Home2011 (Page 408)

दोपहर तक राजा हरिश्चंद्र अपनी पत्नी शैव्या और पुत्र रोहिताश्व  के साथ नगर में भटकते रहे, परन्तु उन्हें कहीं कम नहीं मिला| हारकर वे बाजार में एक किनारे बैठ गए और अपनी पत्नी से बोले, “शैव्या! आज एक महिना पूरा हो रहा है|

मनुष्य को ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए कि मेरा पाप तो कम था पर दंड अधिक भोगना पड़ा अथवा मैंने पाप तो किया नहीं पर दंड मुझे मिल गया! कारण कि यह सर्वज्ञ, सर्वसुह्रद, सर्वप्रथम भगवान् का विधान है कि पाप से अधिक दंड कोई नही भोगता और जो दंड मिलता है, वह किसी-न-किसी पाप का ही फल होता है|