60 – छिपकली का आतंक | Chipkali ka Aatank | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
पिछले एपिसोड में आप ने देखा था कि बोकाल नाम का राक्षस गोरेपुर गाँव के लोगो को परेशान करता है। वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उस की जादुई चक्की कहीं खो गई थी। तो सभी मित्र मिल कर उस की जादुई चक्की को ढूंढ लेते हैं और बोकाल के पास जाते हैं।
बोकाल अपनी जादुई चक्की को देख कर बहुत खुश हो जाता है।
बुलबुल- “हम आप की चक्की ले आये हैं!!
बोकाल- “वाह, यह कमाल कैसे कर दिखाया तुम ने!!
करन- “बस कर दिया! अब तो आप खुश हैं ना अपनी चक्की पा कर!!
करमजीत- “अब तो इन सभी गांव वालों को छोड़ दो!”
बोकाल- “हां हां क्यों नहीं, मैं अपनी बात से मुकरता नही हूँ!!”
और बोकाल अपनी जादुई चक्की ले कर वहां से गायब हो जाता है।
ये सब देख कर गांव वाले हैरान रह जाते है।
गाँव का आदमी 1- “तुम बच्चों ने तो बहुत बड़ा चमत्कार कर दिखाया है!”
आदमी 2- “हां, बच्चों…तुम सब का बहुत-बहुत शुक्रिया!”
वधिराज- “कोई बात नहीं.. यह तो हमारा फर्ज था..!”
लव- “चलो अब यहां से चलते हैं!!
और फिर सभी मित्र वहां से निकल पड़ते हैं।
चिड़िया- “ना जानें हम सही जगह पर कब पहुंचेंगे? कितना वक्त हो गया है”
वधिराज- “चलते रहिये राजकुमारी जी… हिम्मत मत हारिए!”
चिड़िया- “हम्म्म… बस एक दूसरे को देख कर हिम्मत आ ही जाती है!”
उन्हें चलते हुए काफी देर हो जाती है
और सब को थकान महसूस होने लगती है
शुगर- “मैं बहुत थक गई हूं!!
टॉबी- “हाँ, मैं भी!”
लव कुश- “हम भी!”
बुलबुल- “हमे कुछ देर के लिए विश्राम करना चाहिए!!!
कर्ण- “हाँ हां, यहीं इस जंगल मे रुक जाते हैं!”
और वे सभी एक जगह पर विश्राम करने के लिए रुकते हैं।
तभी वहाँ पर एक औरत आती है।
औरत (शीतल)- “तुम सब बच्चे कौन हो??”
कर्मजीत- “हम सब तो बस यहां से गुजर रहे थे.. पर आप ये क्यों पूछ रही है? ”
औरत (शीतल)- “मेरा नाम शीतल है..मैं यहीं की हूँ , मेरा ज्यादा समय यहीं पर बीतता है!”
करन- “पर क्यों??.. ऐसे घने जंगलों में आप अकेले क्या करती हैं.. यहां पर आप सुरक्षित नहीं है ”
शीतल- “हां मुझे पता है.. लेकिन यह सब मैं अपनी छोटी बहन वंदना के लिए कर रही हूं!”
कुश- “क्यों.. ऐसी क्या बात है? ”
शीतल- “वंदना दरमुनड़ा नाम के एक बाबा के चंगुल मे फंस गई है..!”
लव- “कौन ये है बाबा,कैसा अजीब सा नाम है?”
शीतल (दुखी हो कर)- “दरमुनड़ा एक बाबा है.. वो किसी कुटिया मे रहता था…एक दिन मेरी छोटी बहन वंदना अपने प्रेमी मयूर से मिलने इसी जंगल में आई थी… रात का समय था और वह एक मोमबत्ती ले कर आई थी परंतु.. जब वे लोग वार्तालाप करने में व्यस्त हो गये तो गलती से उस मोमबत्ती से आग लग गयी और उस बाबा की कुटिया तक फैल गई थी!”
