अध्याय 11
1 [धृ]
एवम एतन महाप्राज्ञ यथा वदसि नॊ मुने
अहं चैव विजानामि सर्वे चेमे नराधिपाः
एक समय की बात है बाल गंगाधर तिलक छात्रावास की छ्त पर बैठे हुए अपने साथियों के साथ गपशप कर रहे थे| एक के बाद एक सभी साथियों के सामने यह समस्या आयी कि अगर अचानक नीचे किसी पर मुसीबत आ जाए तो उसको बचाने के लिए जल्दी से जल्दी नीचे कौन कैसे जाएगा?
“Sanjaya said, ‘After that elephant-division had been destroyed, OBharata, by the son of Pandu, and while thy army was being thusslaughtered by
बहुत समय पहले किसी नगर में चार मित्र रहते थे| उनमें गहरी दोस्ती थी| वे हमेशा साथ-साथ रहते थे| उनमें से तीन व्यक्ति बड़े ही विद्वान थे| उन्होंने इतना कुछ सीखा-पढ़ा था कि आगे और सिखने के लिए कुछ नहीं बचा| परन्तु इतने पढ़े-लिखे होने पर भी उनमें सामान्य बुद्धि बिलकुल नहीं थी| इन तीनों के विपरीत, चौथा इतना पढ़ा-लिखा तो नहीं था, पर उसमें अक्ल और समझ कूट-कूटकर भरी थी|
“Vamadeva said, ‘The king should win victories without battles. Victoriesachieved by battles are not spoken of highly. O monarch, by the wise.
‘The Deities said, ‘The Asura named Taraka who has received boons fromthee, O puissant one, is afflicting the deities and the Rishis. Let hisdeath be ordained by thee. O Grandsire, great has been our fear from him.O illustrious one, do thou rescue us. We have no other refuge than thee.’
1 [य]
धन्या धन्या इति जनाः सर्वे ऽसमान परवदन्त्य उत
न दुःखिततरः कश चित पुमान अस्माभिर अस्ति ह
1 [बर]
नाहं तथा भीरु चरामि लॊके; तथा तवं मां तर्कयसे सवबुद्ध्या
विप्रॊ ऽसमि मुक्तॊ ऽसमि वनेचरॊ ऽसमि; गृहस्थ धर्मा बरह्म चारी तथास्मि
“Bhishma said, ‘I then smilingly addressed Rama stationed for battle,saying,–Myself on my car, I do not wish to fight with thee that art onthe earth!