सारे विश्व के स्कूलों में बच्चों को ‘यौन शिक्षा’ के स्थान पर ‘योग’ एवं ‘अध्यात्म’ की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाये! – डा. जगदीश गांधी
(1) अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय :-
ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस के स्कूलों में यौन शिक्षा दिये जाने के दुष्परिणामों से ये देश जूझ रहे हैं। विश्व भर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं और ब्रिटेन में तो यह आंकड़ा बेहद चौकाने वाला है। ब्रिटेन की संसदीय समिति ने एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें इस बात का खुलासा हुआ है कि यहां स्कूल और कालेज जाने वाली आधी से अधिक लड़कियां यौन उत्पीड़न का शिकार हुई हैं। रिपोर्ट में स्कूलों में यौन शिक्षा दिए जाने की जरूरत पर जोर दिया गया है। ब्रिटेन के माध्यमिक स्कूलों में वर्तमान पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा अनिवार्य है। हमारा मानना है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को मनुष्य की ओर से अर्पित की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है – (अ) बच्चों की उद्देश्यपूर्ण शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा की शिक्षाओं को जानकर उन पर चलने का बचपन से अभ्यास कराना न कि स्कूलों में यौन शिक्षा देकर बच्चों को तन तथा मन का रोगी बनाना।
(2) यौन शिक्षा के अनिवार्य होने से विदेशों में बढ़ी हैं समस्याऐं :-
विकसित देशों में स्कूली बच्चों को यौन शिक्षा देने के परिणाम बुरे आ रहे हैं। इन देशों में अब यह स्पष्ट हो चुका है कि यौन शिक्षा से एच.आई.वी., एड्स आदि जैसे अनेक रोगों पर तो काबू नहीं पाया जा सका है अपितु इन देशों की बाल एवं युवा पीढ़ी पर इसका उल्टा असर हुआ है। इन देशों में यौन शिक्षा के कारण माता-पिता के जीवित रहते हुए भी लाखों बच्चे अनाथ होकर उन्मुक्त जीवन जीने को विवश हैं, जो कि एड्स जैसे महारोग को बढ़ाने का मुख्य कारण है। इसके अलावा इन देशों में विवाहित जोड़ों में दूसरी स्त्रियों तथा पुरूषों से अवैध संबंध बढ़ाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ चुकी है। इन सभ्य कहे जाने वाले पश्चिमी देशों की नकल करने में भारत भी बिना सोचे-विचारे चलने लगा है। उन्मुक्त सेक्स की तरफ बढ़ती प्रवृत्ति के कारण विवाह जैसी पवित्र संस्था का अस्तित्व ही खतरे में पड़ता जा रहा है।
(3) आधुनिकता के नाम पर भारत में भी पांव पसार रही हैं समस्यायें :-
विश्व अनेक देशों में टी.वी. चैनलों एवं समाचार पत्रों में आधुनिकता के नाम पर युवक-युवतियों द्वारा बिना विवाह के लिव-इन-रिलेशन में साथ रहने के कारण युवतियों के गर्भवती होने व भ्रण हत्या करवाने आदि की घटनायें लगातार सामने आती जा रहीं हैं। हमारा मानना है कि बच्चों की मनः स्थिति का सही आंकलन किये वगैर बाल एवं युवा पीढ़ी को यौन शिक्षा देकर उनके मन-मस्तिष्क एवं चरित्र को पूरी तरह से नष्ट करने की तैयारी की जा रही है।
(4) बच्चों को योग एवं आध्यात्म का ज्ञान दें :-
परमात्मा ने मनुष्य और पशु में चार चीजें आहार, निद्रा भय व मैथुन तो समान रूप से दी है किन्तु उचित-अनुचित व गलत-सही का निर्णय करने की क्षमता केवल मनुष्य को ही दी है। यह क्षमता पशु में नहीं है। इसलिए बालक को योग तथा आध्यात्मिक ज्ञान कराने से उसके मस्तिष्क में ईश्वरीय दिव्य प्रवृत्ति पैदा होती है। किन्तु यदि उसे योग तथा आध्यात्मिक ज्ञान न हो तो उसके अंदर पशु प्रवृत्ति बढ़ जाती है और तब मनुष्य उचित-अनुचित व गलत-सही का निर्णय नहीं कर पाता है और मनुष्य का आचरण पशुवत हो जाता है। योग और आध्यात्म दोनों ही मनुष्य के तन और मन दोनों को सुन्दर एवं उपयोगी बनातें हैं। योग का मायने हैं जोड़ना। योग मनुष्य की आत्मा को परमात्मा की आत्मा से जोड़ता है। इसलिए हमारा मानना है कि प्रत्येक बच्चे को बचपन से ही योग एवं आध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए।
(5) यौन शिक्षा बच्चों को दिग्भ्रमित एवं पथभ्रष्ट करती हैः-
विकसित देशों के विद्यालयों में यौन शिक्षा प्रदान करने से युवा पीढ़ी तन और मन से रोगी बनती जा रही है साथ ही उनका नैतिक तथा चारित्रिक पतन भी हुआ है। इस दुखदायी स्थिति से उबरने का योग तथा आध्यात्मिक शिक्षा ही एकमात्र समाधान है। हमारा मानना है कि यौन शिक्षा बच्चों को दिग्भ्रमित एवं पथभ्रष्ट करती है। यौन शिक्षा अनैतिक सम्बन्धों को बढ़ावा देती है। यौन शिक्षा में आत्मनियंत्रण की शिक्षा नहीं होती। यौन शिक्षा केवल यह बताती है कि यौन क्रिया करते हुए मां को गर्भवती होने से कैसे बचाया जा सकता है। इस विषम सामाजिक स्थिति से अपने बच्चों को बचाने के लिए विकसित देशों के स्कूलों में ‘यौन शिक्षा की जगह पर योग एवं आध्यात्मिक शिक्षा’ अनिवार्य रूप से देने की अविलम्ब आवश्यकता है।
(6) प्रत्येक बच्चे को बचपन से ही योग एवं आध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए :-
हमारा यह सामाजिक उत्तरदायित्व है कि हम अभिभावकों के सहयोग से बच्चों को भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की संतुलित शिक्षा देकर उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करें क्योंकि ऐसे बालक आगे चलकर स्वस्थ व सभ्य समाज की आधारशिला रखेंगे। इसलिए मेरी विश्व के सभी देशों से अनुरोध है कि वे जगतगुरू कहे जाने वाले इस देश की संस्कृति एवं सभ्यता को ध्यान में रखते हुए अपने विद्यालयों में बच्चों को अनिवार्य रूप से यौन शिक्षा की जगह योग एवं आध्यात्म की शिक्षा दें।
(7) विद्यालय से बढ़कर जग में कोई ना तीरथ धाम :-
हमारा मानना है कि विद्यालय ऐसा हो, जिसमें हो चरित्र निर्माण। बच्चों के कोमल मन को दे, मानवता का ज्ञान। तब होगा उत्थान जगत का, तब होगा उत्थान। आध्यात्मिक चेतना जगाये सबको सही दिशा दिखलायें। बच्चे बने प्रकाश जगत का मन में ज्ञान की ज्योति जलायें, क्योंकि – विद्यालय से बढ़कर जग में कोई ना तीरथ धाम। वास्तव में बच्चों को केवल योग एवं आध्यात्म की शिक्षा देने से ही संयम, सुचिता, स्व-अनुशासन, नैतिकता, चारित्रिकता तथा आध्यात्मिकता के गुण विकसित होंगे अन्यथा मानव सभ्यता को विनाश के कगार पर जाने से रोका नहीं जा सकेगा।
– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