वधिराज- “अच्छा फिर???…”
शीतल- “फिर उस बाबा नें वंदना को श्राप दिया कि ज़ब तक वो मोमबत्ती जलती रहेगी तब तक उस का प्रेमी मयूर भी जीवित रहेगा.. और इस मोमबत्ती को जलाए रखने के लिए उसे लगातार नृत्य करना होगा!”
चिड़िया- “नृत्य? ये कैसा श्राप है?”
शीतल- “क्योंकि उस बाबा को पता था कि वंदना एक नर्तकी है, वह बहुत अद्भुत नृत्य करती है…!”
बुलबुल- “अच्छा…तो कब से ये हो रहा है?”
शीतल- “इस बात को करीब 10 दिन हो चुके हैं.. और उस ने कुछ खाया भी नही है. क्योंकि वह ज्यादा देर के लिए रुक नहीं सकती.!”
टॉबी- “बाबा उसे तकलीफ देना चाहता है इसलिए शायद उस ने ऐसा श्राप दिया!”
शुगर- “हाँ टॉबी…!”
कुश- “तो अभी मयूर कहाँ है?”
शीतल- “मयूर को श्राप मिला है कि उसे वन्दना के पास नहीं आना है. वह दूर ही रहता है.!”
लव- “बेचारी वंदना अपनें प्रेमी के लिए कितना कुछ कर रही है!”
करन- “हाँ.. आप चिंता मत करिए शीतल जी, हम उन की सहायता अवश्य करेंगे!”
वधिराज- “हां , परन्तु हमारे पास समय बहुत कम है , जल्दी चलो ”
और शीतल सभी को वहां ले जाती है।
वंदना नृत्य कर रही है और बहुत थकी हुई दिख रही है।
शीतल इशारा कर के वंदना को दूर से ही सारी बात बताती है!
वंदना- “नही दीदी…इन की जान खतरे में मत डालो..!”
शीतल- “मतलब?”
वंदना- “वो बाबा इतनी आसानी से किसी को भी मेरी मदद करने नहीं देगा!”
चिड़िया- “नही.. कोशिश करने से पहले हार मान जाना अच्छी बात नहीं है..!…”
बुलबुल- “हां हम आप की सहायता के लिए ही आये हैं!”
वधिराज- “तो चलो कुटिया के अंदर चलते हैं.. बाबा अभी अंदर नहीं है, ये मौका अच्छा है!”
करण- “और शीतल जी आप बाहर ही रहिएगा.. और हर तरफ ध्यान रखिएगा..!”
और तभी कुटिया में एक बड़ा सा गिरगिट उन सभी का इंतजार कर रहा है..
गिरगिट (मन मे)- “आओ आओ… स्वागत है तुम सब का, मैं तो कब से इंतजार कर रहा था…!”
और सभी कुटिया के अंदर पहुंच चुके हैं.. अंदर काफी अंधेरा है , बस एक मोमबत्ती जल रही है!
लव- “काफी अंधेरा है इस कुटिया में तो!!”
कुश- “यह देखो मोमबत्ती..ये वही मोमबत्ती होगी!”
कर्मजीत- “हाँ… परंतु हम अब करेंगे क्या?..!”
करन- “हाँ…वही तो… क्या एक बार हम बाबा से बात कर के देखें?”
वधिराज- “हम्म्म…लेकिन वह ऐसे नहीं मानेगा..मुझे नही लगता ये इतना आसान है!”
चिड़िया- “क्या हो.. यदि हम इस मोमबत्ती को चुरा ले.. तो बाबा शायद कुछ गलत नहीं कर पाएगा..!”
बुलबुल- “हाँ आप सही कह रही हो राजकुमारी जी..ज़ब मोमबत्ती का ही आता पता नहीं होगा तो मयूर जी को भी कुछ नहीं होगा!”
और बुलबुल वो मोमबत्ती वहां से उठाने लगती है कि तभी वहां पर अंधेरे में जमीन और दीवारों पर बहुत सारी आंखें चमकने लगती हैं।
टॉबी- “अरे यययय ये….ये क्या चमक रहा है??”
शुगर- “टॉबी…बच कर…!”
