Homeआध्यात्मिक न्यूज़आर्थिक तथा सामाजिक विकास में ही मानव जाति का भविष्य सुरक्षित है! – डा. जगदीश गांधी

आर्थिक तथा सामाजिक विकास में ही मानव जाति का भविष्य सुरक्षित है! – डा. जगदीश गांधी

आर्थिक तथा सामाजिक विकास में ही मानव जाति का भविष्य सुरक्षित है!

(1) संयुक्त राष्ट्र संघ की 21वीं सदी की अनुकरणीय घोषणा

संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल एसेम्बली ने 17 दिसम्बर 1985 में आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी दिवस के रूप में 5 दिसम्बर को मनाने की घोषणा की गयी। जिसका उद्देश्य सदस्य देशों की सरकारों तथा गैर-सरकारी संस्थाओं को आर्थिक तथा सामाजिक विकास को प्रोत्साहन देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का स्मरण कराना है। इस मुहिम के अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं पर विचार-विमर्श किया जाता है:- 1. यूनिर्वसल प्राइमरी स्कूल के लक्ष्यों को अर्जित करना, 2. जाति-लिंग समानता तथा महिलाओं को सशक्तिकरण, 3. गरीबी उन्मूलन, 4. बच्चों की मृत्युदर में कमी तथा माताओं के स्वास्थ्य के स्तर को विकसित करना, 5. एचआईवी/एड्स, मलेरिया तथा अन्य बड़ी बीमारियों को फैलने से रोकना तथा 6. पर्यावरण को सुरक्षित बनाने में सहयोग करना आदि। इस दिवस के उपरोक्त लक्ष्यों को प्रिन्ट, इलेक्ट्रिानिक्स, सोशल मीडिया, स्वयंसेवी समुदाय प्रोजेक्ट, समुदाय के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले स्वयंसेवियों को सम्मानित करना, कम्पनियों को अपना दायित्व निभाने के लिए स्वयंसेवी प्रोग्राम आयोजित करना, शिक्षा संस्थानों को स्वयंसेवियों के भाषण, वाद-विवाद आदि के माध्यम से अधिक से अधिक प्रचारित तथा प्रसारित करना। स्वयंसेवियों को स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए अपना योगदान देने के लिए आगे आना चाहिए।

(2) आर्थिक तथा सामाजिक विकास में ही मानव जाति का भविष्य सुरक्षित

ब्रिटिश अर्थशास्त्री अलफ्रेड मार्शल ने आर्थिक विषय को परिभाषित करते हुए इसे ‘मनुष्य जाति के रोजमर्रा के जीवन का अध्ययन’ बताया है। मार्शल ने पाया था कि समाज में जो कुछ भी घट रहा है, उसके पीछे आर्थिक शक्तियां हुआ करती हैं। इसीलिए समाज को समझने और इसे बेहतर बनाने के लिए हमें इसके आर्थिक आधार को समझने की जरूरत है। अर्थशास्त्र में अर्थसंबंधी बातों की प्रधानता होना स्वाभाविक है। परंतु हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि ज्ञान का उद्देश्य अर्थ प्राप्त करना ही नहीं है, सत्य की खोज द्वारा विश्व के लिए कल्याण, सुख और शांति प्राप्त करना भी है। अर्थशास्त्र यह भी बतलाता है कि मनुष्यों के आर्थिक प्रयत्नों द्वारा विश्व में सुख और शांति कैसे प्राप्त हो सकती है। सब शास्त्रों के समान अर्थशास्त्र का उद्देश्य भी विश्व कल्याण है। अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय है, यद्यपि उसमें व्यक्तिगत और राष्ट्रीय हितों का भी विवेचन रहता है। यह संभव है कि इस शास्त्र का अध्ययन कर कुछ व्यक्ति या राष्ट्र धनवान हो जाएँ और अधिक धनवान होने की चिंता में दूसरे व्यक्ति या राष्ट्रों का शोषण करने लगें, जिससे विश्व की शांति भंग हो जाए। परंतु उनके शोषण संबंधी ये सब कार्य अर्थशास्त्र के अनुरूप या उचित नहीं कहे जा सकते, क्योंकि अर्थशास्त्र तो उन्हीं कार्यों का समर्थन कर सकता है, जिसके द्वारा विश्व कल्याण की वृद्धि हो। इस विवेचन से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र की सरल परिभाषा इस प्रकार होनी चाहिए-अर्थशास्त्र में मुनष्यों के अर्थसंबंधी सब कार्यो का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। उसका ध्येय विश्वकल्याण है और उसका दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय है। सामाजिक विज्ञान मानव समाज का अध्ययन करने वाली शैक्षिक विधा है। प्राकृतिक विज्ञानों के अतिरिक्त अन्य विषयों का एक सामूहिक नाम है सामाजिक विज्ञान। इसमें नृविज्ञान, पुरातत्व, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, विधि, भाषाविज्ञान, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन और संचार आदि विषय सम्मिलित हैं। कभी-कभी मनोविज्ञान को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है।

