43 – दोस्त या दुश्मन ? | Dost ya Dushman? | Tilismi Kahaniya | Moral Stories
पिछले एपिसोड मे आप ने देखा कि कैसे करण और उस के मित्रों ने उस इंसान को हरा दिया था और आखिर में उन्हें विजय भी मिल गई थी। वहीं दूसरी और करण की मां बहुत चिंतित हो रही थी क्योंकि उन्होंने कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था. लेकिन सब के समझाने पर वो समझ जाती है।
चिड़िया- “माता जी, आप बिल्कुल चिंता ना करें,सब ठीक हो गया है, चलिए अब यहां से चलते हैं!”
लव- “ओह हो, ना जाने कब ये मुसीबतें आना बंद होंगी!”
बुलबुल- “हो जाएंगी, डरपोक कहीं के! हा हा !”
कुश- “हां बिल्कुल सही कहा हा हा हा!”
यूं ही हंसी मजाक करते हुए सभी लोग वहां से निकल पड़ते हैं।
जब सभी लोग घर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि वहां पर बुलबुल, और, लव- कुश के माता-पिता आये हुए हैं।
बुलबुल- “मां !! पिता-जी आप यहां पर?”
बुलबुल की माँ- “बेटा, दो-तीन दिन बीत गए, तुम लोग यहां पर थे नहीं, तो हमें चिंता हो रही थी!”
बुलबुल- “मां चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, हम सब बिल्कुल ठीक है , देखो मैं ठीक लग रही हूं ना?”
बुलबुल के पिता- “वो सब तो ठीक है लेकिन तुम सब कहां गए थे?”
करण की माँ- “आप सब बैठिए, मैं बताती हूँ क्या हुआ था!”
इस के बाद करण की मां उन सभी को सारी बातें बता देती है।
करण की माँ- “देखा हमारे बच्चे इतनी मुसीबतों से आये हैं और वो भी विजयी हो कर!”
लव कुश के पिता- “वाह भई हमारे बच्चे इतने बहादुर हैं!”
लव कुश की माँ- “हमे तुम सब पर गर्व हैं बच्चों!!”
बुलबुल की माँ- “हम सब लोग तो तुम बच्चों के लिए बहुत परेशान हो रहे थे परंतु अब हमें इस बात की भी खुशी है कि तुम सब बच्चे होने के बावजूद भी इतना बड़ा कार्य कर रहे हैं।”
कुश के पिता- “मैंने सभी के लिए शर्बत बनाया है, घर पर रखा है, अभी ले कर आता हूँ!”
बुलबुल के पिता- “हां भाई, मैं भी मदद करता हूँ, चलो!”
जैसे ही वे लोग शरबत ले कर अंदर आते हैं… वैसे ही चिड़िया को कुछ अजीब सा लगता है।
चिड़िया (खुद से)- “ये मुझे क्या हो रहा है, मेरे अंदर की शक्ति मुझे कुछ बता रही है। लेकिन क्या!!”
तभी कर्ण की नजर चिड़िया पर पड़ती है।
करण (धीरे से)- “क्या हुआ राजकुमारी जी? आप परेशान लग रही है”
चिड़िया- “पता नहीं क्यों करन.. लेकिन कुछ गड़बड़ लग रही है…वो शरबत, उस मे कुछ तो है…..!!”
कर्ण- “मैं अभी टॉबी को कहता हूं, वो बता सकता है!”
तभी कर्ण टॉबी के पास जाता है और उसे एक तरफ ले जाता है।
करण- “टॉबी, राजकुमारी को कुछ आभास हो रहा है। तुम उस शर्बत को सूंघ कर बताओ क्या उस मे कोई गड़बड़ है!”
टॉबी- “ठीक है मैं शर्बत पीने के बहाने से सूंघ लूंगा, ताकि किसी को शक ना हो!”
तो टॉबी शरबत की खुशबू को ध्यान से सूंघने लगता है.. और सूंघने के बाद उसे कुछ पता चलता है।
टॉबी (खुद से)- “यह शरबत कोई साधारण शरबत नहीं बल्कि एक जादुई पदार्थ है।
शुगर- “क्या हुआ टॉबी?”
