एकादशी माहात्म्य – एकादशी परिचय
प्राचीन काल में नैमिषारण्य उपवन में महर्षि श्री शौनक तथा अन्य ऋषियों ने भी सूतजी से आग्रह किया कि वे के सभी एकादशियों की उत्पत्ति और माहात्म्य सविस्तार बताने की कृपा करें| श्री सूतजी बोले – हे ऋषियों! एकादशी देवी का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में हुआ था| इसका विवरण उत्पन्ना एकादशी के प्रसंग में दिया गया है| पुराणों में 26 एकादशियों की अलग-अलग कथाएँ आती हैं|
एक वर्ष में बारह मास होते हैं और प्रत्येक मास में दो एकादशियाँ होती हैं| इस प्रकार एक वर्ष में कुल 24 एकादशियाँ होती हैं, परन्तु जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है, उस वर्ष दो एकादशियाँ और जुड़ जाती हैं| इस कारण अधिक मास (लौंद मास) पड़ने पर एक वर्ष में कुल 24+2=26 एकादशियाँ हो जाती हैं| इनके नाम इस प्रकार हैं –
1. उत्पन्ना, 2. मोक्षदा, 3. सफला, 4. पुत्रदा, 5. षट्तिला, 6. जया, 7. विजया, 8. आमलकी, 9. पापमोचिनी, 10, कामदा, 11. बरूथिनी, 12. मोहिनी, 13. अपरा, 14. निर्जला, 15, योगिनी, 16. देवशयनी, 17. कामिका, 18. पुत्रदा, 19. अजा, 20 परिवर्तनी (पद्म या वामन), 21. इन्दिरा, 22. पापांकुशा, 23. रमा और 24. प्रबोधिनी| अब अधिक मास की दो एकादशियाँ हैं – 25. पद्मिनी और 26. परमा| इस प्रकार ये कुल 26 एकादशियाँ होती हैं| ये सभी एकादशियाँ फल देने वाली होती हैं| भवसागर से मुक्ति दिलाती हैं और अन्त में स्वर्गलोक प्राप्ति में सहायक होती हैं|