(3) आज की बाल एवं युवा पीढ़ी अनेक तरह के तनाव से पीड़ित है

देश की जनसंख्या का 20 प्रतिशत बाल एवं युवा पीढ़ी है जो कि लगभग 30 करोड़ की संख्या में है। इनमें से लड़कियों के आयु वर्ग 10 से 19 वर्ष के बीच 22 प्रतिशत की जनसंख्या है। इस कारण से यह एक बड़ा व्यापक मुद्दा है। भारत में बाल एवं युवा पीढ़ी कुपोषण, प्रजनन स्वास्थ्य समस्या, यौन संचारित रोग, मानसिक तथा शारीरिक संबंधी तनाव की समस्या आदि से पीड़ित है। इनमें रक्त की कमी की समस्या विकसित देशों में 6 प्रतिशत है जबकि हमारे देश में लगभग 27 प्रतिशत है। प्रायः तनाव ही बाल एवं युवा पीढ़ी को प्रारम्भ में तम्बाकू का आदी बनाता है जो कि आगे ड्रग्स की आदत के रूप में विकसित होता है। तथापि आगे खतरनाक तथा असामाजिक व्यवहारों के रूप में सामने आता है।

(4) बच्चों की शिक्षा के माध्यम से समाज का विकास

एक बच्चे के लिये स्कूल, वास्तव में, बड़े होनेे, विकसित होने तथा जीवन के सबक सीखने का मैदान ही होता है। लेकिन सीएमएस का विश्वास है कि स्कूल की जिम्मेदारी बच्चों की शिक्षा तक ही सीमित नहीं होती। बल्कि स्कूल का कार्य बच्चे को शिक्षित करने के साथ-साथ उसके परिवार तथा पूरे समाज को भी शिक्षित एवं जागरूक करना होता है। एक प्रकाश स्तंभ की भांति स्कूल में संपूर्ण युग के घटनाक्रम के प्रति चिंता का भाव भी होना चाहिये और विश्व का सबसे बड़ा स्कूल होने के नाते सीएमएस लड़कियांे तथा लड़कों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए आवाज बुलंद करना अपनी नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी समझता है, ताकि वे सर्वोत्तम चारित्रिक विशिष्टताओं को समाहित कर सकें। बच्चों की शिक्षा के माध्यम से हम समाज की सेवा करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।

(5) व्यक्ति के जीवन में ‘सबसे बड़ा प्रभाव’ विद्यालय का

प्रत्येक बालक (अ) पवित्र (ब) दयालु तथा (स) प्रकाशित हृदय लेकर इस संसार में पैदा होता है। शुद्ध, दयालु तथा ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित होने के कारण बालक जन्म के समय से ही परमात्मा के अनन्त साम्राज्य का मालिक होता है। प्रारम्भ के 2-3 वर्षों में माता-पिता, दादा-दादी तथा परिवार के ईश्वरीय वातावरण का बालक के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बालक के जीवन में ‘सबसे ज्यादा प्रभाव’ विद्यालय का पड़ता है। स्कूल ही बालक को अच्छा या पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति या बुरा अर्थात पूर्णतया गुणरहित व्यक्ति बनाता है। घर का वातावरण, स्कूल का वातावरण तथा समाज का वातावरण ये तीनों प्रकार के वातावरण ही बालक के तीन स्कूल तीन क्लास रूम या ज्ञान प्राप्त करने के तीन स्त्रोत होते हंै। लेकिन बालक के जीवन पर इन तीनों में से सबसे अधिक प्रभाव स्कूल का पड़ता है। ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित स्कूल के वातावरण से बालक परिवार, समाज और विश्व के लिए अच्छा इन्सान बन सकता है। आजकल 2 वर्ष से ही बालक विद्यालय के प्ले ग्रुप, मोन्टेसरी, नर्सरी, के.जी. आदि कक्षाओं में पढ़ने के लिए विद्यालय में आ जाता है। इस बचपन की अवस्था में प्रत्येक बालक का मन-मस्तिष्क एक कोरे कागज के समान होता है। इस कोरे कागज रूपी मन-मस्तिष्क में शिक्षकों के द्वारा प्रारम्भिक 15 वर्षों में जो संस्कार और जीवन-मूल्यों का बीजारोपण किया जाता है वह बालक के जीवन में सदैव के लिए अंकित हो जाता है।