टॉबी- “उस शरबत को गिराना होगा, मेरी मदद करो!”
शुगर- “ठीक है टॉबी!!”
कुश की माँ- “यह लो शरबत… आप सभी लोग पी लो।”
कुश के पिता- “काफी थक गए होंगे! इस से राहत मिलेगी”
करन की माँ- “हाँ, लाइए भाभी जी,!
और तभी टॉबी और शुगर दोनों उछल कर सब के हाथ से उस शरबत को गिरा देते हैं।
जिस से बुलबुल और लव-कुश के माता-पिता बहुत गुस्सा हो जाते हैं और दोनों को बहुत डांटने लगते हैं।
लव के पिता- “ये क्या किया मूर्ख पशु!!”
लव की माँ- “सब सत्यानाश कर दिया!!”
तभी करमजीत देखता है कि लव-कुश और बुलबुल के माता पिता की आंखों का रंग नीला हो चुका है।
कर्मजीत- “इन की आंखों का रंग नीला है, इस का मतलब यह है कि यह लोग उस दुष्ट जादूगर के वश में है!”
बुलबुल- “हाँ कर्मजीत! सही कह रहे हो तुम”
और कर्मजीत की ये बातें सुन कर वो चारों करमजीत की तरफ देखते हैं और दूसरी आवाज में सब एक साथ बोलते हैं
चारों- “हाँ, हम वहीं है.. जो तू समझ रहा है, हम तुम सब का खात्मा करने के लिए यहां आए हैं…हा हा हा हा हा!”
वधिराज- “सभी लोग सावधान हो जाओ…!”
करन- “सब अपनी तलवार निकाल लो
करमजीत- “यकीन नहीं होता, अब यहां भी ये सब हो रहा है!!”
और देखते ही देखते उन चारों के चेहरे का हाव भाव बदल जाता है और उन की आवाज भी बदल जाती हैं।
करन (अपनी माँ से)- “माँ आप पीछे रहिये…. हमें लगता है कि इस शरबत के कारण ही इन सब का यह हाल हुआ है…जरूर इन्होंने पहले ही इसे पी लिया होगा!”
बुलबुल- “ये सब तो बहुत गुस्से मे है और हमें मारने पर उतारू हो चुके हैं।”
कर्ण- “आप सब लोगो को क्या हो गया है?, हम सब आप के दुश्मन नहीं है!,कृपया होश मे आइये!!”
करन की माँ- “हाँ भैया भाभी… आप सभी लोग होश में आइए, ये सभी अपने ही बच्चे हैं!”
कुश- “इन सभी पर हमारी बातों का कोई भी असर नहीं पड़ रहा है, अब क्या करें!!”
अपने माता-पिता का ऐसा हाल देख कर सभी बच्चे दुखी हो जाते हैं परंतु कर भी क्या सकते थे।
करन- “हमें यहां से जाना होगा, हम इन पर हमला भी तो नहीं कर सकते,!!!”
वधिराज- “जल्दी चलो, सब लोग पीछे के दरवाजे से बचाव कर के निकल जाते हैं!”
तो जैसे तैसे कर के वे लोग भागने में सफल तो हो जाते हैं और घर से दूर भागने लगते हैं।
बुलबुल- “शुक्र है बाहर निकल आये!”
लव- “चलते रहो, अभी हमे रुकना नही है!!”
कुश- “नही~~~~!! रुको, वो देखो सामने!!”
थोड़ी दूर भागने के बाद वो एक बड़े बरगद के पेड़ के पास अचानक रुक जाते हैं और वहां पर देखते हैं कि पूरे गांव के लोगों ने उन्हें घेर रखा है… और वो सारे लोग भी बिल्कुल बदले से दिख रहे हैं….।
बुलबुल- “ये क्या, ये तो कल्पना से बाहर था!”
वधिराज- “यह क्या हो गया!!!..लगता है पूरा गाँव ही ऐसा हो गया है!”
करण की माँ- “हे प्रभु,अब क्या होगा?”
