श्री गायत्री सिद्ध कवचम् व विधि
श्री गायत्री सिद्ध कवचम् व विधि इस प्रकार है|
ॐ अस्य श्री गायत्री कवचस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दो, गायत्री देवता, ॐ भूः रें बीजम् भुवःणिं शक्ति, स्वः यं कीलकम् गायत्री प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः||
||ध्यानम्||
पञ्चवक्त्रां दशंभुजां सूर्यकोटि समप्रभाम्
सावित्रीं ब्रह्मवरदां चन्द्रकोटि सुशीतलाम्
त्रिनेत्राँ सितवक्त्रां च मुक्ताहार विराजिताम्
वराभयांकुशकश हेम पत्राज्ञ मालिकाः
शंखचक्राब्ज युगलं कराभ्यां दधतीं पराम्
सितपंकज संस्था च हंसारुढ़ां सुखस्तिमताम्
ध्यात्वैवं मानसाम्भोजे गायत्री कवचं जपेत|||ब्रह्मोवाच||
विश्वामित्र महाप्राज्ञ गायत्री कवचं श्रृणु
यस्य विज्ञानमात्रेण त्रलोक्यं वशयेत्क्षणात्
सावित्री मे शिरः पातु शिखायाममृतेश्वरी
ललाटं ब्रह्य दैवत्या भ्रुवौ मे पातु वैष्णवी
कर्णो मे पातु रुद्राणी सूर्या सावित्रिकाऽम्बके
गायत्री वदनं पातु शारदा दशनच्छदौ
द्विजान्यज्ञप्रिया पातु रसनायां सरस्वती
सांख्यायनी नासिकां मे कपोलौ चंद्रहासिनी
चिबुकं वेदगर्भा चकण्ठं पात्वघनाशिनी
स्तनौ मे पातु इन्द्राणी हृदयं ब्रह्यवाहिनी
उदरं विश्वभोक्त्री च नाभौ पातु सुरप्रिया
जघनं नारसिंही च पृष्ठं ब्रह्माण्डधारिणी
पाश्र्वो मे पातु पद्माक्षी गुह्यं गोगोप्त्रिकाऽवतु
ऊर्वोरों काररूपा च जान्वोः संध्यात्मिकाऽवतु
जंघयोः पातु अक्षोम्या गुल्फयोर्ब्रह्य शीर्षका
सूर्यां पद द्वयं पातु चन्दा पादांगुलीषु च
सर्वाङ्ग वेद जननी पातु मे सर्वदाऽनघा
इत्येतत् कवचं ब्रह्मन् गायत्र्याः सर्वपावनम्
पुण्यं पवित्रं पापध् सर्व रोग निवारणम्
जिसंध्यं यः पठेद्विद्वान सर्वान् कामान वाप्नुयात्
सर्व शास्त्रार्थ तत्वज्ञः स भवेद्वदवित्तमः
सर्वयज्ञफलम् प्राप्य ब्रह्मान्ते समवाप्नुयात्
प्राप्नोति जपमात्रेण पुरुषार्थाश्चुर्विधान्||
श्री गायत्री सिद्ध कवचम् की विधि इस प्रकार है|
ब्रह्मा जी कहते हैं कि यह गायत्री कवच सर्वपावन है, पुण्य का दाता, पापों का नाशक पवित्र व समस्त रोगों का निवारण करने वाला है|
जो साधक तीनों संध्याओं में इस कवच का पाठ करता है| उसकी समस्त कामनायें पूर्ण होती हैं| वह सभी शास्त्रों का तत्त्व समझ लेता है| जिस कारण वे देवताओं में भी उत्तम हो जाता है|
इसके केवल जप मात्र से सभी यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है तथा चतुर्विध पुरुषार्थ की उपलब्धि होती है|