किसी भी शनिवार से आरंभ कर के लगातार 43 दिन तक हनुमान जी के मंदिर में सिंदूर, चमेली का तेल, लड्डू और एक नारियल चढ़ाना चाहिए। सुंदरकांड का पाठ करने के बाद हनुमान चालीसा और श्रीहनुमाष्टक का पाठ करने से भी शनि से मिलने वाले कष्ट कम होते हैं।
शनि की ढैय्या अथवा शनि की साढ़ेसाती अथवा शनि पाया के अशुभ फलों को शांत करने के लिए शनि के बीज मंत्र अथवा वैदिक मंत्र के 23 हजार जाप करने चाहिए। जाप पूरे होने पर दशाँश हवन करना चाहिए अथवा उचित ब्राह्मण से करवा लेना चाहिए।
शनि का बीज मंत्र ऊपर दिया गया है और शनि का का वैदिक मंत्र निम्नलिखित है:-
“ऊँ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीतये, शं योरभिस्रवन्तु न: ।। शं नम:।।”
शनि के दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए शनिवार के दिन व्रत रखने चाहिए। काली उड़द की दाल अथवा सप्त अनाज का शनिवार को दान करना चाहिए। काले वस्त्र भी दान किए जा सकते हैं, शिव की उपासना करनी चाहिए।
उपरोक्त उपायों के अतिरिक्त शुभ मुहूर्त में नीलम अथवा नीलम का उपरत्न भी धारण किया जा सकता है लेकिन धारण करने से पूर्व ज्योतिषीय परामर्श भी ले लेना चाहिए। यदि शनि का रत्न धारण ना कर सकें तब शनि यंत्र विधि विधान से शुभ मुहूर्त में धारण करने से लाभ होता है।
– तेजस्वनी पटेल, पत्रकार
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