अध्याय 110
1 [लॊमष]
एषा देव नदी पुण्या कौशिकी भरतर्षभ
विश्वा मित्राश्रमॊ रम्यॊ एष चात्र परकाशते
“Vaisampayana said, ‘Having said these words, the celestial Rishi Naradabecame silent. The royal sage Yudhishthira, filled with grief, becameplunged in meditation.
एक पंडित व चोर प्रतिदिन शिव मंदिर जाते। एक दिन चोर को मंदिर के द्वार पर सोने की अशर्फियां मिलीं और पंडित के पैर में लोहे की कील चुभ गई। तभी भगवान शिव प्रकट हुए और दोनों को उनके कर्मो का महत्व बताते हुए समझाया।
गोपाल भाड़ बहुत ही बुद्धिमान और मेहनती आदमी था| उसकी बुद्धि और व्यवहार कुशलता के बहुत चर्चे थे| लोगों की हर समस्या का हल वह चुटकियों में करता था| इसलिए उसके पास लोग अपनी-अपनी मुश्किलें लेकर आते ही रहते है|
“Bharadwaja said, ‘When the high-souled Brahman has created thousands ofcreatures, why is it that only these five elements which he createdfirst, which pervade all the universe and which are great creatures, havecome to have the name of creatures applied to them exclusively?'[554]
“Arjuna said, ‘What is that Brahman, what is Adhyatma, what is action, Obest of male beings? What also has been said to be Adhibhuta, and what iscalled Adhidaiva?
बहुत पुरानी बात है…पाटलीनगर में एक युवक काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था| संयोगवश राज्य का कोषाध्यक्ष भी अपने एक मित्र के साथ उधर से गुज़र रहा था|
Vaisampayana continued,–“Then agreeable to the words of the Yaksha thePandavas rose up; and in a moment their hunger and thirst left them.
काशी में एक कर्मकांडी पंडित का आश्रम था, जिसके सामने एक जूते गांठने वाला बैठता था। वह जूतों की मरम्मत करते समय कोई न कोई भजन जरूर गाता था। लेकिन पंडित जी का ध्यान कभी उसके भजन की तरफ नहीं गया था। एक बार पंडित जी बीमार पड़ गए और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।