Chapter 5
“Sanjaya said, ‘Thus addressed by the celebrated grandson of Gotama, theking (Duryodhana), breathing long and hot breaths, remained silent, Omonarch. Having reflected for a little while, the high-souled son of
“Sanjaya said, ‘Thus addressed by the celebrated grandson of Gotama, theking (Duryodhana), breathing long and hot breaths, remained silent, Omonarch. Having reflected for a little while, the high-souled son of
मुकुन्ददास नामक एक व्यक्ति किसी अच्छे सन्त का शिष्य था| वे सन्त जब भी उसको अपने पास आने के लिये कहते, वह यही कहता कि मेरे बिना मेरे स्त्री-पुत्र रह नहीं सकेंगे| वे सब मेरे ही सहारे बैठे हुए हैं| मेरे बिना उनका निर्वाह कैसे होगा? सन्त ने कहते कि भाई! यह तुम्हारा वहम है, ऐसी बात है नहीं|
पुराने समय में एक राजा के कोई सन्तान नही थी । राजा रानी सन्तान के न होने पर बडे दःखी थे एक दिन रानी ने गाज माता से प्रार्थना की कि अगर मेरे गर्भ रह जाये तो मैं तुम्हारे हलवे की कडाही करूँगी ।
सन्यासी के किसी राज्य में महिलारोप्य नाम का एक नगर था| उस नगर से थोड़ी दूर पर भगवान शंकर का एक मंदिर बना हुआ था| उस मठ में तामचूड़ का एक सन्यासी निवास करता था| नगर में भिक्षादन कर वह अपनी जीविका चलाया करता था| भोजन से बचे हुए अन्न को वह भिक्षापत्र में रखकर उस पात्र का खूटी पर लटका दिया करता था, इस प्रकार वह निश्चित होकर रात्री में सो जाया करता था प्रात:कल वह उस अन्न को उस मन्दिर में कार्यरत श्रमिको को दे दिया करता था|
“Bhishma said, ‘The illustrious Atri, the son of the Grandsire Brahman,said, ‘They who make gifts of gold are said to make gifts of everythingin the world.’
1 वैशंपायन उवाच
वनवासाय चक्रुस ते मतिं पार्थाः पराजिताः
अजिनान्य उत्तरीयाणि जगृहुश च यथाक्रमम