एकादशी माहात्म्य – पूरे वर्ष की 24 एकादशी व्रतों का फलाहार व योनि सम्बन्ध
चैत्र कृष्णा एकादशी – चारोली का फलाहार करने से जम्बू योनि छूट जाती है|
चैत्र शुक्ला एकादशी – गुड़ या मिश्री का फलाहार करने से सिंह योनि से मुक्ति मिलती है|
वैशाख कृष्णा एकादशी – खरबूजा का फलाहार चकवा की योनि से मुक्त कराता है|
वैशाख शुक्ला एकादशी – गाय के गोमूत्र या फलाहार से गृद्ध योनि से मुक्ति होती है|
ज्येष्ठ कृष्णा एकादशी – ककड़ी का फलाहार जलचर, थलचर व पक्षी की योनि से मुक्त कराता है|
ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी – आम का फलाहार, बागल की योनि का नाश करता है|
आषाढ़ कृष्णा एकादशी – मिश्री का फलाहार कीट योनि से मुक्त कराता है|
आषाढ़ शुक्ला एकादशी – मुनक्का (दाख) के फलाहार से सूर योनि से मुक्ति होती है|
श्रावण कृष्णा एकादशी – शक्कर दूध का फलाहार सर्प योनि से मुक्ति दिलाता है|
श्रावण शुक्ला एकादशी – सिंघाड़ा के फलाहार से अजगर योनि से मुक्ति मिलती है|
भाद्रपद कृष्णा एकादशी – छिबारा का फलाहार गधा की योनि से मुक्ति दिलाता है|
भाद्रपद शुक्ला एकादशी – बालम ककड़ी का फलाहार गूगा योनि से मुक्ति दिलाता है|
आश्विन कृष्णा एकादशी – गोंद का फलाहार स्त्री योनि से मुक्तिप्रद होता है|
आश्विन शुक्ला एकादशी – काचरी का फलाहार उल्लू व बिलाव योनि से मुक्त कराता है|
कार्तिक कृष्ण एकादशी – केला का फलाहार बन्दर योनि से मुक्त कराता है|
कार्तिक शुक्ला एकादशी – शकरकंदी का फलाहार यवन व छछूदर योनि से मुक्तप्रद है|
मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी – बादाम गुड का फलाहार तोता योनि से मुक्त कराता है|
मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी – बेलगिरी का फलाहार बकरी की योनि से मुक्त कराता है|
पौष कृष्णा एकादशी – तिल का फलाहार देवल योनि से मुक्त कराता है|
पौष शुक्ला एकादशी – गाय का दूध चॉदी के बर्तन या चाँदी की घास से जमाकर अथवा दूध का फलाहार बिल्ली व बिच्छू की योनि से मुक्त कराता है|
माघ कृष्णा एकादशी – गुड़ खोपरा का फलाहार चमचेड़ की योनि से मुक्त कराता है|
माघ शुक्ला एकादशी – साठा ईख का फलाहार हाथी की योनि से मुक्त कराता है|
फाल्गुन कृष्णा एकादशी – पेड़ा का फलाहार चुहा की योनि से मुक्ति दिलाता है|
फाल्गुन शुक्ला एकादशी – कच्चा आँवला का फलाहार नीच योनियों से मुक्त कराता है|
हरिवासर देखना – जो एकादशी व्रत किया होवे और अगले दिन द्वादशी को अनुराधा नक्षत्र हो और महीना आषाढ़ का होवे और भाद्रपद द्वादशी को श्रवण होवे और कार्तिक में द्वादशी को रेवती तथा शक्ल पक्ष हो और इसमें भोजन करे तो बारह वर्ष के किये हुए कादशी व्रत का फल नष्ट हो जाता है|