करन- “समझ नहीं आ रहा है कि अब क्या करें?? अब हमारी सहायता सिर्फ ईश्वर ही कर सकते हैं…
करमजीत- “हाँ यह सब लोग मासूम है, इन सब में इन की कोई गलती नहीं है..हम इन का खात्मा भी नहीं कर सकते हैं!”
कुश- “करण.. आखिर अब करें क्या?,”
लव- “ये तो हमारी ही तरफ आ रहे हैं, अब कहाँ जाए, हम चारों ओर से घिर गए है!”
तभी गांव की भीड़ इन की तरफ ही बढ़ने लगती है।
ऐसे में उन को कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा था।
तभी अचानक से पेड़ से एक सरदार जी उतरते हैं।
सरदार- “ओये ओए, चिंता ना करो जी, अस्सी हैगे हां जी, शेर नाल पंगा और तजिंदर नाल दंगा महंगा पड़ सकदा है!”
और इतना कह कर वह अपनी मुट्ठी खोलता है और उस की मुट्ठी में एक चमत्कारी मिट्टी होती है…तो वह उस मिट्टी को भीड़ की तरफ फूक देता है।
और उन में से कुछ लोग सही हो जाते हैं
बुलबुल- “वाह, ये तो कमाल हो गया, किसी को चोट भी नही पहुंच रही!”
सरदार- “मैं तां केहा सी जी, हुण वेखो जी!! सारे सही हो जाण गे!””
तो तजिंदर अपनी जेब से और चमत्कारी मिट्टी निकाल कर उन पर फूंक देता है, जिस से कुछ और लोग भी ठीक हो जाते हैं..
वधिराज- “वो देखो, भीड़ में से कोई भागता हुआ आ रहा है!”
लव- “हां पर कुछ साफ दिखाई नही दे रहा!!”
तजिंदर- “फिक्र ना करो जी, ओ तां मेरी धर्मपत्नी हेगी आ..!! सुनीता कौर”
और वहां भीड़ में से सरदार जी की पत्नी सुनीता कौर भी उन सभी के मुंह पर चमत्कारी मिट्टी फेकती हुई आती है।
सुनीता कौर- “अजी चलो जल्दी, सारे बच्चयाँ नू लै के एद्रों जल्दी चल्लो जी!”
तजिन्दर सिँह- “हाँ जी, चल्लो चल्लो जी , बच्चयों, छेती छेती, !”
करण- “लेकिन जाना कहाँ है!!”
सुनीता- “अजी आगे साडा तांगा तुहाडा इंतजार करदा पया है!”
तजिंदर- “तुसी मेरा पीछा करो।”
तभी वो लोग वहां से चले जाते हैं और थोड़ी दूर पर तजिंदर सिंह के तांगे के पास पहुंचते हैं…और वे दोनों सभी को सुरक्षित तांगे पर बैठा कर वहां से चल देते हैं।
सुनीता- “बच गए जी अस्सी सारे लोग, कद्दू काट के!”
बुलबुल- “कद्दू??”
तजिंदर- “अजी, छड्डो, छड्डो, ए तां इस दा बोलन दा अंदाज है जी…!!”
सुनीता- “क्यों जी?? तुहानु चंगा नहीं लगया जी मेरा अंदाज?? हैँ!!?? हाय हाय कददू काट के!”
यह देख कर सभी लोग बहुत हंसते हैं।
चिड़िया- “हां हां क्यों नहीं.. आप का अंदाज तो बहुत ही अच्छा लगा,!”
बुलबुल- “लगता है आप को कद्दू बहुत पसंद है!”
तजिंदर- “ओ जी नहीं जी, एहो जी तां कोई गल नी है…वैसे तुसी लोग पंजाबी तां बोल लैंदे हो या ना?..!”
करन- “नहीं , हम पंजाबी नही बोल सकते, लेकिन थोड़ा बहुत समझ लेते हैं हम लोग!”
