जानें, की आखिर क्यों पूर्ण चंद्रग्रहण में चांद लालिमा लिए होता है?
ग्रहण की व्याख्या वैज्ञानिक तौर पर संसार में सबसे पहले एक भारतीय ने की था।
भारत के महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने 499 ईस्वी में पहली बार संसार के सामने ग्रहणों की सही व्याख्या की, उन्होंने कहा था कि सूर्य और चंद्रमा का ग्रहण महज छाया का खेल है। इसके अलावा उन्होंने बताया था कि पूर्ण चंद्र ग्रहण तांबे की तरह लाल रंग का ही होता है।
बता दें, जब आर्यभट्ट ने यह वैज्ञानिक तथ्य लिखा था तो वह महज 23 साल के थे। उन्होंने बताया था कि सूर्य और चंद्रमा को कोई राहु जैसा राक्षस नहीं निगलता है। साथ ही उन्होंने ग्रहणों की पूरी गणितीय व्याख्या भी की थी।
आमतौर पर चंद्रमा पूर्ण ग्रहण के समय पूरी तरह से काला नहीं होता है, बल्कि उसमें थोड़ी चमक आ जाती है। पूर्ण ग्रहण के दौरान चंद्रमा लाल रंग में बदल जाता है। हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है कि पृथ्वी की किस छाया से चंद्रमा गुजर रहा है और पृथ्वी का वातावरण कितना साफ है। दरअसल, पृथ्वी के वातावरण की ऊपरी सतह स्ट्रेटोस्फियर 20 से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के भीतर होती है। ये सतह कितनी साफ है इससे तय होता है कि चंद्रमा पूर्ण चंद्रग्रहण के समय लाल या भूरे रंग में नजर आएगा।
चंद्रमा पूर्ण चंद्र ग्रहण के वक्त लाल रंग में ही क्यों दिखता है?
सूर्य की रोशनी जब पृथ्वी के वातावरण की विभिन्न परतों से गुजरती है तो रोशनी के सात रंग अलग-अलग कोण पर बिखर जाते हैं। इनमें वर्णक्रम का लाल वाला हिस्सा कुछ ज्यादा ही मुड़ता है। सूर्य की यही रोशनी चंद्रमा की सतह पर सबसे पहले पहुंचती है, जिस कारण चंद्रमा पूर्ण ग्रहण के समय पूरी तरह से विलुप्त नहीं होता, बल्कि लाल रंग में हमें नजर आता है। पूर्ण चंद्रग्रहण की अवस्था में चंद्रमा की चमक सामान्य पूर्णिमा के मुकाबले 500 गुना कम हो जाती है।
– तेजस्वनी पटेल, पत्रकार
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