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आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का अहसास कराता है।

1 [य] मान्धाता राजशार्दूलस तरिषु लॊकेषु विश्रुतः
कथं जातॊ महाब्रह्मन यौवनाश्वॊ नृपॊत्तमः
कथं चैतां परां काष्ठां पराप्तवान अमितद्युतिः

किसी गांव के पास एक सांप रहता था| वह बड़ा ही तेज था| जो भी उधर से निकलता, वह उस पर दौड़ पड़ता और उसकी जान ले लेता| सारे गांव के लोग उससे तंग आ गए| वे उसे रात-दिन कोसते| आखिरकार उन्होंने उस मार्ग से निकलना ही छोड़ दिया| गांव का वह हिस्सा उजाड़-सा हो गया|

एक बार भगवान् श्रीराम ने अयोध्या की राजसभा में उपस्थित वशिष्ठ, वामदेव, जाबालि, कश्यप आदि श्रेष्ठ ऋषियों से प्रश्न किया कि ‘इस विश्व में सर्वश्रेष्ठ एवं मोक्षदायक पवित्र तीर्थ कौन सा है, जिसका दर्शन करने से मनुष्य अपने पाप-राशि का क्षय और धर्म प्राप्त करता है|’