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(1) आज हमारे नन्हें-मुन्नों को संस्कार कौन दे रहा है?

वर्तमान समय मंे परिवार शब्द का अर्थ केवल हम दो हमारे दो तक ही सीमित हुआ जान पड़ता हैं। परिवार में दादी-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, आदि जैसे शब्दों को उपयोग अब केवल पुराने समय की कहानियों को सुनाने के लिए ही किया जाता है। अब दादी और नानी के द्वारा कहानियाँ सुनाने की घटना पुराने समय की बात जान पड़ती है। अब बच्चे टी0वी, डी0वी0डी0, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि के साथ बड़े हो रहे हैं। परिवार में बच्चों को जो संस्कार पहले उनके दादा-दादी,  माँ-बाप तथा परिवार के अन्य बड़ेे सदस्यों के माध्यम से उन्हें मिल रहे थे, वे संस्कार अब उन्हें टी0वी0 और सिनेमा के माध्यम से मिल रहे हैं।

संत श्री श्री शुब्रम बहल जी को दुनिया भर में श्रद्धालुओं के जिलों द्वारा ‘गुरु जी’ के रूप में व्यक्त किया जाता है, उनके अनुयायियों की असीम सूची में ‘श्री साईं सच्चरित्र कथा’ का एक विवेकपूर्ण अधिवक्ता है।

प्रतिष्ठित संतों की वंशावली में जन्मा जाने वाले दिव्य साधुओं ने आध्यात्मिक जागृति और राधारि और बिहारीजी के लिए लाखों लोगों के दिल में अपने भगवत महायान के माध्यम से माध्यम के रूप में फैलाने में डूबे हुए हैं, जिन्होंने सभी लोगों के जीवन में शांति और प्रगति की है उनके पैरों में आश्रय वरिष्ठ आचार्य, पूज्य परम गुरु श्रद्धा श्री मृदुल कृष्ण महाराज, वृंदावन की विदेशी भूमि से हमारे समय के भगवद् प्रहसन के ग्रैंडमास्टर हैं।

भारत में भ्रष्टाचार उन्मूलन और पारदर्शिता के भले ही कड़े कदम उठाए गए हों, लेकिन रिश्वतखोरी कम नहीं हुई है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में रिश्वत के मामले में भारत शीर्ष पर है। रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में दो तिहाई अर्थात 67 प्रतिशत से ज्यादा भारतीयों को सरकारी सेवाओं के बदले किसी न किसी रूप में रिश्वत देनी पड़ती है। चीन में 73 प्रतिशत लोगों ने कहा कि तीन वर्षों में उनके देश में रिश्वत का चलन बढ़ा है। रिश्वत देने की दर जापान में सबसे कम 0.2 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में केवल तीन प्रतिशत पाई गई। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अध्यक्ष श्री जोस उगाज के कहना है कि सरकारों को भ्रष्टाचार रोधी कानूनों को हकीकत में बदलने के प्रयास करने चाहिए। करोड़ों लोग रिश्वत देने के लिए बाध्य हैं और इसका सबसे बुरा असर गरीबों पर पड़ता है। किसी महापुरूष ने कहा है कि अपना अपना करो सुधार तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।  

प्रसिद्ध स्पेस वैज्ञानिक एम. अन्नादुरई के अनुसार मेरा जन्म तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के एक छोटे-से गांव में 1958 में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा मैंने अपने गांव के स्कूल में ही पाई। बचपन में सातवीं क्लास तक मेरे घर में बिजली नहीं थी। हम पांच भाई-बहन थे और मेरे पिता महीने में मात्र 120 रूपये कमाते थे, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत तथा ईमानदारी पर ही उम्मीद की। बचपन से पिता ही मेरे सबसे प्रभावी गुरू रहे हैं। वह स्कूल में मेरे शिक्षक तो थे ही, घर में भी यही सिखाते थे कि रोज अपने जीवन में थोड़ा सुधार करो, कुछ नया जोड़ो। चंद्रयान के बाद उन्होंने मुझे पूछा था कि आगे क्या योजना है, फिर मंगलयान के बाद भी उन्होंने यही सवाल किया। किसी भी नवाचार की शुरूआत एक सामान्य विचार से होती है, पर उसे सावधानी से विकसित करने की जरूरत होती है। अपने अनुभव से मैं कह सकता हूं कि आत्मविश्वास और नवोन्मेषी दृष्टि सफलता के लिए बहुत जरूरी है। हमें एम. अन्नादुरई जैसे महान स्पेस वैज्ञानिक से जीवन के हर पल में कुछ नया जोड़ने की कला सीखनी चाहिए। 

यह एक शैक्षिक जगत की अच्छी खब़र है कि अब काॅलेज बीटेक छात्रों को मुफ्त में पीजी और पीएचडी कराएंगे और नौकरी की गारंटी देंगे। पढ़ने के दौरान छात्रवृत्ति भी दी जाएगी। योजना इसी साल से शुरू हो जाएगी। इंजीनियरिंग संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने नई योजना तैयार की है। वहीं दूसरी ओर अगले महीने से चुनिंदा शहरों के लोग पासपोर्ट बनवाने के लिए डाकघरों में आवेदन कर सकेंगे। यह विदेश मंत्रालय की महत्वकांक्षी योजना के अन्तर्गत किया जा रहा है। आज की युवा पीढ़ी सारी दुनिया में घूम-घूमकर अपनी प्रतिभा का सर्वोच्च प्रदर्शन करना चाहती हैं। युवा पीढ़ी को देशों की सीमाओं से आजाद करना चाहिए।