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एक समय की बात है बाल गंगाधर तिलक छात्रावास की छ्त पर बैठे हुए अपने साथियों के साथ गपशप कर रहे थे| एक के बाद एक सभी साथियों के सामने यह समस्या आयी कि अगर अचानक नीचे किसी पर मुसीबत आ जाए तो उसको बचाने के लिए जल्दी से जल्दी नीचे कौन कैसे जाएगा?

बहुत समय पहले किसी नगर में चार मित्र रहते थे| उनमें गहरी दोस्ती थी| वे हमेशा साथ-साथ रहते थे| उनमें से तीन व्यक्ति बड़े ही विद्वान थे| उन्होंने इतना कुछ सीखा-पढ़ा था कि आगे और सिखने के लिए कुछ नहीं बचा| परन्तु इतने पढ़े-लिखे होने पर भी उनमें सामान्य बुद्धि बिलकुल नहीं थी| इन तीनों के विपरीत, चौथा इतना पढ़ा-लिखा तो नहीं था, पर उसमें अक्ल और समझ कूट-कूटकर भरी थी|

1 [बर] नाहं तथा भीरु चरामि लॊके; तथा तवं मां तर्कयसे सवबुद्ध्या
विप्रॊ ऽसमि मुक्तॊ ऽसमि वनेचरॊ ऽसमि; गृहस्थ धर्मा बरह्म चारी तथास्मि