तभी करमजीत कुटिया की एक खिड़की खोल देता है और रोशनी होने से सब देखते हैं कि वहां बहुत सारे गिरगिट है।
लव- “गिरगिट!!”
कुश- “वो भी इतने सारे!
टॉबी- “अब क्या करें!”
चिड़िया- “बचो सब , ये हमारी तरफ ही आ रहे हैं!!”
सभी लोग उन गिरगिट से बचने लगते है… थोड़ी ही देर मे ही करण और बाकी मित्र कई गिरगिटों को मार डालते है…!”
करन- “अगर खुद को और अपनी सेना को जिंदा देखना चाहते हो तो हम पर हमला करना बंद करो..!”
गिरगिट का सरदार, “हम सब डरपोक नही है, समझे ना…साथियों हमला करो…!”
और इस बार तो उन के मुंह से पीले रंग का गीला पदार्थ (jelly जैसा कुछ) निकलता है।
करण- “अरे…ये क्या है.!”
बुलबुल- “कहीं जहर तो नही!!
वधिराज- “डटे रहो साथियों, ये तो मान ही नही रहें है…!”
कुश- “हां वधिराज जी…लड़ते रहिये!”
और अचानक गिरगिट का सरदार वहां से चला जाता है।
लड़ते लड़ते गिरगिट की आधी सेना खत्म हो चुकी है…!
लव- “इन का सरदार कहां गायब हो गया?”
चिड़िया- “वही तो मैं भी सोच रही हूं..!”
वधिराज- “अरे लव…ध्यान से…पीछे देखो..!”
और लव पीछे तुरंत मुड़ कर नीचे झुक जाता है और करमजीत गिरगिट पर वार कर के उसे मार देता है।
कर्मजीत- “ध्यान से..! ये गिरगिट बहुत चालाक हैं”
लव (घबरा कर)- “सामने तो देखो साथियों!! मुसीबत कम नही हुई है”
वहाँ गिरगिट के सरदार के साथ मकड़ी का राजा वहाँ आता है जो अपनी सेना ले कर आया गया था।
करन- “अच्छा… तो इसीलिए यह यहां से गायब हो गया था!!!”
वधिराज- “हम्म…. ध्यान से सभी लोग, !”
वही मकड़ी अपना मुँह खोल कर उन की तरफ जाल फेंक रही थी…तभी जाल कुश के ऊपर आ जाता है और वो जाल में फंस जाता है।
कुश- “ये क्या मुसीबत है!!”
बुलबुल- “मैं आ रही हूं कुश!!!
लव- “ये मकड़ियां तो जाल फेंकती ही जा रही है!”
शुगर- “ऐसे तो हम हारने लगेंगे!”
करमजीत- “नही, सब हिम्मत रखो, डटे रहो!”
बुलबुल तुरंत उस जाले को तलवार से काट देती है.. लेकिन अब बाजी उल्टी पड़ गई थी क्योंकि करण और उस के मित्रो की हार होने लगी थी।
तभी वहाँ बाबा आ जाता है। गिरगिट का सरदार उसे सारी बात बताता है।
बाबा दरमुनड़ा- “वाह…इतनी हिम्मत???.. ठीक है.. अभी तुम सब को यहीं पर भस्म कर देता हूं..!”
करन- “नही…ऐसा मत करिए…भला ऐसा कर के आप पाप के भागीदार क्यों बन रहे हैं? ”
बाबा- “अच्छा तो अब एक बालक हमें सिखाएगा कि क्या सही है और क्या गलत?. हॉं.!”
वधिराज- “तो हम भी कम नही है फिर , देख लेना अंजाम!!
और बाबा गुस्से मे एक मंत्र पढ़ता है जिस से उस के हाथ में एक आग का गोला आ जाता है और वह आग के गोले को वो वधिराज की तरफ फेक देता है।
लेकिन कर्मजीत उस आग को अपने सीने पर ले लेता है.. क्योंकि उस के पास आग की शक्ति थी इसीलिए उसे कुछ भी नहीं होता।
बाबा- “अच्छा तो तुम सब को दिव्य शक्ति प्राप्त है.. हम्म…!”