तजिंदर- “ओ चलो अच्छा है अच्छा है!…मै हिंदी बोल लेता हूँ फिर, हा हा हा!! शेर से पंगा और तजिंदर से दंगा महंगा पड़ सकता है.।”
कर्मजीत- “लेकिन मुझे समझ नही आता कि आखिर सारे गांव वालों को क्या हुआ था?”
सरदार जी- “अजी गांव से कुछ लोग मेरे पास आए थे…वे लोग बोल रहे थे कि गांव में सभी लोग अजीब अजीब हरकतें करदे पए हैं और तभी जदों मैं देखन गया तो गांव का ओ हाल हो गया था, उस पल मेरे दिमाग च कोई उपाय नहीं आ रहा था लेकिन अब मेरे पास इक हल आ गया है, ये मिट्टी, इस दा इस्तेमाल मैंने आप सभी को बचाने के लिए किया था, और देखा ना किंवे उन लोगों को धूल चटा दी. क्यूकी शेर से पंगा और तजिंदर से दंगा महंगा पड़ सकता है!”
बुलबुल- “हा हा हा, आप की हिंदी अच्छी है बहुत!!”
सुनीता- “हिंदी च थोड़ी पंजाबी, और मैं कह रही सी कि गांव वालों का यह हाल कुंए का पानी पीन दे बाद होया है, कद्दू काट के!…गांव के लोग कई दिनों से उस पानी दा इस्तेमाल कर रहे हैं और उन का ए हाल सुबह के 8:00 बजे से ले कर शाम के 6:00 बजे तक रहन्दा है।”
टॉबी- “हां और वो शरबत भी कुएं के पानी से ही बना होगा!”
चिड़िया- “हाँ, यह सब उसी जादूगर का काम होगा…उसी ने ही अवश्य उस कुएं के पानी को जादुई बना दिया होगा!”
वधिराज- “करन अब कोई उपाय ढूंढना होगा!”
इस के बाद सभी लोग सरदार जी के घर पहुंच जाते हैं.
करन (सरदार जी से)-“सरदार जी, मेरे पास एक उपाय है, हम कुंए के पानी मे आप की जादुई मिट्टी मिला देंगे..जिस के बाद सभी लोग ठीक हो जाएंगे,!”
सुनीता जी- “हां जी, काफी चंगा उपाय है जी, बस हम प्रार्थना करते हैं कि ए उपाय काम कर जावे!”
कर्मजीत- “तो यह काम हमें रात में ही करना होगा!”
करन- “हाँ, वही समय सुरक्षित रहेगा!”
और तभी सभी लोग रात होने का इंतजार करते हैं ।
जैसे ही रात होती है और सरदार जी, करन, करमजीत और वधिराज गांव में जाते हैं और गांव के कुएं में उस जादुई मिट्टी को मिला देते हैं।
वही सुबह होती है और सभी गांव वाले उस पानी का अपने दैनिक कार्यों में इस्तेमाल करने लग जाते हैं।
करन- “अब आज का दिन हमे इंतजार करना होगा और कल फिर से किसी को गांव में जा कर देखना होगा कि सब ठीक है या नही!”
तजिंदर- “मैं जा के देख के आवंगा!!”
तो अगले दिन तजिंदर गांव से हो कर वापिस अपने घर आता है
तजिन्दर- “अजी वाह्ह्ह!!!, पुत्तर करण.. तुम्हारा जवाब नहीं, क्या योजना बनाई सी..!!!… गांव वासी तो बिल्कुल चंगे हो गए हैं!…फिर मे कहूँगा ओ जी,शेर से पंगा और तजिंदर से दंगा महंगा पड़ सकता है.. हा हा हा!”
करन- “ये सब आप की वजह से हुआ है, आप ही में हमे वो मिट्टी दी थी, बहुत बहुत धन्यवाद आप का!”
इस के बाद, करण और उस के सारे साथी वापिस गांव में जाते हैं और अब वहां सब ठीक हो गया था।
लव कुश और बुलबुल अब अच्छे से अपने माता पिता से मिलते हैं।
करण और उसके दोस्तों के इस मज़ेदार सफर में आगे भी बने रहिएगा हमारे साथ।