अध्याय 52
1 [व]
तथा परयान्तं वार्ष्णेयं दवारकां भरतर्षभाः
परिष्वज्य नयवर्तन्त सानुयात्राः परंतपाः
1 [ल]
इह मर्त्यास तपस तप्त्वा सवर्गं गच्छन्ति भारत
मर्तुकामा नरा राजन्न इहायान्ति सहस्रशः
1 [य]
पितामह महाप्राज्ञ कुरूणां कीर्तिवर्धन
परश्नं कं चित परवक्ष्यामि तन मे वयाख्यातुम अर्हसि
एक दिन एक शिष्य भगवान बुद्ध के पास गया| प्रणाम-निवेदन करके बोला – “भंते, मैं देश में घूमना चाहता हूं| आपके आशीर्वाद का अभिलाषी हूं|”
Vaisampayana said, “Hearing the words of the Island-born Rishi and seeingDhananjaya angry, Yudhishthira, the son of Kunti, saluted Vyasa and madethe following answer.
कनकवर्णमहातेजं रत्नमालाविभूषितम् ।
प्रातः काले रवि दर्शनं सर्व पाप विमोचनम् ।।
1 [स]
धर्मे नित्या पाण्डव ते विचेष्टा; लॊके शरुता दृश्यते चापि पार्थ
महास्रावं जीवितं चाप्य अनित्यं; संपश्य तवं पाण्डव मा विनीनशः
“Markandeya said, ‘Having pondered over these words (of Narada) about hisdaughter’s marriage, the king began to make arrangements about thenuptials.
एक बार एक गांव में सूखा पड़ा। सारे तालाब और कुएं सूख गए। तब लोगों ने एक सभा की। उस सभा में सभी ने एक स्वर में तय किया कि गांव के बाहर जो शिवजी का मंदिर है, वहां चलकर भगवान से वर्षा करने के लिए सामूहिक प्रार्थना करें। अगले दिन सुबह होते ही गांव के सभी लोग शिवालय की ओर चल दिए। बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी जोश से भरे हुए जा रहे थे। इन सभी में एक बालक ऐसा था, जो हाथ में छाता लेकर चल रहा था। सभी उसे देखकर उसका उपहास उड़ाने लगे।
काम मेरा है चाहत करूं दीद की, रुख़ से पर्दा हटाना तेरा काम है
काम है मेरा साँई तुझे देखना, आगे जलवा दिखाना तेरा काम है