Chapter 19
1 And the two angels came to Sodom at even; and Lot sat in the gate of Sodom: and Lot saw them, and rose up to meet them; and he bowed himself with his face to the earth;
1 And the two angels came to Sodom at even; and Lot sat in the gate of Sodom: and Lot saw them, and rose up to meet them; and he bowed himself with his face to the earth;
हरिद्वार से २०वी तीर्थ यात्रा करके पंडित दुर्गा प्रसाद ने जब गुरु अमरदास जी के पाँव में पदम देखकर कहा था कि आपके शीश पर जल्दी ही छत्र झूलेगा, जब उसने यह सुना कि आप गुरुगद्दी पर आसीन हुए है तो अपना मुँह माँगा वरदान लेने के लिए गुरु अमरदास जी के पास आये| उन्होंने गुरु जी को अपना वरदान पूरा करने की मांग की|
मुग़ल बादशाह के समय दिल्ली व लाहौर के रास्ते में व्यास नदी से पार होने के लिए गोईंद्वाल का पत्तन बहुत प्रसिद्ध था| बड़ी-२ सराए शाही सेनओं के लिए यहाँ बनी हुई थी जिसके कारण यह रौनक रहती थी| यह व्यापर पेशा कुछ शेखों के घर भी थे जो कि गुरु के सिखों से सदैव नोक-झोक लगाई रखते थे| वे पानी के घड़े गुलेले मार कर तोड़ देते थे व सिख स्त्रियों को भला बुरा भी कहते थे|
बाउली की कार सेवा में भाग लेने के लिए सिख बड़े जोश के साथ दूर दूर से आने लगे| इस तरह काबुल में एक प्रेमी सिख की पति व्रता स्त्री को पता लगा|
1 एवं वीर्यः सर्वधर्मॊपपन्नः; कषात्रः शरेष्ठः सर्वधर्मेषु धर्मः
पाल्यॊ युष्माभिर लॊकसिंहैर उदारैर; विपर्यये सयाद अभावः परजानाम
भाई खानू, मईया और गोबिंद गुरु अमरदास जी के पास आए| इन्होने प्रार्थना की हमें भक्ति का उपदेश दो ताकि हमारा कल्याण हो जाये| गुरु जी ने कहा भक्ति तीन प्रकार की होतो है-नवधा, प्रेमा और परा|
एक दिन भाई जग्गा गुरु जी के दर्शन करने आया| उसने प्राथना कि सच्चे पादशाह जी मुझे एक दिन जोगी ने बताया कि कल्याण तभी हो सकता है अगर घर – बाहर, स्त्री – पुत्र आदि का त्याग किया जाये जो कि बन्धन हैं|
सावण मल की प्रेरणा से हरीपुर के राजा व रानी गुरु अमरदास जी के दर्शन करने के लिए गोइंदवाल आए| सावण मल ने माथा टेककर गुरु जी से कहा कि महाराज! हरीपुर के राजा व रानी आपके दर्शन करने के लिए आए हैं|
“Yudhishthira said, ‘O grandsire, learned men praise truth,self-restraint, forgiveness, and wisdom. What is thy opinion of thesevirtues?’
एक विधवा माई जो की गोइंदवाल में रहती थी उसका पुत्र बुखार से मर गया| वह रात्रि से समय ऊँची ऊँची रोने लगी| उसका ऐसा विर्लाप सुनकर गुरु अमरदास जी माई के घर गये और अपने चरण बच्चे के माथे पर धरे| गुरु जी के चरण माथे पर लगते ही बेटा जीवित हो गया|