(6) शिक्षा विश्वव्यापी दृष्टिकोण को विकसित करने वाली होनी चाहिए

विद्यालय को ईश्वरीय प्रकाश का केन्द्र बनायें। ‘ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित स्कूल’ के द्वारा शिक्षा ग्रहण करके ही बालक परिवार, समाज और विश्व के लिए एक अच्छा मानव जाति का स्वयंसेवक, एक अच्छा डाक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी आदि बनने के साथ ही एक अच्छा इंसान बन सकता है। इसलिए आधुनिक विद्यालयों का यह सामाजिक उत्तरदायित्व है कि अपने को ईश्वरीय प्रकाश का केन्द्र बनायें। इसलिए सम्पूर्ण मानव जाति के उत्थान के लिए प्रत्येक बालक को विश्व का प्रकाश बनाने हेतु विद्यालय को निम्न प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए:- (क) बच्चों को ‘सार्वभौमिक जीवन-मूल्य’ की शिक्षा। (ख) बच्चों को ‘विश्वव्यापी चिंतन’। (ग) बच्चों को ‘विश्व की सेवा के लिए’ तैयार करना तथा (घ) बच्चों को ‘सभी चीजों में उत्कृष्ट’ बनाना चाहिए। वास्तव में शिक्षा युग की आवश्यकता के अनुकूल होनी चाहिए चूंकि प्रत्येक युग की समस्यायें अलग-अलग होती हैं इसलिए स्कूलों द्वारा वर्तमान युग की समस्याओं को पहचान कर उसके निराकरण को ध्यान में रखते हुए ही शिक्षा का पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाना चाहिए। आज समाज में व्याप्त बुराइयों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि नैतिक मूल्यों के बीजारोपण एवं संरक्षण की जितनी आवश्यकता आज है शायद इसके पहले कभी नहीं थी।

(7) लड़कियों तथा महिलाओं के प्रति लोगों की मानसिकता को बदलने की जरूरत

वर्तमान में लड़कियों तथा महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा तथा यौन उत्पीड़न की वरदातों को देखते हुए हमारी छात्राओं को आत्म-रक्षा की तकनीक सिखाना आवश्यक है। सीएमएस ने इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए प्रत्येक छात्रा को आत्म रक्षा का प्रशिक्षण देने का कदम रेड बिग्रेड संस्था के साथ मिलकर उठाया है। इस प्रकार के प्रशिक्षण से सभी छात्रायें किसी प्रकार की भी स्थिति से अपनी रक्षा स्वयं करने में सक्षम बनेगी। सीएमएस का नाम गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में किसी एक शहर में एक विद्यालय में अध्ययनरत लगभग 57,000 छात्रों वाले विद्यालय के रूप में दर्ज है जिसमें से विद्यालय के 18 कैम्पस में अध्ययन करने वाली लगभग 20,000 छात्रायें हैं। जहाँ एक ओर कानूनों को सख्त किया जाना चाहिये, वहीं यह भी जरूरी है कि कानूनों को और अधिक सख्ती से लागू भी किया जाय। साथ ही शिक्षा भी इस विषय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसमें दोनों-औपचारिक तथा घरों के भीतर की शिक्षा भी शामिल है। हम सभी का मानना है कि माता-पिता को लड़की और लड़के में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिये। इसके साथ ही हमें लड़कों में भी लड़कियों को समान समझने की भावना विकसित करने का प्रयास करना चाहिये। हाल के विरोध प्रदर्शनों ने बदलाव की हमारी उम्मींदों को जागृत तो किया है, लेकिन आज भी कुुछ विसंगतियां हमारे बीच मौजूद हैं, जिन्हें समय रहते दूर करना ही होगा। हममें से कई लोग हैं जिन्होंने दिल्ली की उस पीड़ित छात्रा निर्भया तथा हाल ही मे हैदराबाद की डॉ बेटी के हेतु न्याय के लिए किये जा रहे विरोध प्रदर्शनों का समर्थन तो किया था, लेकिन यह भी सच है कि हम अपने जीवन में महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं। इस मामले में केवल पुरुषों को ही आत्मावलोकन करने की जरूरत नहीं है, महिलाएं भी इसमें शामिल हैं। इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को केवल महिलाओं की समस्या के रूप में ही न देखा जाय बल्कि इसे व्यापक सामाजिक समस्या के रूप में देखा जाये।

