Chapter 86
“Sanjaya said, ‘Beholding the gigantic and roaring Karna, incapable ofbeing resisted by the very gods, advancing like the surging sea, thatbull amongst men, viz., he of Dasharha’s race, addressed Arjuna, saying,
“Sanjaya said, ‘Beholding the gigantic and roaring Karna, incapable ofbeing resisted by the very gods, advancing like the surging sea, thatbull amongst men, viz., he of Dasharha’s race, addressed Arjuna, saying,
किसी वन में चण्डरव नामक एक सियार रहता था| एक दिन वह भूख से व्याकुल भटकता हुआ लोभ के कारण समीप के नगर में पहुंच गया| उसको देखते ही नगरवासी कुत्ते उसके पीछे पड़ गए|
“Yudhishthira said, ‘What is the nature of the compassion or pity that isfelt at the sight of another’s woe?
सुख राजे हरी चंद घर नार सु तारा लोचन रानी |
साध संगति मिलि गांवदे रातीं जाइ सुणै गुरबाणी |
“Yudhishthira said, ‘Like one that drinks nectar I am never satiated withlistening to thee as thou speakest. As a person possessing a knowledge ofself is never satiated with meditation, even so I am never satiated withhearing thee.
राजा उत्तानपाद ब्रह्माजी के मानस पुत्र स्वयंभू मनु के पुत्र थे। उनकी सनीति एवं सुरुचि नामक दो पत्नियाँ थीं। उन्हें सुनीति से ध्रुव एवं सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र प्राप्त हुए। वे दोनों राजकुमारों से समान प्रेम करते थे।
1 शरीभगवान उवाच
इदं तु ते गुह्यतमं परवक्ष्याम्य अनसूयवे
जञानं विज्ञानसहितं यज जञात्वा मॊक्ष्यसे ऽशुभात