कर्ण- “हां बाबा, आप कृपया कर के रुक जाइये!!
और बाबा फिर से और ताकत लगा कर आग की गोले उन की तरफ फेंकता है लेकिन करमजीत सभी को बचा लेता है।
कर्मजीत- “बाबा रुक जाइये, वंदना को माफ कर दो… उस ने जो भी किया गलती से किया..!”
बाबा- “तो ठीक है.. अगर मैं तुम्हें हरा नहीं सकता.. तो मै तुम सब को भी जीतने नहीं दूंगा…मै इस मोमबत्ती को अभी बुझा दूंगा!”
बुलबुल- “नहीईई…आप ऐसा ना करें…हम यहां से चले जायेंगे..हम आप के कार्य में कोई भी दखल नहीं देंगे..!”
बाबा- “ठीक है…जाओ यहां से…. बाहर मेरे वफादार खडे रहेंगे… अगर तुम लोगों ने जरा सी भी चालाकी करने की हिम्मत की तो यह मोमबत्ती मै बुझा दूंगा!”
और सभी मित्र मायूस हो कर कुटिया के बाहर चले जाते है।
वन्दना उन का चेहरा देख कर समझ जाती है कि कुछ तो गलत हुआ है लेकिन वह कुछ नहीं कहती।
कर्मजीत- “हमें वंदना और मयूर दोनों की जान बचानी है… बस कुछ भी कर के!”
करमजीत- “सभी लोग अग्नि देवता को याद करो और उन से प्रार्थना करो कि वो मोमबती जलती रहे…!”
और सभी लोग हाथ जोड़ कर अग्नि देवता से प्रार्थना करने लगते हैं।
प्रार्थना करने के बाद करमजीत के सीने से एक ज्योति निकलती है और वह ज्योति जा कर उस मोमबत्ती मे प्रवेश कर जाती है।
लव- “देखो ये दिव्य शक्ति है!”
कर्मजीत- “हाँ! हमारी प्रार्थना प्रभु ने सुन ली है..!”
कर्ण- “चलो अब कुटिया के पास चलते हैं!”
बुलबुल- “यहां तो चार ही गिरगिट है!”
कर्मजीत- “मोमबत्ती अब हमेशा जलती ही रहेगी , बस हमें करना यह है कि वंदना को यहां से ले जाना होगा..
करण- “मैं वधिराज जी, कुश और बुलबुल जा कर उन गिरगिट का ध्यान भटकाते हैं!”
करमजीत- “हाँ मैं वन्दना को ले जाने का प्रबन्ध करता हूँ
तो कर्ण और उस के मित्र फिर से वहां जा कर गिरगिट से लड़ने लगते हैं।
गिरगिट- “अभी जा कर बाबा को बताता हूं!”
कर्ण- “हम तुम्हे नही जाने देंगे!!”
वन्दना- “ऐसा मत करो कर्ण!!
करमजीत- “सब ठीक हो गया है ..आप बस यहां से चुपके से चलो..!”
और तभी कर्मजीत आग लगा देता है…।
और सभी गिरगिट आग से डर कर पीछे हो जाते है.. और आग के धुंए से सब ढ़क जाता है.. तो सभी मौका पा कर वो वन्दना को वहां से ले जाते हैं।
थोड़ी देर में आग बुझ जाती है लेकिन बाबा अब कुछ भी नहीं कर सकता था….क्योंकि मोम्बती मे ज्योति अभी तक जल रही है।
वही खुशकीसमती से वधिराज उड़ पा रहा था इसलिए वो सभी के साथ शीतल और वंदना को मयूर के पास ले जाता है।
मयूर- “वंदना???”
वंदना- “हम्म्म…मै…आ गयी, अब हम तुम यहां से कहीं दूर चले जाएंगे… सब ठीक हो गया है मयूर!”
दोनों प्रेमी मिल जाते है और श्राप भी टूट जाता है।
शीतल- “तुम सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया!”
उन की खुशी देख कर सभी खुशी हो जाते हैं