 

(8) नौकरी या व्यवसाय आत्मा के विकास का एकमात्र साधन है:

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका ईमानदारी से कमाने के लिए कोई न कोई छोटे से छोटा या बड़ा अपना उद्योग, व्यवसाय, नौकरी या मेहनत मजदूरी करना, अखबार बेचना, जूतों में पालिश करना, ठेेला लगाना, कुली का कार्य करना, कमजोर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना, आटो-रिक्शा चलाना आदि-आदि कोई न कोई कार्य अवश्य करना चाहिये। दूसरों की कमाई खाने या झूठ और पाप की कमाई खाने से हमारी आत्मा कमजोर होती है। जबकि छोटे से छोटा परिश्रम व ईमानदारी से कमाया हुआ एक पैसा भी हमारी आत्मा के विकास में सहायक होता है। अनेक लोग पवित्र सेवा भावना से सरकारी, प्राइवेट या समाज सेवी संस्थाओं में नौकरियाँ करते हैं या किसानी, मेहनत-मजदूरी का कोई कार्य करते हैं। जैसे- खेतीबाड़ी, शिक्षा, न्यायिक, प्रशासनिक, सफाई, यातायात, मीडिया, चिकित्सा, रेलवे, पुलिस, सेना, बैकिंग, जल संस्थान, बिजली, सड़क, निर्माण आदि विभागों में कार्यरत रहते हुए जनता को अनेक प्रकार की जन सुविधायें उपलब्ध कराते हैं और समाज का संचालन एवं सुचारु व्यवस्था बनाने में अपना योगदान करते हैं। किन्तु जो व्यक्ति अपने कार्यों को जनहित की पवित्र सेवाभावना से न करके निपट अपनी आजीविका कमाने की भावना से करते हैं वे स्वयं ही अपनी आत्मा का विनाश कर लेते हैं।

(9) विश्व के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों को सुरक्षित भविष्य का अधिकार दिलाना सी0एम0एस0 का लक्ष्य
यूनेस्को के शान्ति शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित सिटी मोन्टेसरी स्कूल का लक्ष्य विश्व के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों को सुरक्षित भविष्य का अधिकार दिलाना है, जो कि सम्पूर्ण विश्व में ‘एकता व शान्ति’ की स्थापना से ही संभव है। मैंने तथा विद्यालय की प्रेसीडेन्ट प्रो. गीता गांधी किंगडन ने विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य की आवाज उठाने न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 27 से 29 अगस्त 2014 तक ‘द रोल आॅफ सिविल सोसाइटी इन पोस्ट 2015 डेवलपमेन्ट एजेण्डा’ विषय पर आयोजित हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के 65वंे वार्षिक सम्मेलन में प्रतिभाग किया था । संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में ‘कन्टेन्ट आॅफ एजुकेशन फाॅर ट्वेन्टी फस्र्ट सेन्चुरी’ विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन भारत में आयोजित करने की संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया। इस न्यूयार्क यात्रा के दौरान हम दोनों ने इस बात को मजबूती से रखा कि ‘विश्व के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों को सुरक्षित भविष्य का अधिकार’ सभी सरकारों की प्राथमिकता में होना चाहिए।’ अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सिटी मोन्टेसरी स्कूल को ‘आॅफिसियल एन0जी0ओ0’ घोषित किया है। यह उपलब्धि अर्जित करने वाला सी0एम0एस0 विश्व का पहला विद्यालय है। यह उपलब्धि सी.एम0एस0 के सामाजिक जागरूकता के प्रयासों का प्रमाण है, जिसका सम्पूर्ण श्रेय सी0एम0एस0 के लगभग 57,000 छात्रों, उनके 3000 शिक्षकों व कार्यकर्ताओं को जाता है।

 

डा. जगदीश गांधी

डा. जगदीश गांधी

– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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