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बंगाल के एक सुन्दर गांव में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ बहुत तंगहाली में रह रहा था| दोनों घर-घर जाकर भिक्षा मांगते, तब कहीं उन्हें दो जून रोटी नसीब होती थी|

एक छोटी व शांत पहाड़ी पर एक बैरागी रहते थे। उनकी आत्मा शुद्ध और हृदय निर्मल था। उस हरे-भरे एकांत में वे अकेले प्रभुभक्ति में रमे रहते। वे न कहीं आते-जाते और न ही उनकी विशेष आवश्यकताएं थीं। अपनी सीमित जरूरतों को वे वहीं पूर्ण कर लेते थे। वन के पशु और आकाश के पक्षी सभी उनके पास आते और वे उनसे खूब बातें करते।